भारतीय किसान: समस्याएं और समाधान

प्रस्तावना- जनतंत्र की सफलता के लिए आवश्यक है.कि रूप से भी स्वतंत्र हो, देश में ऐसी आर्थिक व्यवस्था की जाए, बेकारी और भुखमरी का अंत हो जाए तथा प्रत्येक नागरिक स्वस्थ सुखी और शिक्षित हो.स्वतंत्रता के उपरांत भारतीय स्वतंत्रता के उपरांत भारतीय कृषि के क्षेत्र में अनेक महत्वपूर्ण सुधार किए गए है.जिसके फलस्वरूप कृषि उत्पादन में निरंतर वृद्धि हुई है.इस दिशा में अभी और अधिक प्रयासों की आवश्यकता है.

भारतीय अर्थव्यवस्था में कृषि का महत्व- भारत की लगभग 74% जनसंख्या प्रत्यक्ष रूप से कृषि पर निर्भर है.इसी कारण भारत को एक कृषि प्रधान देश माना जाता है.भारतीय अर्थव्यवस्था में कृषि का महत्व निम्नलिखित तथ्यों से भली-भांति स्पष्ट हो जाएगा-

  1. भारतीयों की आजीविका का प्रमुख साधन- कृषि व्यवसाय में भारत की कुल जनसंख्या का लगभग 67℅ भाग प्रत्यक्ष रुप से संलग्न है; अत: कृषि भारतीयों की आजीविका का प्रमुख साधन है.
  2. कृषि राष्ट्रीय आय में एक बड़ा भाग प्रदान करती है- राष्ट्रीय आय का लगभग 31.7% कृषि आय से प्राप्त होता है.
  3. सर्वाधिक भूमि उपयोग- देश के कुल क्षेत्रफल के सर्वाधिक भाग लगभग 43℅ में खेती की जाती है.
  4. अनेक उद्योग कृषि पर आधारित है- भारत के अनेक उद्योग कच्चे माल के लिए कृषि पर ही आधारित है.जैसे- सूती वस्त्र, जूट, चीनी,हथकरघा , वनस्पति तेल उद्योग आदि.
  5. अंतरराष्ट्रीय व्यापार की अनेक वस्तुएं कृषि पर निर्भर है- भारत अपने कुल निर्यात का 70% भाग कृषि उपजो से बने पदार्थों रुप में निर्यात करता है.
  6. कृषि परिवहन सेवाओं का भी विकास करती है- कृषि उत्पादो लोगों ढोने में रेल सडक परिवहन का उल्लेखनीय योगदान है.इस प्रकार कृषि परिवहन, सेवा का भी विकास करतीहै

भारत में कृषक परिवारों का वर्गीकरण-कृषक परिवारों को भू-जोत के , आधार वर्गो में बांटा जा सकता हैं

  1. भूमिहीन कृषक परिवार – यह ग्रामीण क्षेत्रका सबसे बड़ा और सबसे गरीब समूह है.इसकी संख्या वाणी को ग्रामीण परिवारों 30℅ से भी अधिक है.भूमि श्रमिक दूसरे लोगों की भूमि पर मजदूरी पर काम करते है.और कभी- कभी भू-स्वामी परिवार के बंधुआ भी हो जाते है.
  2. सीमान्त कृषक परिवार – इस वर्ग में वे कृषक परिवार सम्मिलित किया जाते है.जिसके पास भूमि के इतने छोटे टुकडे होते है.कि वे केवल उस भूमि की आय पर ही अपना निर्वाह नहीं कर पाते अपितु उन्हें दूसरी लोगों भी भूमि पर खेतिहर मजदूरी के रूप में भी कार्य करना पड़ता है.
  3. लघु कृषक परिवार – लघु अथवा छोटा किसान वह है.जो आत्मनिर्भर तो होता है.किन्तु, उसकी पास बचतो पर्याप्त साधन नहीं होते इसके पास न तो अच्छी व पर्याप्त भूमि होती है.और ना ही अच्छी मशीनरी न अच्छी नस्ल के पशु और न ही नई विधियाँ होती है.
  4. धनी एवं सम्पन्न कृषक परिवार-ये कृषक, परिवार, अर्थाक दृष्टि से संपन्न होते है.उनके पास 5 हेक्टेयर भूमि जी लेकर 25 हेक्टेयर से भी अधिक भूमि पाई जाती है.

