MP Board Class 10th Social Science Solutions Chapter 1 Resources of India in Hindi भारत के संसाधन

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वस्तुनिष्ठ प्रश्न

सही विकल्प चुनकर लिखिए

प्रश्न 1.कौन-सा कारक मृदा के निर्माण में सहयोगी नहीं है ? (2009, 16)

(i) वायु और जल,

(ii) सड़े-गले पेड़-पौधे तथा जीव-जन्तु,

(iii) शैल और तापमान,

(iv) पानी का इकट्ठा होना।

उत्तर:

(iv) पानी का इकट्ठा होना।

प्रश्न 2.

आन्ध्र प्रदेश और उड़ीसा के डेल्टा क्षेत्रों तथा गंगा के मैदानों में सामान्यतः कौन-सी मिट्टी पाई जाती (2017)

(i) लाल मिट्टी

(ii) जलोढ़ मिट्टी

(iii) काली मिट्टी

(iv) लेटेराइट मिट्टी।

उत्तर:

(ii) जलोढ़ मिट्टी

प्रश्न 3.

मृदा संरक्षण के लिए समोच्च रेखा बन्ध बनाने की विधि प्रायः किस क्षेत्र में उपयोग में लायी जाती है?

(i) डेल्टा प्रदेश

(ii) पठारी प्रदेश

(iii) पहाड़ी क्षेत्र

(iv) मैदानी क्षेत्र।

उत्तर:

(i) डेल्टा प्रदेश

प्रश्न 4.

मानव सर्वाधिक उपयोग करता है

(i) भौम जल

(ii) महासागरीय जल

(ii) पृष्ठीय जल,

(iv) वायुमण्डलीय जल।

उत्तर:

(iii)

प्रश्न 5.

केवलादेव घाना पक्षी विहार स्थित है (2009)

(i) केरल में

(ii) राजस्थान में

(iii) पश्चिम बंगाल में,

(iv) मध्य प्रदेश में।

उत्तर:

(ii)

रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए

  1. संयुक्त वन प्रबन्धन व्यवस्था में ………… का महत्वपूर्ण स्थान है। (2015, 17)
  2. सामाजिक वानिकी योजना को ………… से वित्तीय सहायता प्राप्त हो रही है। (2014)
  3. वन अग्नि नियन्त्रण परियोजना ………… के सहयोग से संचालित है। (2016, 18)
  4. वन्य जीवों की सुरक्षा एवं संरक्षण हेतु ………. एवं ………….. की स्थापना की गई है।

उत्तर:

  1. वन सुरक्षा समितियों
  2. विश्व बैंक
  3. यू. एन. डी. पी.
  4. राष्ट्रीय उद्यानों, वन्य जीव अभयारण्यों।

सही जोड़ी मिलाइए

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उत्तर:

  1. → (क)
  2. → (ग)
  3. → (ख)
  4. → (ङ)
  5. → (घ)

अति लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.

मृदा अपरदन से क्या तात्पर्य है ? (2014, 18)

उत्तर:

बहते हुए जल, हवा तथा जीव-जन्तुओं व मानव की क्रियाओं द्वारा भू-पटल के ऊपरी उपजाऊ मिट्टी की परत के कट जाने, बह जाने और उड़कर अन्यत्र रूपान्तरित हो जाने को मिट्टी का कटाव या मृदा अपरदन कहा जाता है।

प्रश्न 2.

मृदा संरक्षण से आप क्या समझते हैं ? (2015)

उत्तर:

मिट्टी के अपरदन या क्षय को रोकना ही मृदा का संरक्षण है। बढ़ती हुई जनसंख्या के कारण प्राकृतिक संसाधनों का बड़े पैमाने पर विनाश हुआ है। इसलिए मृदा संरक्षण द्वारा विनाश रोकना आवश्यक है।

प्रश्न 3.

भौम जल पाने के स्रोत क्या हैं ? (2017)

उत्तर:

इसे कुओं व ट्यूबवेलों के द्वारा धरातल पर लाया जाता है तथा मानवीय उपयोग के अतिरिक्त कृषि भूमि की सिंचाई, बागवानी, उद्योग आदि के लिए उपयोग किया जाता है।

प्रश्न 4.

संशोधित वन नीति 1988 का मुख्य आधार क्या है ?

उत्तर:

7 दिसम्बर, 1988 को नवीन वन नीति घोषित की गई जिसके मुख्य आधार निम्न हैं –

  1. पर्यावरण में स्थिरता लाना
  2. जीव-जन्तुओं व वनस्पति जैसी प्राकृतिक धरोहर की सुरक्षा करना
  3. लोगों की बुनियादी जरूरतें पूरी करना।

प्रश्न 5.

सामाजिक वानिकी योजना की सफलता का आधार क्या है ?

उत्तर:

सामाजिक वानिकी योजना की सफलता के आधार निम्नलिखित हैं –

  1. वन कानूनों को प्रभावी ढंग से लागू करके हरे-भरे वृक्षों को काटने पर रोक लगाना।
  2. हिमालय क्षेत्र में वृक्षों की कटाई को रोकने एवं पशुओं की मुक्त चराई पर उचित रोकथाम की व्यवस्था करना।

प्रश्न 6.

भारतीय वन प्रबन्धन संस्थान की स्थापना क्यों की गई है ?

उत्तर:

वन संसाधन व प्रबन्धन व्यवसाय की नवीन बातों की जानकारी देने हेतु 1978 में स्वीडिश कम्पनी की सहायता से अहमदाबाद में इस संस्थान की स्थापना की गई। केन्द्र सरकार ने भोपाल में भी भारतीय वन प्रबन्ध संस्थान की स्थापना की है। यहाँ स्नातकोत्तर व डॉक्टरेट की उपाधि प्रदान की जाती है।

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.

मृदा-परिच्छेदिका से क्या तात्पर्य है ? स्पष्ट कीजिए।

उत्तर:

मृदा की क्रमिक क्षैतिज परतों, विन्यास और उनकी स्थितियों को दिखाने वाली ऊर्ध्व काट को मृदा परिच्छेदिका कहते हैं। इस प्रकार मृदा के परतों के विन्यास को मृदा परिच्छेदिका कहते हैं-

(i) ऊपरी परत को ऊपरी मृदा

(ii) दूसरी परत को उप मृदा

(iii) तीसरी परत को अपक्षयित मूल चट्टानी पदार्थ, तथा

(iv) चौथी परत में मूल चट्टानें होती हैं। ऊपरी परत की ऊपरी मृदा ही वास्तविक मृदा की परत है। इसकी सबसे महत्वपूर्ण विशेषता इसमें ह्यूमस तथा जैव पदार्थों का पाया जाना है। दूसरी परत में उपमृदा होती है, जिसमें चट्टानों के टुकड़े, बालू, गाद और चिकनी मिट्टी होती है, तीसरी परत में अपक्षयित मूल चट्टानी पदार्थ तथा चौथी परत में मूल चट्टानी पदार्थ होते हैं।

प्रश्न 2.

