प्रस्तावना-
कहते हैं कि सुघड सुशील और सुशिक्षित स्त्री दो का उद्धार करती है.विवाहपर्यन्त मैं अपनी मृतकुल को सुधारती है.और विवाहोपरांत अपने पतिकूल को उनके इस महत्व को प्रत्येक देश कॉल में स्वीकार किया रहा है, किंतु यह विडंबना ही है.कि उनके अस्तित्व और शिक्षा पर सदैव से संकट छाया रहा है.विगत कुछ दर्शकों में यह संकट और अधिक गहरा हुआ है.जिसका परिणाम यह हुआ कि देश में बालक बालिका लिगानुपात सन् 1971 ई० की जनगणना के अनुसार प्रति 1000 बालकों पर 930 बालिका का था जो सन 1991 ई०में घटकर 927 सीसी हो गया. सन 2011 ई० जनगणना में यह सुधारकर 943 हो गया. मगर इसे संतोषजनक नहीं कहा जा सकता.जब तक बालक बालिका लिंगानुपात बराबर नहीं हो जाता, तब तक किसी भी प्रगतिशील बुद्धिवादी समाज को विकसित अथवा प्रगतिशील समाज की संज्ञा नहीं दी जा सकती.महिला सशक्तिकरण की बात करना भी तब तक यह मुमानी ही है.माननीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी ने इस तिथि के मर्म को जाना समझा और सरकारी स्तर पर एक योजना चलाने की रूपरेखा तैयार की इसके लिए उन्होंने 22 जनवरी 2015 को हरियाणा राज्य से बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ योजना की शुरुआत की.
योजना के उद्देश्य-
योजना के महत्व और महान उद्देश्य को दृष्टिगत रखते हुए बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ योजना की शुरुआत भारत सरकार के बाल विकास मंत्रालय स्वास्थ्य मंत्रालय परिवार कल्याण मंत्रालय और मानव संसाधन विकास मंत्रालय की संयुक्त पहल से की गई. इस योजना के दोहरे लक्ष्य के अंतर्गत न केवल एक लिंगानुपात की जनता की दर में संतुलन लाना है. बल्कि की कन्याओं को शिक्षा दिलाकर देश के विकास में उनकी भागीदारी को सुनिश्चित करना है.सौ करोड रुपयों की शुरुआती राशि के साथ इस योजना के माध्यम से महिलाओं के लिए कल्याणकारी सेवाओ के प्रति जागरूकता फैलाने का कार्य किया जा रहा है.सरकार द्वारा लिंग समानता के कार्य के मुख्यधार से जोड़ने के अतिरिक्त स्कूली पाठ्यक्रमों में भी लिंग समानता से जुड़ा एक अध्याय रखा जाएगा.इसके आधार पर विद्यार्थी, अध्यापक समुदाय कन्या शिशु और महिलाओं की आवश्यकताओं के प्रति अधिक संवेदनशील बनेंगे तथा समाज का सौहार्दपूर्ण विकास होगा.बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ योजना के अंतर्गत जिन महत्वपूर्ण गतिविधियों पर कार्य किया जा रहा है.इस प्रकार है-
- स्कूल मैनेजमेण्ट कमेटियों को सक्रिय करना जिससे लड़कियों की स्कूलों में भर्तियां हो सके.
- स्कूलों में बालिका मंच की शुरुआत.
- कन्याओं के लिए शौचालय निर्माण.
- बंद पड़े शौचालयों को फिर से शुरू करना.
- कस्तूरबा गांधी बाल विद्यालय को पूरा करना.
- पढ़ाई छोड़ चुकी लड़कियों को माध्यमिक स्कूलों में मैं फिर भर्ती करने के लिए व्यापक अभियान.
- माध्यमिक और उच्चतर माध्यमिक विद्यालय में लड़कियों के लिए छात्रावास शुरू करना.
बढे बेटियां, से आशय-
बेटी बचाओ योजना के रूप में इसका सबसे बड़ा उद्देश्य बालिकाओं के लिंगानुपात को बालकों के बराबर लाना है.मगर यहाँ प्रश्न यह खड़ा होता है.कि हम बेटियों के लिंगानुपात को बराबर करके उनकी दशा और दिशा में परिवर्तन लाकर उन्हें देश दुनिया की विकास की मुख्यधारा में सम्मिलित कर पाएंगे यदि लिंगानुपात स्त्रियों के देश और समाज के विकास की मुख्यधारा से जोड़ने का मानक होता.तो देश की संसद में स्त्रियों के 33% आरक्षण का मुद्दा न खड़ा होता.मगर पुरुषों के लगभग बराबर जनसंख्या होने के बाद भी हमारी वर्तमान 545 सदस्यीय लोकसभा में महिलाओं की संख्या मात्र 66 है.जबकि लिंगा नुपात के अनुसार यह स्वभाविक रुप में पुरुषों की संख्या के लगभग आधी होनी चाहिए थी.इसीलिए बेटियों को बचा कर उनकी संख्या में वृद्धि करने के साथ-साथ यह भी आवश्यक है.कि वे निरंतर आगे बढ़े उनकी प्रगति के मार्ग की बाधा को दूर करके उन्हें उन्नति के उच्चतम शिखर तक पहुंचने का मार्ग प्रशस्त करें बढे बेटियां नारे का उद्देश्य और आशय भी यही है.