स्वतंत्रता के बाद फसलोत्पादन की प्रगति- साधन तो प्राप्ति के पश्चात सभी फसलों के उत्पादन और प्रति हेक्टेयर उत्पादन में प्रगति हुई है.पंचवर्षीय योजना के माध्यम से भी किसी उत्पादन में वृद्धि कहने के प्रयास के गए हाइब्रिड बीज खाद तथा और उर्वरको के प्रयोग सिंचाई सुविधाओं के विस्तार तथा कृषि मशीनकरण के द्वारा कृषि उत्पादों में अधिकाधिक हुई है.इस गति का सक्षिप्त विवरण इस प्रकार है- वर्तमान समय में भारत का चावल उत्पादन में विश्व मे चीन के बाद दूसरा तथा गेहू उत्पादक देशों में दूसरे स्थान पर है.ज्वार और बाजरा खरीद की प्रमुख फसलऔर मोटी अनाज है.इसके उत्पादन में भारत पर प्रथम स्थान पर है.विभिन्न प्रकार की जलवायु दशाओं ओर मिट्टीयो के होने के कारण मक्का का उत्पादन सर्वाधिक है.भारत दलहन, विश्व में सबसे बड़ा उत्पादन और उपभोक्ता है.तिलहन भी हमारे या कि महत्वपूर्ण फसलें तथा भोजन का अंग है.यहां पर विश्व की 75℅ तिल20℅ अरण्डी तथा 17℅ सरसो उत्पान्न की जाती है.गन्ने के गन्ना के क्षेत्रफल एवं उत्पादन की रिश्ता रिश्ता दृष्टि से भारत का विश्व में प्रथम स्थान है.कपास आज भी भारत की प्रमुख रेशेदार फसल है.वर्तमान में इनकी प्रति हेक्टेयर उपज 21 3 किग्राहो गई है.विश्व की खपत का 27℅ चाय का उत्पादन को भारत स्थान पर है.यह चाय की प्रति हेक्टेयर उपज 1678 किग्रा है. भारत में कहवा का उत्पादन दक्षिण पश्चिम क्षेत्र में किया जाता है.40℅ जूट, का उत्पादन भारत आज विश्व में प्रथम स्थान बनाएं हुए है.

हरित क्रांति-, हरित क्रांति का अभिप्राय कृषि में विज्ञानिक प उन्नत एवं प्रमाणिक बीज रसायनिक उर्वरक बहुफसली प्रणाली तथा सिंचाई के साधनो का विकास करके कृषि-, उत्पादन में वृद्धि करना है भारतीय समाज पर हरित क्रांति के समाजिक आर्थिक प्रभावो का विवेचन निंलिखित है-

  1. हरित क्रांति मैं तुम किसी कार्यक्रम जिसे भारत में चतुर्थ उससे पंचवर्षीय योजना के दौरान लागू किया गया था. इससे किसी उत्पादन में है.अभूतपूर्व वृद्धि हुई.
  2. स्वतन्त्रता- र प्राप्ति के बाद हम नकेवल खाद्यान उत्पादन में आत्मनिर्भर हुए है.अपितु समीपवर्ती, दोषी देशों को खदानों का निर्यात भी करने लगे है.
  3. गहन, मिश्रण तथा व्यापारिक कृषि, फसलो की हेर फेर, प्रणाली पाटीदार अर्थात सीढीदार कृषि, ऋणो की सुगम व्यवस्था कृषि साधनो को जुटाने मे समर्थन मूल्य मृदा – परीक्षपरीक्षण की सुविधा आदि के सुविधा आदि के सुलभ होने से फसलोत्पादन मे कई गुना वृद्धि हुई है.
  4. कृषको को, उनकी उपज के लाभकारी मूल्य मिलने के फलस्वरूप उनकी क्रयशक्ति में वृद्धि हो गई है.आज भी ना केवल कृषि साधनों को जुटाने मैं समर्थ है.वरन् जीवनोपयोगी अधिकांश वस्तु भी उन्हें उपलब्ध है.