मानव जीवन में मृदा का क्या महत्व है ? समझाइए। (2017)

उत्तर:

मानव जीवन में मृदा का अत्यधिक महत्व है, विशेषकर किसानों के लिए। सम्पूर्ण मानव जीवन मृदा पर निर्भर करता है। सम्पूर्ण प्राणी जगत का भोजन प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप में मृदा से प्राप्त होता है। हमारे वस्त्रों के निर्माण में प्रयुक्त कपास, रेशम, जूट व ऊन प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से हमें मृदा से ही मिलते हैं; जैसे-भेड़, मृदा पर उगी घास खाती है और हमें ऊन देती है। रेशम के कीड़े वनस्पति पर निर्भर हैं और वनस्पति मृदा पर उगती है। भारत में लाखों घर मिट्टी के बने हुए हैं। हमारा पशुपालन उद्योग, कृषि और वनोद्योग मृदा पर आधारित हैं। इस प्रकार मृदा हमारे जीवन का प्रमुख आधार है।. विलकॉक्स ने मृदा के विषय में कहा है कि, “मानव-सभ्यता का इतिहास मृदा का इतिहास है और प्रत्येक व्यक्ति की शिक्षा मृदा से ही प्रारम्भ होती है।”

प्रश्न 3.

लाल मिट्टी एवं लैटेराइट मिट्टी में अन्तर स्पष्ट कीजिए।

उत्तर:

लाल मिट्टी

  1. यह मिट्टी शुष्क और तर जलवायु में प्राचीन रवेदार और परिवर्तित चट्टानों की टूट-फूट से बनती है।
  2. यह मिट्टी लाल, पीली एवं चाकलेटी रंग की होती है। इस मिट्टी में लोहा, ऐल्युमिनियम और चूना अधिक होता है। यह मिट्टी अत्यन्त रन्ध्रयुक्त है।
  3. यह मिट्टी उत्तर प्रदेश के बुन्देलखण्ड से लेकर दक्षिण के प्रायद्वीप तक पायी जाती है। यह मध्य प्रदेश, झारखण्ड, पश्चिम बंगाल, मेघालय, नगालैण्ड, उत्तर प्रदेश, राजस्थान, तमिलनाडु तथा महाराष्ट्र में मिलती है।
  4. इस मिट्टी में बाजरा की फसल अच्छी पैदा होती है, किन्तु गहरे लाल रंग की मिट्टी कपास, गेहूँ, दालें और मोटे अनाज के लिए उपयुक्त है।

लैटेराइट मिट्टी

  1. इस मिट्टी का निर्माण ऐसे भागों में हुआ है, जहाँ शुष्क व तर मौसम बारी-बारी से होता है। यह लैटेराइट चट्टानों की टूट-फूट से बनती है।
  2. यह मिट्टी चौरस उच्च भूमियों पर मिलती है। इसमें वनस्पति का अंश पर्याप्त होता है। गहरी लेटेराइट मिट्टी में लोहा, ऑक्साइड और पोटाश की मात्रा अधिक होती है।
  3. यह तमिलनाडु के पहाड़ी भागों और निचले क्षेत्रों, कर्नाटक के कुर्ग जिले, केरल राज्य के चौड़े समुद्री तट, महाराष्ट्र के रत्नागिरि जिले, पश्चिम बंगाल के बेसाइट और ग्रेनाइट पहाड़ियों के बीच तथा उड़ीसा के पठार के ऊपरी भागों में मिलती है।
  4. यह मिट्टी चावल, कपास, गेहूँ, दाल, मोटे अनाज, सिनकोना, चाय, कहवा आदि फसलों के लिए उपयोगी है।

प्रश्न 4.

जल संरक्षण के प्रमुख उपाय क्या हैं ?

उत्तर:

जल एक मूल्यवान सम्पदा है। इससे हमारी मूलभूत आवश्यकताएँ पूर्ण होती हैं। पृथ्वी पर जीवन का आधार जल ही है। जल संसाधनों की सीमित आपूर्ति तेजी से बढ़ती हुई माँग और इनकी असमान उपलब्धता के कारण इनका संरक्षण आवश्यक है। इसके प्रमुख उपाय निम्न प्रकार हैं –

  1. वर्षा जल संग्रहण तथा इसके अपवाह को रोकना।
  2. छोटे-बड़े सभी नदी जल संभरों का वैज्ञानिक प्रबन्ध करना।
  3. जल को प्रदूषण से बचाना।

प्रश्न 5.

वर्षा जल का संग्रहण क्यों जरूरी है ? (2018)

उत्तर:

वर्षा जल संग्रहण का आशय है कि वर्षा के जल का उसी स्थान पर प्रयोग किया जाए जहाँ यह भूमि पर गिरता है। जल का प्रथम स्रोत वर्षा ही है। पानी के अन्य विभिन्न स्रोतों; जैसे-कुँओं, नल-कूपों, तालाबों, झरनों का मुख्य आधार वर्षा ही है। इसके प्रमुख लाभ निम्न हैं –

  1. इसे साफ करके स्थानीय लोगों की जल उपयोग की आवश्यकता को पूरा किया जा सकता है।
  2. इसे वर्षा के कम होने या न होने के समय खेतों की सिंचाई करने के लिए भी उपयोग में लाया जा सकता है।
  3. इस ढंग से जल संग्रहण के परिणामस्वरूप आस-पास के भागों में बाढ़ की भी स्थिति नहीं रहती।
  4. इस जल का एक लाभ यह भी होता है कि धरातल के नीचे पानी का स्तर ऊँचा रहता है जिसे कुँओं और ट्यूबवेलों द्वारा बाहर निकाल कर प्रयोग में लाया जा सकता है।

प्रश्न 6.

वनों का संरक्षण क्यों आवश्यक है ? (2017)

उत्तर:

वन प्रकृति की अमूल्य देन हैं। यह महत्वपूर्ण प्राकृतिक संसाधन है। ऐसा अनुमान है कि प्रारम्भ में पृथ्वी का एक चौथाई भाग (25 प्रतिशत) वनों से ढका हुआ था, किन्तु मानव विकास के साथ खेती, आवास तथा कल-कारखानों के लिए भूमि प्राप्त करने हेतु वनों की बड़े पैमाने पर कटाई कर दी गई। फलस्वरूप अब पृथ्वी के केवल 15 प्रतिशत भाग पर ही वन पाये जाते हैं। वनों की इस कमी के कारण भू-अपरदन, अनावृष्टि, बाढ़ आदि समस्याएँ आज मानव के समक्ष आ खड़ी हुई हैं। अत: वनों का संरक्षण आवश्यक है।

प्रश्न 7.