बेटियों को बढ़ाने के उपाय-
हमारी बेटियां आगे बढ़े और देश के विकास में अपना योगदान करें इसके लिए अनेक उपाय किए जा सकते हैं जिनमें से कुछ मुख्य उपाय अग्र प्रकार है.
(क) पढ़े बेटियां- बेटियों का आगे बढ़ाने के लिए सबसे महत्वपूर्ण और मुख्य उपाय यही है.कि हमारी बेटियां बिना किसी बाधा और सामाजिक बंधनों के उच्च शिक्षा प्राप्त करें तथा स्वयं अपने भविष्य का निर्माण करना करने में सक्षम हो अभी तक देश में बालिकाओं की शिक्षा की स्थिति संतोषजनक नहीं है.शहरी क्षेत्रों में तो बालिकाओं की स्थिति कुछ ठीक भी है.किंतु ग्रामीण क्षेत्रों में स्थिति बड़ी दयनीय है.बालिकाओं की शिक्षा के मार्ग की सबसे बड़ी बांधा यह है.कि लोग उन्हें पराया धन मानते हैं. उनकी सोच है.कि विवाहोपरांत उसे दूसरे के घर जाकर घर गृहस्ती का कार्य संभावना है.इसीलिए पढ़ने लिखने के स्थान पर उसका घरेलू कार्यों में निपुण होना अनिवार्य है.उनकी यह सोच वीडियो के स्कूल जाने के मार्ग बंद करके घर की चारदीवारी में उन्हें कैद कर देती है.बेटियों को आगे बढ़ने के लिए सबसे पहले समाज की इसी नीची सोच को परिवर्तितकरना होगा.
(ख) समाजिक सुरक्षा- बिटिया पढ़ लिख कर आत्मनिर्भर बनें और देश के विकास में अपना योगदान दें इसके लिए सबसे आवश्यक यह है.कि हम समाज में ऐसे वातावरण का निर्माण करें जिससे घर से बाहर निकलने वाली प्रत्येक बेटी और उसके माता-पिता का मन उनकी सुरक्षा को लेकर संशकित न हो. आज बेटियां घर से बाहर जाकर सुरक्षित रहें और शाम को बिना किसी भय अथवा तनाव के घर वापस लौटे यही सबसे बड़ी आवश्यकता है.आज घर से बाहर बेटियां असुरक्षा का अनुभव करती है.वे शाम को जब तक सही सलामत घर वापस नहीं आ जाती उनके माता-पिता की सांसे गले में अटकी रहती है.उनकी यही चिंता बेटी को घर के भीतर के रखने की अवधारणा को बल प्रदान करती है.जो माता-पिता किसी प्रकार अपने दिल पर पत्थर रखकर अपनी बेटियों को पढ़ा लिखा कर योग्य बना भी देते हैं.वह भी उन्हें रोजगार के लिए घर से दूर से नहीं भेजते की जमाना ठीक नहीं है आते हैं.बेटियों को आगे बढ़ने के लिए इस जमाने को ठीक करना आवश्यक है.अर्थात हमें बेटियों को आगे बढ़ने के लिए उन्हें सामाजिक सुरक्षा की गारंटी देनी होगी.
(ग) रोजगार के समान अवसरों की उपलब्धता- अनेक प्रयासों के बाद भी बहुत सी सरकारी एवं गैर सरकारी क्षेत्र ऐसे हैं. जिनको महिलाओं के लिए उपयुक्त नहीं माना गया है.सैन्य सेवा एक ऐसी ही महत्वपूर्ण क्षेत्र है.जिनमें महिलाओं को पुरुषों के समान रोजगार के अवसर उपलब्ध नहीं है.यांत्रिक अर्थात टेक्निकल क्षेत्र विशेषकर फील्ड वर्क को भी महिलाओं की सेवा के योगदान नहीं माना जाता है.इसीलिए इन क्षेत्रों में सेवा के लिए पुरुषों को वरीयता दी जाती है.यदि हमें बेटियों को आगे बढ़ाना है तो उनके लिए सभी क्षेत्रों में रोजगार के समान अवसर उपलब्ध कराने होंगे यह संतोष का विषय है.कि अब सैन्य और यांत्रिक आदि सभी क्षेत्रों में महिलाएं रोजगार के लिए आगे आ रही है.और उन्हें सेवा का अवसर प्रदान कर उन्हें आगे आने के लिए प्रोत्साहित भी किया जा रहा है.
उपसंहार-
बेटिया पढ़े और आगे बढ़े इसका दायित्व केवल सरकार पर नहीं है.समाज के प्रत्येक व्यक्ति पर इस बात का दायित्व है.कि वह अपने स्तर पर वह हर संभव प्रयास करें जिससे बेटियों को पढ़ने और आगे बढ़ने का प्रोत्साहन मिले.हम यह सुनिश्चित करें.कि जब हम घर से बाहर हो तो किसी भी बेटी की सुरक्षा पर हमारे रहते हो.कोई आंच नहीं आनी चाहिए यदि कोई उनके मान सम्मान को ठेस पहुंचाने की तनिक भी चेष्टा करें.तो आगे बढ़ कर उसे सुरक्षा प्रदान करनी होगी.और उनके मान सम्मान से खिलवाड़ करने वालों को ही विधिसम्मत दंड दिलाकर अपने कर्तव्य का निर्वाहन करना होगा.जिससे हमारी बेटियां उन्मुक्त गगन में पंख पसे सारे नित नई ऊंचाइयों को प्राप्त कर सके.
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