जनसंख्या- वृद्धि के कारण भारतीय कृषि में उत्पान्न होनेवाली समस्याएं,- जनसंख्या वृद्धि के कारण भारतीय कृषि में निम्नलिखित समस्याओं में जन्म ले लिया है-

  1. जनसंख्या का बढ़ता भारी दबाव-, भारत भारत में जनसंख्या बड़ी तीव्रगति से बढ़ रही है.वर्तमान में यहां 125 करोड़ से ऊपर है.इस वृद्धि से प्रति व्यक्ति भूमि की उपलब्धि कम होती जा रही है.अनूप जाऊ, भूमि को कृषि योग्य भूमि में परिवर्तित किया जा रहा है.पहाड़ों की चोटियों तक पर सीढ़ीदार खेती बनाए जा चुके है.और विशाल वन क्षेत्रों को भी काट डाला गया है.परंतु इतना होने के उपरांत भी कृष्य भूमि प्रति व्यक्ति औसत घटता ही जा रहा है.
  2. कृषि विकास में बाधा-, यद्यपि विभिन्न प्रयासों तथा हरित क्रांति द्वारा भरपूर कृषि उत्पादन लेने के प्रयास किए गए है.तथापि स्थानीय मांग अभी तीव्रगति से, बढ़ती जा रही है.यदि हम उपलब्ध भूमि से और यदि हम उत्पादन लेने का प्रयास करते है.तो उसके ऋणात्मक परिणाम भी सामने आएंगे
  3. जोतों का घटता आकार-, भारत में अधिकांश जोते छोटी है.तोता तथा उनका वितरण भी असमान है.इन छोटी जूतों के कारण ही भारतीय कृषि निर्वाह कृषि बनी हुई है.अधिकांश किसानों की जोतें आर्थिक दृष्टि से लाभकारी नहीं है.
  4. मृदा की, प्रकृतिक उर्वरता में कमी-वनो चरागाहों के कम होते जाने की कारण मृदा की प्रकृतिक उर्वरता को बनाए रखने की सं स्त्रोत सूखते जा रहे है.इन परिस्थितियों में निर्वाह कृषि निरर्थक बन गई है.कृषि में रसायनिक उर्वर को कीटनाशकों के उपयोग अधिक उत्पादन प्राप्त करने के लिए किए जा रहे है.परंतु इन रसायनों के प्रयोग से भी मृदा की प्रकृतिक उर्वरता में कमी आती जा रही है.

देश में भूमि-सुधार एवं उत्पादन वृद्धि के लिए किए गए प्रयास- हमारे देश में विभिन्न पंचवर्षीय योजना योजनाओं तथा कार्यक्रमों के आधार पर भूमि सुधार एवं उत्पादन वृद्धि के लिए अनेक प्रयास किए गए है.इन प्रयासों का सक्षिप्त विवरण इस प्रकार है-

(क) भूमि सुधार संबंधित प्रयास- भारत में भूमि-सुधार के लिए किए उल्लेखनीय प्रयासों के अंतर्गत सभी राज्यों में जमींदारी प्रथा का उन्मूलन कर कानूनो के आधार पर लगना ही धनराशि सुनिश्चित कर दी गई है.विभिन्न अधिनियमों के आधार पर भू-स्वामियों द्वारा पाटटेदारों को बेदखल करने के, अधिकार को समाप्त कर दिया गया और अधिकतम सीमा से अधिक भूमिका राज्य सरकार द्वारा अधिग्रहण कर लिया गया है.इस भूमि को और भूदान आंदोलन के माध्यम से प्राप्त लगभग 12 लाख एकड़ भूमि को भूमिहीन किसानों में वितरित किया जा चुका है.भूमि की चकबंदी के साथ-साथ सरकार द्वारा सहकारी खेती की दिशा में भी किसानों को नियंत्रण प्रेरित किया जा रहा है.