वन आधारित उद्योगों का उल्लेख कीजिए।

उत्तर:

वन हमारे उद्योग-धन्धों की आधारशिला हैं। ये उद्योगों को कच्चा माल प्रदान करते हैं। अनेक उद्योग-धन्धे प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से वनों पर निर्भर हैं। वनों पर निम्न उद्योग-धन्धे निर्भर हैं-वनों से प्राप्त लकड़ी, घास, सनोवर तथा बाँस से कागज उद्योग; चीड़, स्पूस तथा सफेद सनोवर से दियासलाई उद्योग; लाख से लाख उद्योग; मोम से मोम उद्योग; महुआ की छालें व बबूल से गोंद; चमड़ा उद्योग; चन्दन, तारपीन और केवड़ा से तेल उद्योग; जड़ी-बूटियों से औषधि उद्योग विकसित हुए हैं। इसके अलावा वनों से प्राप्त वस्तुओं; जैसे-तेंदूपत्ता, बेंत, शहद, मोम आदि से लघु उद्योगों का विकास हुआ है।

प्रश्न 8.

वन जलवायु को कैसे नियन्त्रित करते हैं ?

उत्तर:

वन जलवायु को प्रभावित करते हैं। वन ठण्डी वायु के प्रवाह को रोकते हैं, गरम व तेज हवाओं के प्रवाह को कम करते हैं। इससे वन क्षेत्र की जलवायु समशीतोष्ण बनी रहती है। साथ ही वनों को वर्षा का संचालक कहा जाता है। वन बादलों को अपनी ओर आकर्षित करते हैं जिससे वर्षा होती है। इस प्रकार वन जलवायु को नियन्त्रित करते हैं।

प्रश्न 9.

दिसम्बर, 1988 की वन नीति की प्रमुख विशेषताएँ लिखिए।

उत्तर:

7 दिसम्बर, 1988 को घोषित वन नीति की प्रमुख विशेषताएँ निम्न प्रकार हैं –

  1. वनों की उत्पादकता बढ़ाने पर ध्यान दिया जाए।
  2. पहाड़ी, घाटियों व नदियों के जलग्रहण क्षेत्रों में वन बढ़ाए जाएँ।
  3. जंगलों पर आदिवासियों और निर्धनों के पारस्परिक अधिकार बरकरार रखे जाएँ।
  4. ग्रामीण व आदिवासी इलाकों के लोगों को ईंधन, चारा, छोटी इमारती लकड़ी की पूर्ति पर ध्यान दिया जाए।
  5. ग्रामीण और कुटीर उद्योगों को छोड़कर वन पर आधारित उद्योगों को अनुमति न दी जाए।
  6. उद्योगों को रियायती दर पर वन उत्पाद प्राप्त करने पर रोक लगायी जाए।
  7. वर्तमान वनों को कटाई से बचाया जाए और पर्यावरण सन्तुलन बनाये रखा जाए।

प्रश्न 10.

सामाजिक वानिकी योजना क्या है ? (2018)

उत्तर:

सामाजिक वानिकी योजना-वृक्षारोपण की यह योजना विश्व बैंक से वित्तीय सहायता प्राप्त है। इसमें चक वानिकी, विस्तार वानिकी एवं शहरी वानिकी के अन्तर्गत खेतों, सड़कों, रेल लाइन के किनारे वृक्षारोपण किया गया है।

‘हर बच्चे के लिए एक पेड़’ स्कूलों व कॉलेजों में यह नारा विकसित किया गया है। वन महोत्सव का प्रचार-प्रसार कर फार्म वृक्षारोपण, सड़कों, नहरों एवं रेल लाइनों के किनारे वृक्षारोपण कर जनभागीदारी को बढ़ावा दिया जाना आवश्यक है। वन कानूनों को प्रभावी ढंग से लागू करके हरे-भरे वृक्षों को काटने पर रोक लगाई गई है। हिमालय क्षेत्र में वृक्षों की कटाई को रोकने एवं पशुओं की मुक्त चराई पर उचित रोकथाम की व्यवस्था की गई है।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.

भारत में मिट्टियों के विभिन्न प्रकार, उनकी विशेषताएँ एवं वितरण को स्पष्ट कीजिए।

उत्तर:

भारत में मिट्टियों का वर्गीकरण

(1) जलोढ़ मिट्टी-यह अत्यन्त महत्वपूर्ण मिट्टी है। भारत के काफी बड़े क्षेत्रों में यही मिट्टी पायी जाती है। इसके अन्तर्गत 40 प्रतिशत भाग सम्मिलित हैं। वास्तव में सम्पूर्ण उत्तरी मैदान में यही मिट्टी पायी जाती है। यह मिट्टी हिमालय से निकलने वाली तीन बड़ी नदियों-सतलुज, गंगा तथा ब्रह्मपुत्र और उनकी सहायक नदियों द्वारा बहाकर लायी गयी है और उत्तरी मैदान में जमा की गयी है। हजारों वर्षों तक सैकड़ों किलोमीटर की दूरी तय करते हुए नदियों ने अपने मुहानों पर मिट्टी के बहुत बारीक कणों को जमा किया है। मिट्टी के इन बारीक कणों को जलोढ़क कहते हैं। जलोढ़ मिट्टियाँ सामान्यतः सबसे अधिक उपजाऊ होती हैं।

विशेषताएँ –

  1. इस मिट्टी में विभिन्न मात्रा में रेत, गाद तथा मृत्तिका (चौक मिट्टी) मिली होती है।
  2. यह मिट्टी संबसे अधिक उपजाऊ होती है।
  3. इस मृदा में साधारणतया पोटाश, फॉस्फोरिक अम्ल तथा चूना पर्याप्त मात्रा में होता है।
  4. इसमें नाइट्रोजन तथा जैविक पदार्थों की कमी होती है।
  5. इसमें कुएँ खोदना और नहरें निकालना सरल होता है, अत: यह कृषि के लिए बहुत ही उपयोगी है।

(2) काली मिट्टी – इस मिट्टी का रंग काला है। अतः इसे काली मिट्टी कहते हैं। इस मिट्टी का निर्माण लावा के प्रवाह से हुआ है। इस मिट्टी में मैग्मा के अंश, लोहा व ऐलुमिनियम की प्रधानता पायी जाती है। इस मिट्टी में नमी बनाये रखने की अद्भुत क्षमता होती है। इस मिट्टी का स्थानीय नाम ‘रेगड़’ है।

विशेषताएँ –

  1. काली मिट्टी का निर्माण बहुत ही महीन मृत्तिका (चीका) के पदार्थों से हुआ है।
  2. इसकी अधिक समय तक नमी धारण करने की क्षमता प्रसिद्ध है।
  3. इसमें मिट्टी के पोषक तत्व पर्याप्त मात्रा में पाये जाते हैं। कैल्सियम कार्बोनेट, मैग्नीशियम कार्बोनेट, पोटाश और चूना इसके मुख्य पोषक तत्व हैं।
  4. यह मिट्टी कपास की फसल के लिए बहुत उपयुक्त है। अत: इसे कपास वाली मिट्टी भी कहा जाता है।

(3) लाल मिट्टी – यह मिट्टी लाल, पीली, भूरी आदि विभिन्न रंगों की होती है। यह कम उपजाऊ मिट्टी है। इस प्रकार की मिट्टी अधिकतर प्रायद्वीपीय भारत में पायी जाती है। इस मिट्टी में फॉस्फोरिक अम्ल, नाइट्रोजन तथा जैविक पदार्थों की कमी होती है।

