जीवन परिचय : अयोध्यासिंह उपाध्याय ‘ हरिऔध ‘ | Ayodhyasingh Upadhyay Hariaudh
द्विवेदी युग के प्रतिनिधि कवि और लेखक अयोध्यासिंह उपाध्याय ‘ हरिऔध ‘ का जन्म 1865 ई. मे उत्तर प्रदेश के आजमगढ़ जिले मे निज़ामा बाद नामक स्थान पर हुआ था। उनके पिता का नाम पंडित भोलासिंह उपाध्याय तथा माता का नाम रुक्मिणी देवी था। स्वाध्याय से इन्होने hin, संस्कृत, फ़ारसी और अंग्रेजी भाषा का अच्छा ज्ञान प्राप्त कर लिया। इन्होने लगभग 20 वर्ष तक कानूनगो के पद पर कार्य किया। इनके जीवन का धयेय अध्यापन ही रहा। इसलिए उन्होंने काशी हिन्दू विश्वविद्यालय मे आवेतनिक रूप से अध्यापन कार्य किया। इनकी रचना ‘ प्रियप्रवास ‘ पर इन्हे हिंदी के सर्वोत्तम पुरस्कार ‘ मंगला प्रसाद पारितोषक ‘ से सम्मानित किया गया। वर्ष 1947 मे इनका निधन हो गया।
साहित्यिक गतिविधिया –
प्रारम्भ मे ‘ हरिऔध ‘ जी ब्रजभाषा मे काव्य रचना किया करते थे, परन्तु बाद मे महावीर प्रसाद द्विवेदी की प्रेरणा से उन्होंने खड़ीबोली हिंदी मे काव्य रचना की। हरिऔध जी के काव्य मे लोकमंगल का स्वर मिलता है।
कृतिया –
हरिऔध जी की 15 से अधिक लिखी रचनाओ मे तीन रचनाए विशेष रूप से उल्लेखनीय है – ‘ प्रियप्रवास ‘, ‘ पारिजात ‘, तथा वैदेही वनवास ‘।’ प्रियप्रवास ‘ खड़ीबोली मे लिखा गया पहला महाकाव्य है, जो 17 सर्गो मे विभाजित है। इसमें राधा – कृष्ण को सामान्य नायक – नायिका के स्तर से उठाकर विश्व – सेवी एवं विश्व प्रेमी के रूप मे चित्रित किया गया है। प्रबंध काव्यों के अतिरिक्त इनकी मुक्तक कविताओं के अनेक संग्रह – ‘ चोखे चौपदे ‘, चुभते चौपदे ‘, ‘ पद्द – प्रसून ‘, ‘ ग्राम – गीत ‘,’ कल्पलता ‘ आदि उल्लेखनीय है।
नाट्य कृतिया – ‘रुक्मिणी परिणय ‘।
उपन्यास – ‘ प्रेमकांता ‘, ठेठ हिंदी ka ठाठ ‘ तथा ‘ अधखिला फूल ‘।
हिंदी साहित्य मे स्थान –
हरिऔध जी अपने जीवनकाल मे ‘ कवि सम्राट ‘, साहित्य वाचस्पति ‘ आदि उपाधियों से सम्मानित हुए। हरिऔध जी अनेक साहित्यिक सभाओ एवं हिंदी साहित्य सम्मेलनो के sbhap भी रहे। इनकी साहित्यिक सेवाओ का ऐतिहासिक महत्व है। नि : संदेह ये हिंदी साहित्य की एक महान विभूति है।