यूरोप में राष्ट्रवाद का उदय – महत्वपूर्ण प्रश्न -1

18 वीं शताब्दी में समस्त यूरोप में अधिकांशत: राजाओं का शासन था। इस प्रकार वहां की शासन-प्रणाली राजधानी क्रिया थी। समाज में कुलीन वर्गों का प्रभुत्व था साधारण जनता की दशा ठीक नहीं थी। यूरोप के विभिन्न देशों के शासक और कुलीन वर्ग के लोग जनता पर विभिन्न प्रकार के अत्याचार करते थे। उन्हें किसी भी प्रकार की आजादी नहीं थी। इसके परिणाम स्वरूप ही यूरोप के देश की जनता में विद्रोह की भावना उत्पन्न होनी शुरू हो गई।वह अपनी आजादी के लिए अनेक प्रकार की कल्पना करने लगे, योजनाएं बनाने लगे।इन देशों के बुद्धिजीवियों के नेतृत्व में कितने ही क्रांतिकारी संगठनों की स्थापना हुई और जनता ने अपने क्रांतिकारी नेताओं के नेतृत्व में अत्याचारी शासकों के प्रति अपनी मांगे रखनी शुरू कर दी तथा अनेक विद्रोह और आंदोलन की एक साथ ही यूरोप में कई बड़ी क्रांति अभी हुई। यूरोप की जनता के यह सभी विद्रोह, आंदोलन और क्रांतिया; मुख्य रूप से इस विचार पर आधारित थे कि उनका अपना एक राष्ट्रीय हो और उसमें उन्हें सभी प्रकार के आवश्यक अधिकार और स्वतंत्रता प्राप्त हो। ‘राष्ट्री’ के विचार की इस भावना ने ही सारे यूरोप में राष्ट्रवाद की विचारधारा का विकास किया। यूरोप में यह राष्ट्रवाद अनेक रूप से सामने आया। अंत में इसी राष्ट्रवाद कि वहां जीत हुई और उनके देश स्वतंत्र राष्ट्र बन सके। वहां राजतंत्र धीरे-धीरे समाप्त होता चला गया। साथ ही साम्राज्यवादी देशों के अधीन देश भी एक-एक करके स्वतंत्र होते चले गए उन देशों में वहां के नागरिकों को सभी आवश्यक अधिकार और स्वतंत्रता प्रदान की गई इस प्रकार गुलामी और अत्याचारों से मुक्ति पाकर यूरोपवासी आजादी के साथ विकास और प्रगति की राह पर आगे बढ़ सके। इस प्रकार यूरोप में राष्ट्रवाद के उदय के कारण ही वहां राजन प्रिय वह साम्राज्यवाद के विरुद्ध अनेक विद्रोह और क्रांतियां हुई और यूरोप में राष्ट्र राज्यों की स्थापना संभव हो सकी।

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