विशेषताएँ –

  1. यह मिट्टी लाल, पीले या भूरे रंग की होती है। इस मिट्टी में लोहे के अंश अधिक होने के कारण उसके ऑक्साइड में बदलने से इसका रंग लाल हो जाता है।
  2. इसका विकास प्राचीन क्रिस्टलीय शैलों से हुआ है।
  3. गहरे निम्न भू-भागों में यह दोमट है तथा उच्च भूमियों पर यह असंगठित कंकड़ों के समान है।
  4. लाल मिट्टी में फॉस्फोरिक अम्ल, जैविक पदार्थों तथा नाइट्रोजन पदार्थों की कमी होती है।

(4) लैटेराइट मिट्टी – यह कम उपजाऊ मिट्टी है। यह घास और झाड़ियों के पैदा होने के लिए उपयुक्त है। प्रायद्वीपीय पठार के पूर्वी भाग में तमिलनाडु के कुछ भाग, उड़ीसा तथा उत्तर में छोटा नागपुर के कुछ भागों में इस मिट्टी का विस्तार पाया जाता है। मेघालय में भी लेटेराइट मिट्टी मिलती है।

विशेषताएँ –

  1. यह मिट्टी लेटेराइट चट्टानों की टूट-फूट से बनती है।
  2. इसमें चूना, फॉस्फोरस और पोटाश कम मिलता है, किन्तु वनस्पति का अंश पर्याप्त होता है।
  3. यह मिट्टी चावल, कपास, गेहूँ, दाल, मोटे अनाज, सिनकोना, चाय, कहवा आदि फसलों के लिए उपयोगी है।

(5) मरुस्थलीय मिट्टी – यह मिट्टी दक्षिण-पश्चिम मानसून द्वारा कच्छ के रन की ओर से उड़कर भारत के पश्चिमी शुष्क प्रदेश में जमा हुई है। इस प्रकार की मिट्टी शुष्क प्रदेशों में विशेषकर पश्चिमी राजस्थान, गुजरात, दक्षिणी पंजाब, दक्षिणी हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश में मिलती है।

विशेषताएँ –

  1. यह मिट्टी दक्षिण-पश्चिम मानसून द्वारा कच्छ के रन की ओर से उड़कर भारत के पश्चिमी शुष्क प्रदेश में जमा हुई है।
  2. यह बालू प्रधान मिट्टी है जिसमें बालू के कण मोटे होते हैं।
  3. इसमें खनिज नमक अधिक मात्रा में पाया जाता है।
  4. इसमें नमी कम रहती है तथा वनस्पति के अंश भी कम ही पाये जाते हैं, किन्तु सिंचाई करने पर यह उपजाऊ हो जाती है।
  5. सिंचाई की सुविधा उपलब्ध न होने पर यह बंजर पड़ी रहती है।
  6. इस मिट्टी में गेहूँ, गन्ना, कपास, ज्वार, बाजरा, सब्जियाँ आदि पैदा की जाती हैं।

(6) पर्वतीय मिट्टी – यह मिट्टी हिमालयी पर्वत श्रेणियों पर पायी जाती है। यह मिट्टी कश्मीर, उत्तर प्रदेश के पर्वतीय भाग के अतिरिक्त असम, पश्चिम बंगाल, कांगड़ा आदि में भी पायी जाती है।

विशेषताएँ –

  1. यह मिट्टी पतली, दलदली और छिद्रमयी होती है।
  2. नदियों की घाटियों और पहाड़ी ढालों पर यह अधिक गहरी होती है।
  3. यह मिट्टी चावल, गेहूँ व आलू की फसल के लिए उपयुक्त है। कहीं-कहीं चाय की खेती भी की जाती है। .

प्रश्न 2.

मृदा अपरदन के कारण तथा संरक्षण के प्रमुख तरीकों की व्याख्या कीजिए।

उत्तर:

मृदा अपरदन के कारण

मृदा अपरदन के प्रमुख कारण अग्र प्रकार हैं –

(1) वनों का नाश-कृषि के लिये भूमि का विस्तार करने तथा जलाने व इमारती लकड़ी की बढ़ती हुई माँग को पूरा करने के लिए पिछले वर्षों से वनों का विनाश हो रहा है। फलतः पानी को नियन्त्रित करने की शक्ति घटी है और भूमि का कटाव बढ़ गया है।

(2) अत्यधिक पशु चारण-पशु चारण पर नियन्त्रण न रखने से भी जंगलों की घास काट ली जाती है अथवा जानवरों द्वारा चर ली जाती है। इससे भूमि की ऊपरी परत हट जाती है और भूमि कटाव होने लगता है।

(3) आदिवासियों द्वारा झूमिंग कृषि करना-हमारे देश में अनेक स्थानों पर आदिवासी जंगलों को साफ करके खेती करते हैं। फिर उस भूमि को छोड़कर दूसरे स्थानों पर चले जाते हैं जिससे पहले वाली भूमि पर कटाव की समस्या उत्पन्न हो जाती है।

(4) पवन अपरदन-इस तरह का कटाव वनस्पति का आवरण हटने से होता है। भू-गर्भ में पानी की सतह से अत्यधिक नीचे चले जाने से भी वायु अपरदन होता है।

(5) भारी वर्षा-मिट्टी का कटाव भारी वर्षा से होता है, क्योंकि मिट्टी कटकर बह जाती है। वास्तव में पानी से होने वाला कटाव तीन तरह से होता है-पहला परत का कटाव फिर नाली का कटाव और अन्त में बाढ़ का कटाव।

मृदा संरक्षण

बढ़ती हुई जनसंख्या के कारण प्राकृतिक संसाधनों का बड़े पैमाने पर विनाश हुआ है। अनेक प्राकृतिक संसाधनों के नष्ट होने का खतरा पैदा हो गया है। इसलिए मृदा संरक्षण द्वारा विनाश रोकना आवश्यक है। मृदा संरक्षण के लिए निम्न उपाय किये जा सकते हैं –

  1. मिट्टी की उर्वरता बनाये रखने के लिए वैज्ञानिक तरीकों को अपनाना।
  2. मिट्टी की उर्वरता को बनाये रखने के लिए रासायनिक उर्वरकों के साथ-साथ जैविक खादों को भी प्रयोग में लाना।
  3. वृक्ष लगाकर मृदा अपरदन को रोकना।
  4. नदियों पर बाँध बनाकर जल के तीव्र प्रवाह को रोककर भूमि के कटावों को रोकना।
  5. पर्वतीय भागों में सीढ़ीनुमा खेत बनाना।
  6. खेतों की ऊँची मेंड़ बनाना।
  7. ग्रामीण क्षेत्रों में चारागाहों का विकास करना।

प्रश्न 3.

