जीवन परिचय : जी. सुन्दर रेड्डी | Jivan Prichay Jee Sundar Reddi

जीवन परिचय : जी. सुन्दर रेड्डी 

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श्री जी. सुन्दर रेड्डी का जन्म वर्ष 1919 मे आंध्र प्रदेश मे हुआ था। इनकी आरम्भिक शिक्षा संस्कृत एवं तेलगु भाषा मे हुई व उच्च शिक्षा हिंदी मे। श्रेष्ठ विचारक, समालोचक एवं उत्कृष्ट निबंधकार प्रो. जी. सुन्दर रेड्डी लगभग 30 वर्षो तक आंध्र विश्वविद्यालय मे हिंदी विभाग के अध्यक्ष रहे। इन्होने हिंदी और तेलगु साहित्य के तुलनात्मक अध्ययन पर पर्याप्त काम किया।30 मार्च,2005 मे इनका स्वर्गवास हो गया।

साहित्यिक सेवाए

श्रेष्ठ विचारक, सजग समालोचक, सशक्त निबंधकार, हिंदी और दक्षिण की भाषाओ मे मैत्री – भाव के लिए प्रयत्नशील, मानवतावादी दृष्टिकोण के पक्ष पाती प्रो. जी. सुन्दर रेड्डी का व्यक्तित्व और कृतित्व अत्यंत प्रभावशाली है। ये हिंदी के महान पंडित है। अहिंदी भाषी प्रदेश के निवासी होते हुए भी प्रो. जी. सुन्दर रेड्डी का हिंदी पर अच्छा अधिकार है। इन्होने दक्षिण भारत मे हिंदी भाषा के प्रचार – प्रसार मे महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।

कृतिया

प्रो. जी. सुन्दर रेड्डी के अब तक आठ ग्रंथ प्रकाशित हो चुके है। इनकी जिन रचनाओ से साहित्य – संसार परिचित है, उनके नाम इस प्रकार है –

1: साहित्य और समाज

2 : मेरे विचार

3 : हिंदी और तेलगु : एक तुलनात्मक अध्ययन

4 : दक्षिण की भाषाओ और उनका साहित्य

5 : वैचारिकी

6 : शोध और बोध

7 : वेलुगु वारुल ( तेलगु )

8 : ‘ लेंग्वेज प्रॉब्लम इन इंडिया ‘ ( सम्पादित अंग्रेजी grn )

इनके अतिरिक्त हिंदी, तेलगु तथा अंग्रेजी पत्र – पत्रिकाओं मे इनके अनेक निबंध प्रकाशित हुए है।

भाषाशैली

प्रो. जी. सुन्दर रेड्डी की भाषा शुद्ध, परिष्कृत, परिमार्जित तथा साहित्यिक खड़ी बोली है, जिसमे सरलता, स्पष्टता और सहजता का गुण विद्यमान है। इन्होने अपनी भाषा को प्रभावशाली बनाने के लिए मुहावरें तथा लोकोक्तिया का प्रयोग किया है।

हिंदी साहित्य मे स्थान

प्रो. जी. सुन्दर रेड्डी हिंदी साहित्य जगत के उच्च कोटि के विचारक, समालोचक एवं निबंधकार है।इसमें संदेह नहीं कि अहिंदी भाषी क्षेत्र से होते हुए भी इन्होने हिंदी भाषा के प्रति अपनी जिस निष्ठा व अटूट साधना का परिचय दिया है, वह अत्यंत प्रेरणास्पद है। अपनी सशक्त लेखनी से इन्होने हिंदी साहित्य जगत मे अपना विशिष्ट स्थान बनाया है।

 

 

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