(ख) उत्पादन वृद्धि के प्रयास- भारत में कृषि के क्षेत्र में उत्पादन वृद्धि के लिए निम्नलिखित प्रयास किए गए हैं-

  1. सरकार ने अधिक उपज देने वाले सुधारें और परिणाम प्रमाणित बीजों के वितरण की भी व्यवस्था की है.इसके उपयोग से गेहूं तथा चावल का उत्पादन 76℅तक बढ़ गया है.
  2. देश में रसायनिक उर्वरक के 50 कारखाने स्थापित किए गए है.इसके प्रयोग से कृषि उत्पादन में अत्यधिक वृद्धि हुई है.
  3. कृषि उत्पादन बढ़ाने के लिए सिंचाई सुविधाएं जुटाई गई है.
  4. पौधों तथा फसलों को कीट- पतंगो से बचाने की के लिए कीटनाशक दवाइओ का प्रयोग किया गया है.
  5. कृषि उत्पादन बढ़ाने के लिए गहन, कृषि जिला कार्यक्रम तथा गहन कृषि क्षेत्र कार्यक्रम लागू किया गया है.इनमें बहुफसली कार्यक्रम अपनाकर उत्पादन बढ़ाने का प्रयास किया गया है
  6. कृषि में यंत्रों का प्रयोग करके उत्पादन बढ़ाने के प्रयास किए जा रहे हैं.सरकार कम ब्याज दर पर किसानों को यंत्र उपलब्ध करा रही है.
  7. देश में कृषि शिक्षण के लिए 21 विश्वविद्यालय, खोलें गए है.भारतीय कृषि अनुसन्धान परिषद भी इस ओर , प्रयत्नशील है.रेडियो दूरदर्शन पर भी कृषि उत्पादन बढ़ाने के उपाय बताए जाते है.

भारतीय कृषि की भावी संभावनाएं – भारत में कृषि के क्षेत्र में हुई प्रगति तथा देश में उपलब्ध संसाधनों की दृष्टि से भारतीय कृषि के विकास में की पर्याप्त संभावनाएं है.इनमें से कुछ प्रमुख अग्रलिखित है-

  1. उर्वरक उपभोग और अधिक उपज देने वाली तकनीकी का विस्तार करके उन फसलों के क्षेत्र में भी उत्पादन एवं उत्पादक करता में वृद्धि करना संभव है.जिनमें अभी तक अपेक्षित उत्पादन स्तर नहीं था.
  2. लघु मध्यम एवं विशाल स्तरीय सिंचाई परियोजनाओं का विस्तार करके दूर -दराज के क्षेत्रों में भी कृषि- उत्पादकता में वृद्धि करना संभव है.
  3. जहां सिंचाई के लिए जल पहुंचना संभव नहीं है.ऐसी कृषि भूमि में उचित प्रकार के प्र प्रौद्योगिकीय सुधारों को लागू करने की संभावनाएं है.
  4. भू- सुधार कार्यक्रमों को कठोरता से लागू करके के दोषों से छुटकारा पाया जा सकता है.

उपसंहार- विगत वर्षों से, देश में हुई कृषि संबंधित प्रयासों के कारण कृषि उत्पादन तीव्रगति से वृद्धि हुई है.देश मे सर्वत्र हरित क्रांति की लहर दौड़ गई है.खाद्यान्नों के, क्षेत्र में हम पर्याप्त सीमा तक न केवल आत्मनिर्भर हो गए है.वरन् हमने इनका निर्यात भी आरंभ कर दिया है.इसमें संदेश नहीं की भारतीय कृषकों ने कृषि में नवीनतम साधनों का उपयोग करके जो क्रांतिकारी परिवर्तन किए है. उनसे उनकी तत्परता एवंं दृढ़ सकल्प का बोध होता है.फिर भी इतना स्पष्ट है.कि, जनसंख्या भौगोलिक क्षेत्रफल और उपलब्ध संसाधनों की दृष्टि से इतनी उत्तर गति अपेक्षित थी. नहीं हो सकी है.अत: इस दिशा में और अधिक तत्परता के साथ समन्वित प्रयास किए जाने की आवश्यकता है.

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