मृदा-परिच्छेदिका का नामांकित चित्र बनाइए।

उत्तर:

मृदा-परिच्छेदिका का नामांकित चित्र –

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प्रश्न 4.जल संसाधन के प्रमुख स्रोत क्या हैं ? जल संसाधन का मानव जीवन में क्या महत्व है? (2011)

उत्तर:

जल संसाधन के प्रमुख स्त्रोत

जल के चार प्रमुख स्रोत हैं –

(1) पृष्ठीय जल

(2) भौम जल

(3) वायुमण्डलीय जल

(4) महासागरीय जल।

(1) पृष्ठीय जल – नदियों, झीलों व छोटे-बड़े जलाशयों का जल पृष्ठीय जल कहलाता है। पृष्ठीय जल के प्रमुख स्रोत नदियाँ, झीलें, तालाब आदि हैं। भारत में कुल पृष्ठीय जल का लगभग 60 प्रतिशत भाग तीन प्रमुख नदियों-सिन्ध, गंगा और ब्रह्मपुत्र में से होकर बहता है। भारत की प्रमुख नदियों व झीलों का विवरण निम्न प्रकार है –

भारत की प्रमुख नदियाँ व प्रमुख झीलें

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(2) भौम जल-वर्षा के जल का कुछ भाग भूमि द्वारा सोख लिया जाता है। इसका 60 प्रतिशत भाग ही मिट्टी की ऊपरी सतह तक पहुँचता है। कृषि व वनस्पति उत्पादन में इसका महत्वपूर्ण योगदान होता है। शेष सोखा हुआ जल धरातल के नीचे अभेद्य चट्टानों तक पहुँचकर एकत्र हो जाता है। इसे कुँओं व ट्यूबवेलों के द्वारा धरातल पर लाया जाता है तथा मानवीय उपयोग के अतिरिक्त कृषि भूमि की सिंचाई, बागवानी, उद्योग आदि के लिए उपयोग किया जाता है। देश में भौम जल का वितरण बहत असमान है। समतल मैदानी भाग भौम जल की मात्रा अधिक है। जबकि दक्षिण भारत में भौम जल की कमी पाई जाती है।

(3) वायुमण्डलीय जल-यह वाष्प रूप में होता है। अतः इसका उपयोग नहीं हो पाता है।

(4) महासागरीय जल-देश के पश्चिम, पूर्व व दक्षिण में क्रमशः अरब सागर, बंगाल की खाड़ी और हिन्द महासागर है। इस जल का उपयोग मुख्यत: जल परिवहन और मत्स्योद्योग में होता है।

जल संसाधन का महत्व

मानव शरीर के लिए जल अत्यन्त आवश्यक है। इस आवश्यकता की पूर्ति के लिए जल का उपयोग पीने के पानी के लिए किया जाता है। जीवन जीने के लिए भोजन एक आवश्यक अनिवार्यता है। भोजन की प्राप्ति कृषि उपज एवं वनस्पति द्वारा होती है। कृषि हेतु जल आवश्यक है। विद्युत शक्ति उत्पादन के लिए जल एक सस्ता एवं महत्वपूर्ण साधन है। परिवहन साधनों एवं औद्योगिक आवश्यकताओं की पूर्ति आदि में भी इसकी उपयोगिता महत्वपूर्ण है। इस प्रकार जल का महत्व जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में विकास के प्रत्येक आयामों में है। अतः जल ही. जीवन है। यह एक महत्वपूर्ण प्राकृतिक संसाधन है।

प्रश्न 5.

जल संरक्षण क्यों आवश्यक है ? इसके उपायों का वर्णन कीजिए। (2009, 16)

उत्तर:

जल संरक्षण क्यों आवश्यक

जल संसाधन सम्बन्धी अनेक प्रकार की समस्याएँ हैं जिनका सम्बन्ध संसाधन की उपलब्धता, उपयोग,गुणवत्ता तथा प्रबन्धन से है। स्वतन्त्रता के समय सिंचाई व उद्योगों के लिए जल पर्याप्त रूप से उपलब्ध था परन्तु अब जनसंख्या वृद्धि के कारण हर क्षेत्र में कमी हो रही है। गर्मियों में जल संसाधन का अभाव प्रायः सम्पूर्ण दक्षिण भारत में होता है, जबकि वर्षा ऋतु में जल की कमी नहीं पाई जाती। जिन प्रदेशों में नलकूपों से सिंचाई होती है वहाँ विद्युत प्रदाय की स्थिति पर जल संसाधन की उपलब्धता निर्भर है। इन कारणों से जल संसाधनों का विवेकपूर्ण उपयोग, संरक्षण और प्रबन्धन आवश्यक हो गया है।

जल संरक्षण के उपाय – लघु उत्तरीय प्रश्न 4 का उत्तर देखें।

प्रश्न 6.

वनों से होने वाले प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष लाभ कौन-कौनसे हैं ? वर्णन कीजिए। (2009, 13, 16)

अथवा

“वन भारत के लिए वरदान हैं।” सत्यापित कीजिए।

अथवा

वनों से होने वाले छः प्रत्यक्ष लाभ लिखिए। (2012)

उत्तर:

वनों का महत्व

डॉ. पी. एच. चटरवक के अनुसार, “वन राष्ट्रीय सम्पत्ति हैं और सभ्यता के लिए इनकी नितान्त आवश्यकता है। ये केवल लकड़ी ही प्रदान नहीं करते, बल्कि कई प्रकार के कच्चे माल, पशुओं के लिए चारा तथा राज्य के लिए आय भी उत्पन्न करते हैं। इसके परोक्ष लाभ तो और भी अधिक महत्वपूर्ण हैं।”

भारतीय अर्थव्यवस्था के सन्दर्भ में वनों के महत्व को दो भागों में बाँट सकते हैं –

I. प्रत्यक्ष लाभ

II. अप्रत्यक्ष लाभ।

I. वनों से प्रत्यक्ष लाभ

  1. लकड़ी की प्राप्ति-वनों से प्राप्त लकड़ी एक महत्वपूर्ण ईंधन है। वृक्षों से सागौन, साल, देवदार, चीड़, शीशम, आबनूस, चन्दन आदि की लकड़ी प्राप्त होती है।
  2. गौण पदार्थों की प्राप्ति-वनों से अनेक प्रकार के गौण पदार्थ प्राप्त होते हैं, जिनमें बाँस, बेंत, लाख, राल, शहद, गोंद, चमड़ा रंगने के पदार्थ तथा जड़ी-बूटियाँ प्रमुख हैं।
  3. आधारभूत उद्योगों के लिए सामग्री-वनों से प्राप्त लकड़ी, घास, सनोवर तथा बाँस से कागज उद्योग; चीड़, स्यूस तथा सफेद सनोवर से दियासलाई उद्योग; लाख से लाख उद्योग; मोम से मोम उद्योग; महुआ की छालें व बबूल से गोंद; चमड़ा उद्योग, चन्दन, तारपीन और केवड़ा से तेल उद्योग; जड़ी-बूटियों से औषधि उद्योग विकसित हुए हैं।
  4. चारागाह-वन क्षेत्र जानवरों के लिए उत्तम चारागाह स्थल हैं। वनों से जानवरों के लिए घास व पत्तियाँ मिलती हैं।
  5. रोजगार-वनों पर 7.8 करोड़ व्यक्तियों की आजीविका आश्रित है। वनों से जो कच्चे पदार्थ मिलते हैं उनसे बहुत से उद्योग चल रहे हैं और करोड़ों व्यक्तियों को रोजगार मिला हुआ है।
  6. राजस्व की प्राप्ति-सरकार को वनों से राजस्व व रॉयल्टी के रूप में करोड़ों रुपये की प्राप्ति होती
  7. विदेशी मुद्रा का अर्जन-वनों से प्राप्त लाख, तारपीन का तेल, चन्दन का तेल, लकड़ी से निर्मित कलात्मक वस्तुओं का निर्यात करने से विदेशी मुद्रा की प्राप्ति होती है।

