कवियों का साहित्यिक परिचय एवं कृतियां : वासुदेव शरण अग्रवाल

जीवन- परिचय-

डॉ० वासुदेव शरण अग्रवाल का जन्म सन 1940 में मेरठ जनपद के खेड़ा ग्राम में हुआ था.इनके  माता पिता लखनऊ में रहते थे.अतः उनका बाल्यकाल लखनऊ में ही व्यतीत हुआ.यही इन्होंने प्रारंभिक शिक्षा भी प्राप्त की उन्होंने काशी हिंदू विश्वविद्यालय से एम०ए०. की   परीक्षा स उत्तीर्ण की.लखनऊ विश्वविद्यालय ने पाणिनिकालीन भारत शोध- प्रबंध पर इनको पी० एच ०डी० की उपाधि से विभूषित किया.यहीं से इन्होंने डी० लिट् ० की उपाधि भी प्राप्त किए.उन्होंने पालि, संस्कृति ,अंग्रेजी, आदि भाषाओं तथा प्राचीन भारतीय संस्कृति और  पुरातत्व का गहन अध्ययन किया.और इन क्षेत्रों में उच्च कोटि के विद्वान माने जाने लगे.हिंदी के प्रकांड विद्वान को सन् 1967 ई० में नियम से छीन लिया.

साहित्यिक सेवाएँ-

डॉ० अग्रवाल लखनऊ और मथुरा के पूरा तत्व  सग्रहालयो मे निरीक्षक, केंद्रीय, पुरातत्व विभाग के संचालन और राष्ट्रीय संग्रहालय दिल्ली के अध्यक्ष रहे कुछ काल तक वे काशी हिंदू विश्वविद्यालय में इंण्डोलांजी विभाग के अध्यक्ष  भी रहे.डॉ० अग्रवाल ने मुख्य रूप से पुरातत्व को ही अपना विषय बनाया.इन्होंने प्रागैतिहासिक वैदिक तथा पौराणिक साहित्य के मर्म का उद्घाटन किया.और अपनी रचनाओं में संस्कृति और प्राचीन भारतीय इतिहास का प्रमाणित रूप प्रस्तुत किया. वे अनुसन्धान, निबंधकार के और सम्पादक के रूप में भी प्रतिष्ठित रहे.

कृतियाँ- 

डॉ० अग्रवाल ने निबंध रचना शोध  और संम्पादन के क्षेत्र में महत्वपूर्ण कार्य किया है.उनकी मुख्य रचना अग्रलिखित है.                                                               

(1)निबंध-सग्रह- 

  • (1) पृथिवी- पुत्र
  • (2) कला और संस्कृत    
  • (3) कल्पवृक्ष,
  • (4) भारत की मौलिक एकता
  • (5) माता भूमि
  • (6)वाग्धार आदि                                                           

( 2) शोध- पाणिनिकालीन भारत.                                        

(3) सम्पादन –

  • (1) जायसीकृत पद्मावत की संजीवनी व्याख्या . 
  • (2) बाणभटट के हर्षचरित का सास्कृतिक अध्ययन.

इसके अतिरिक्त इन्होंने पालि, प्राकृत और सस्कृत के अनेक ग्रन्थों का भी सम्पादन किया.

भाषा- शैली-

अग्रवाल की भाषा शुद्ध और परिष्कृत खडी बोली है जिसमें व्यावहारिकता, सुबोधता, और स्पष्टता सर्वत्र  विद्यमान है.इन्होंने अपनी भाषा में अनेक देशज शब्दों का प्रयोग किया है;जिससे भाषा में सरलता और सुबोधता उत्पन्न हुई है.इनकी भाषा में उर्दू, अग्रेजी आदि की शब्दावली, मुहावरो तथा लोकोक्तियों का प्रयोग प्रायः नही हुआ है.इस प्रकार प्रौढ, सस्कृतनिष्ठ और प्रांजल भाषा में गम्भीरता के साथ सुबोधता, प्रवाह और लालित्य विद्यमान है.शैली के रूप में इन्होंने गवेषणात्मक, व्याख्यात्मक एवं उध्दरण शैलियों का प्रयोग प्रमुखता से किया है.

हिन्दी साहित्य में स्थान-

पुरातत्व विशेषज्ञ डॉ वासुदेवशरण अग्रवाल हिंदी साहित्य में पंणिडत्यपूर्ण एवं सुललित निबंधकार के रूप में प्रसिद्ध है.पुरातत्व व अनुसंधान के क्षेत्र में उनकी समता कर पाना अत्यंत कठिन है.उन्हें एक विद्वान टीकाकार एवं साहित्यिक ग्रंथों के कुशन संपत्ति के रूप में भी जाना जाता है.अपनी विवेचना -पध्दति की मौलिकता एवं विचारशीलता के कारण वे सदैव स्मरणीय रहेंगे.

 

Leave a Comment

Copy link
Powered by Social Snap