II. वनों से अप्रत्यक्ष लाभ

जे. एस. कॉलिन्स के अनुसार, “वृक्ष पर्वतों को थामे रहते हैं। वे तूफानी वर्षा को दबाते हैं। नदियों को अनुशासन में रखते हैं, झरनों को बनाये रखते हैं और पक्षियों का पोषण करते हैं।” वनों के अप्रत्यक्ष लाभ निम्न प्रकार हैं –

  1. जलवायु को सम बनाये रखना-वन जलवायु को मृदुल बनाते हैं। वन गर्मी और सर्दी की तीव्रता को कम करने में सहायक होते हैं।
  2. वर्षा में सहायक-वनों की नमी से उन पर से गुजरने वाले बादल नमी प्राप्त करके वर्षा कर देते हैं।
  3. बाढ़ों से रक्षा-वन पानी के वेग को कम कर देते हैं, बाढ़ के पानी को सोख लेते हैं। बाढ़ का पानी वन क्षेत्रों में फैलकर धीरे-धीरे नदियों में जाता है। इससे बाढ़ नियन्त्रण होता है।
  4. रेगिस्तान के प्रसार पर नियन्त्रण-सरदार पटेल ने कहा था कि, “यदि रेगिस्तान के बढ़ते हुए प्रसार को रोकना है और मानव सभ्यता की रक्षा करनी है तो वन सम्पदा के क्षय को अवश्य रोकना होगा।” अत: वन मरुस्थलों के विस्तार को पूरी तरह रोके रखते हैं।
  5. भूमि के कटाव को रोकते हैं-वनों के कारण मृदा की ऊपरी सतह नहीं बह पाती है। इससे मृदा के पोषक तत्वों में कमी नहीं होती एवं उपजाऊ बनी रहती है।
  6. उर्वरा शक्ति में वृद्धि-वनों द्वारा भूमि की उर्वरता में अत्यधिक वृद्धि होती है, क्योंकि वृक्षों कीपत्तियाँ, घास व पेड़-पौधे, झाड़ियाँ आदि भूमि पर गिरकर व सड़कर ह्यूमस रूप में भूमि की उर्वरा शक्ति को बढ़ाते हैं।
  7. प्राकृतिक सौन्दर्य-वनों से देश के प्राकृतिक सौन्दर्य में वृद्धि होती है। वे देशी व विदेशी पर्यटकों को आकर्षित करते हैं।

प्रश्न 7.

सरकार द्वारा वन संरक्षण के लिए किये गये प्रयासों का वर्णन कीजिए। (2014)

उत्तर:

सरकार द्वारा वन संरक्षण के प्रयास भारत में ब्रिटिश सरकार ने 1894 में वन नीति अपनायी थी, जिसके अनुसार वनों की देखरेख एवं विकास हेतु हर राज्य में वन विभाग की स्थापना की गई। इस नीति के दो मुख्य उद्देश्य थे-राजस्व प्राप्ति और वनों का संरक्षण।

स्वतन्त्रता प्राप्ति के पश्चात् सरकार द्वारा निम्न प्रयास किए गए –

I. सरकार ने 1950 में एक केन्द्रीय वन बोर्ड की स्थापना की। वनों के सम्बन्ध में नवीन नीति बनाई गई। इसकी चार प्रमुख बातें थीं –

  1. वनों के क्षेत्रफल को बढ़ाकर 33.3 प्रतिशत करना
  2. नये वनों को लगाना
  3. वनों को सुरक्षित करना
  4. वनों के सम्बन्ध में अनुसन्धान करना।

II.7 दिसम्बर, 1988 को नवीन वन नीति घोषित की गई, जिसके प्रमुख उद्देश्य थे –

  1. पर्यावरण में स्थिरता लाना
  2. जीव-जन्तुओं व वनस्पति जैसी प्राकृतिक धरोहर की सुरक्षा करना
  3. लोगों की बुनियादी आवश्यकताओं को पूरा करना।

III. वर्ष 1988 की घोषित राष्ट्रीय वन नीति को क्रियाशील बनाने के लिए 1999 में एक 20-वर्षीय राष्ट्रीय वानिकी कार्य योजना लागू की गई। वन विकास हेतु निम्न कार्य किये जा रहे हैं –

  1. केन्द्रीय वन आयोग की स्थापना-केन्द्र सरकार ने 1965 में केन्द्रीय वन आयोग की स्थापना की। इसका कार्य आँकड़े व सूचनाएँ एकत्रित करना, तकनीकी सूचनाओं को प्रसारित करना, बाजारों का अध्ययन करना और वन विकास में लगी संस्थाओं के कार्यों को समन्वित करना है।
  2. भारतीय वन सर्वेक्षण संगठन-वनों में क्या-क्या वस्तुएँ उपलब्ध हैं उनका पता लगाने हेतु 1971 में इस संगठन की स्थापना की गई।
  3. वन अनुसन्धान संस्थान की स्थापना-देहरादून में वनों से प्राप्त वस्तुओं तथा वनों के सम्बन्ध में अनुसन्धान एवं शिक्षा देने के लिए इस संस्था को स्थापित किया गया। इसके चार क्षेत्रीय केन्द्र-बंगलुरू, कोयम्बटूर, जबलपुर और बू!हट हैं।
  4. क्राफ्ट कला प्रशिक्षण केन्द्र की स्थापना-राज्य सरकार के वन अधिकारियों एवं कर्मचारियों को लकड़ी काटने का प्रशिक्षण देने के लिए 1965 में देहरादून में क्राफ्ट कला प्रशिक्षण केन्द्र स्थापित किया गया।
  5. भारतीय वन प्रबन्ध संस्थान की स्थापना-वन संसाधन व प्रबन्धन व्यवसाय की नवीन बातों की जानकारी देने हेतु 1978 में स्वीडिश कम्पनी की सहायता से अहमदाबाद में इस संस्थान की स्थापना की गयी है। केन्द्र सरकार ने मध्य प्रदेश के भोपाल में भारतीय वन प्रबन्ध संस्थान की स्थापना की है।
  6. वन महोत्सव-वनों के क्षेत्रफल को बढ़ाने व जनता में वृक्षारोपण की प्रवृत्ति पैदा करने के लिए भारत के तत्कालीन कृषि मन्त्री के. एम. मुन्शी ने 1950 में वन महोत्सव “अधिक वृक्ष लगाओ आन्दोलन” प्रारम्भ किया। प्रतिवर्ष देश में 1 से 7 जुलाई तक वन महोत्सव कार्यक्रम मनाया जाता है।
  7. सामाजिक वानिकी-लघु उत्तरीय प्रश्न 10 का उत्तर देखें।
  8. वन अग्नि नियन्त्रण परियोजना-देश में वनों में आग लगने के कारणों का पता लगाने तथा रोकथाम के लिए चन्द्रपुर (महाराष्ट्र) एवं हल्द्वानी, नैनीताल (उत्तराखण्ड) में यू. एन. डी. पी. के सहयोग से एक आधुनिक वन अग्नि नियन्त्रण परियोजना शुरू की गई जो देश के 10 राज्यों में चलाई जा रही है।
  9. संयुक्त वन प्रबन्ध-देश के राज्यों में संयुक्त वन प्रबन्धन व्यवस्था को अपनाया गया है। इसके अन्तर्गत 70 लाख हेक्टेयर क्षेत्र के नष्ट हुए वनों के विकास हेतु 35,000 ग्रामीण वन सुरक्षा समितियों की स्थापना की गई है।
  10. वन संरक्षण अधिनियम-1980 में भारत सरकार ने वन संरक्षण अधिनियम पारित करके किसी भी वनभूमि को सरकार की अनुमति के बिना कृषि भूमि में परिवर्तित नहीं करने का प्रावधान निश्चित किया है। सरकार ने वनों को चार वर्गों में बाँटा है – (i) सुरक्षित वन, (ii) राष्ट्रीय वन, (iii) ग्राम्य वन, (iv) वृक्ष समूह। प्रबन्धन की दृष्टि से वनों के तीन वर्ग हैं आरक्षित वन 52 प्रतिशत, सुरक्षित वन 32 प्रतिशत, अवर्गीकृत वन 16 प्रतिशत।

प्रश्न 8.

वन्य प्राणी संरक्षण क्यों आवश्यक है ? वन्य प्राणी संरक्षण के उपाय बताइए। (2011, 15)

उत्तर:

वन्य प्राणी का संरक्षण क्यों आवश्यक है ?

वनों के साथ-साथ वन्य जीव भी मानव के लिए महत्वपूर्ण संसाधन हैं। वन्य जीवों से माँस, खाल, हाथी-दाँत आदि प्राप्त होते हैं। वन के साथ-साथ मानव ने वन्य प्राणियों का भी बेदर्दी से विनाश किया है। इससे वन्य जीवों का अस्तित्व ही खतरे में पड़ गया है। बाघ, सिंह, हाथी, गैंडे आदि की संख्या में निरन्तर कमी आ रही है। आने वाले कुछ ही वर्षों में वन्य प्राणियों की कुछ प्रजातियाँ पूर्णतः लुप्त हो जाने का खतरा है। इस प्राकृतिक धरोहर को भावी पीढ़ियों तक ज्यों-का-त्यों पहुँचाना प्रत्येक नागरिक का धर्म और कर्त्तव्य है। इसलिए वन्य जीव-जन्तुओं को उनके मूल प्राकृतिक स्वरूप में पनपने देने के लिए वन्य जीवों का संरक्षण अनिवार्य है।

वन्य प्राणी संरक्षण के उपाय

वन्य प्राणियों के संरक्षण हेतु निम्नलिखित प्रयास किये जा सकते हैं –

  1. वन्य जीवों के प्राकृतिक आवासों को बिना हानि पहुँचाए नियन्त्रित करना।
  2. वन्य जीवों के शिकार पर पूर्णतः प्रतिबन्ध लगाना।
  3. वन्य क्षेत्रों में जैवमण्डल रिजर्व की स्थापना करना।
  4. लुप्त हो रहे जीवों का पुनर्विस्थापन के लिए राष्ट्रीय पार्क, अभयारण्यों की स्थापना करना।
  5. वन्य जीव प्रबन्धन की योजनाओं को ईमानदारी से लागू करना।
  6. वन्य जीवों के प्रति लोगों की मानसिकता में परिवर्तन हेतु शिक्षा एवं जागरूकता का विकास करना।

अन्य परीक्षोपयोगी प्रश्न

वस्तुनिष्ठ प्रश्न

बहु-विकल्पीय

प्रश्न 1.

वन संसाधन की प्रमुख समस्या है –

(i) मछली पालन

(ii) रेगिस्तान का विस्तार

(iii) वनों में लगने वाली आग

(iv) आदिवासी गतिविधियाँ

उत्तर:

(iii)

प्रश्न 2.

पश्चिमी घाट प्रदेश में किस प्रकार की मिट्टी पाई जाती है ?

(i) जलोढ़ मिट्टी

(ii) काली मिट्टी

(iii) लैटेराइट मिट्टी

(iv) लाल मिट्टी।

उत्तर:

(ii)

प्रश्न 3.

किसी पौधे या पेड़ की अनुपस्थिति में मृदा की कौन-सी परत बड़ी पतली होती है ?

(i) ऊपरी परत

(ii) अपमृदा

(iii) अपक्षयित शैल,

(iv) आधारी शैल।

उत्तर:

(i)

प्रश्न 4.

भारत का प्रथम राष्ट्रीय उद्यान है –

(i) कार्बेट राष्ट्रीय उद्यान

(ii) गिर राष्ट्रीय उद्यान

(iii) कंचनजंगा राष्ट्रीय उद्यान,

(iv) माधव राष्ट्रीय उद्यान।

उत्तर:

(i)

प्रश्न 5.

इसे टाइगर राज्य के रूप में जाना जाता है

(i) राजस्थान

(ii) मध्य प्रदेश

(iii) उत्तराखण्ड

(iv) असम।

उत्तर:

(iv)

प्रश्न 6.

वन महोत्सव के जन्मदाता हैं –

(i) महात्मा गांधी

(ii) पं. जवाहरलाल नेहरू

(iii) के. एम. मुंशी

(iv) आचार्य विनोबा भावे।

उत्तर:

(iii)

रिक्त स्थानों की पूर्ति

  1. ‘हर बच्चे के लिए एक पेड़’ ……………. में यह नारा विकसित किया गया है।
  2. केन्द्र सरकार ने वर्ष ……….. में केन्द्रीय वन आयोग की स्थापना की। (2009)
  3. पुरानी जलोढ़ मिट्टी को ………… कहते हैं।

उत्तर:

  1. स्कूलों, कॉलेजों
  2. 1965
  3. बाँगर।

सत्य/असत्य

प्रश्न 1.

वे सभी पदार्थ जो मानव भी आवश्कताओं की पूर्ति में सहायक हैं, संसाधन कहे जाते हैं।

उत्तर:

सत्य

प्रश्न 2.

सन् 1965 में के. एम. मुंशी ने वन महोत्सव’ प्रारम्भ किया। (2009)

उत्तर:

असत्य

प्रश्न 3.

अब पृथ्वी के केवल 25 प्रतिशत भाग पर ही वन पाये जाते हैं।

उत्तर:

असत्य

प्रश्न 4.

भारत में वन सम्पदा देश के भौगोलिक क्षेत्रफल का 20.64 प्रतिशत है।

उत्तर:

सत्य

प्रश्न 5.

भारतीय वन सर्वेक्षण संगठन की स्थापना 1971 में की गई।

उत्तर:

सत्य

जोड़ी मिलाइए

48604951676 17789d2989 o

उत्तर:

  1. → (ख)
  2. → (क)
  3. → (घ)
  4. → (ग)

एक शब्द/वाक्य में उत्तर

प्रश्न 1.

पेड़-पौधों और जीव-जन्तुओं के सड़े-गले अवशेषों को क्या कहते हैं ? (2010)

उत्तर:

ह्यूमस

प्रश्न 2.

नवीन जलोढ़क का स्थानीय नाम बताइए।

उत्तर:

खादर

प्रश्न 3.

रेगड़ या कपास वाली मिट्टी को क्या कहते हैं ?

उत्तर:

काली मिट्टी

प्रश्न 4.

डेल्टाई भागों में सामान्यतः कौन-सी मिट्टी पायी जाती है ? (2010)

उत्तर:

जलोढ़ मिट्टी

प्रश्न 5.

नवीन वन नीति कब घोषित की गई ?

उत्तर:

7 दिसम्बर, 1988,

प्रश्न 6.

क्राफ्ट कला प्रशिक्षण केन्द्र की स्थापना कब और कहाँ की गई ?

उत्तर:

1965 में देहरादून

अति लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.

केन्द्रीय वन आयोग क्या है ?

उत्तर:

केन्द्र सरकार ने 1965 में केन्द्रीय वन आयोग की स्थापना की। इसका कार्य आँकड़े व सूचनाएँ एकत्रित करना, तकनीकी सूचनाओं को प्रसारित करना, बाजारों का अध्ययन करना और वन विकास में लगी संस्थाओं के कार्यों को समन्वित करना है।

प्रश्न 2.

भौम जल क्या है ?

उत्तर:

धरातल के नीचे मिट्टी के छिद्रों, दरारों एवं तल शैलों में जो जल भरा होता है, उसे भौम जल कहते हैं। भौम जल का स्रोत वर्षा है।

प्रश्न 3.

बाँगर क्या है ?

उत्तर:

पुरानी जलोढ़ मिट्टी को बाँगर कहते हैं। यह नदियों द्वारा निर्मित प्राचीन मिट्टी है। ऊँचे भागों में पाये जाने वाली यह मिट्टी उन क्षेत्रों में मिलती है जहाँ नदियों की बाढ़ का जल नहीं पहुँच पाता। बाँगर स्लेटी रंग की चिकनी मिट्टी होती है। यह कम उपजाऊ होती है। इसमें प्रायः कंकड़ (कैल्शियम कार्बोनेट) पाये जाते हैं।

प्रश्न 4.

भारत में पाई जाने वाली मिट्टियों के नाम लिखिए। (2015)

उत्तर:

भारत में पाई जाने वाली मिट्टियाँ हैं –

  1. जलोढ़ मिट्टी
  2. काली या रेगड़ मिट्टी
  3. लाल मिट्टी
  4. लैटेराइट मिट्टी
  5. मरुस्थलीय मिट्टी
  6. पर्वतीय मिट्टी।

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.

संसाधन से क्या आशय है ? इनका हमारे जीवन में क्या महत्व है ?

उत्तर:

कोई वस्तु या तत्व तभी संसाधन कहलाता है जब उससे मानव की किसी आवश्यकता की पूर्ति होती है; जैसे-जलं एक संसाधन है क्योंकि इससे मनुष्यों व अन्य जीवों की प्यास बुझती है, खेतों में फसलों की सिंचाई होती है और यह स्वच्छता प्रदान करने, भोजन पकाने आदि कार्यों में हमारे लिए आवश्यक होता है। इसी प्रकार, वे सभी पदार्थ जो मानव की आवश्यकताओं की पूर्ति में सहायक हैं, संसाधन कहलाते हैं।

महत्व – संसाधन मानव जीवन को सुखद व सरल बनाते हैं। आदिकाल में मानव पूर्णतः प्रकृति पर निर्भर था। धीरे-धीरे मानव ने अपने बुद्धि-कौशल से प्रकृति के तत्वों का अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु अधिकाधिक उपयोग किया। आज विश्व के वे राष्ट्र अधिक उन्नत व सम्पन्न माने जाते हैं जिनके पास अधिक संसाधन हैं। आज संसाधन की उपलब्धता हमारी प्रगति का सूचक बन गई है। इसीलिए संसाधनों का हमारे जीवन में बड़ा महत्व है।

प्रश्न 2.

पुन आधार पर संसाधनों का वर्गीकरण स्पष्ट कीजिए।

उत्तर:

पुनः पूर्ति के आधार पर संसाधन – पुनः पूर्ति के आधार पर संसाधनों का वर्गीकरण निम्न प्रकार किया जा सकता है –

  1. योग्य संसाधन-वे संसाधन जिनका उपयोग होने पर भी उनके गुणों को बनाये रखा जा सकता है; जैसे-खाद के उपयोग द्वारा कृषि भूमि को कृषि योग्य बनाये रखना।
  2. पुनः आपूर्तिहीन संसाधन-वे संसाधन जो एक बार उपयोग होने के बाद समाप्त हो जाते हैं; यथा-पेट्रोल, कोयला आदि।
  3. बारम्बार प्रयोग वाले संसाधन-वे संसाधन जिनका उपयोग एक बार होने के बाद भी आवश्यक संशोधन के साथ पुन: उपयोग में लिया जाता है; जैसे-धात्विक खनिज, लोहा, ताँबा आदि।
  4. सनातन प्राकृतिक संसाधन-इस प्रकार के संसाधन जो उपयोग होने पर भी नष्ट नहीं होते; जैसे-सौर ऊर्जा, महासागर इत्यादि।

प्रश्न 3.

जलोढ़ एवं काली मिट्टी में अन्तर बताइए।

उत्तर:

जलोढ़ एवं काली मिट्टी में अन्तर

जलोढ़ मिट्टी

  1. इस मिट्टी का रंग हल्का भूरा होता है।
  2. नदियों द्वारा बहाकर लायी गयी मिट्टी को जलोढ़ मृदा कहते हैं।
  3. यह देश की भूमि के 40 प्रतिशत भाग में फैली हुई है। दक्षिण भारत में महानदी, गोदावरी, कृष्णा, कावेरी नदियों व आन्ध्र प्रदेश में यह मिट्टी पायी जाती है।
  4. इस मिट्टी में ह्यूमस तथा चूने का अंश अधिक होती है।

काली मिट्टी

  1. यह मिट्टी काले रंग की होती है।
  2. काली मिट्टी का निर्माण ज्वालामुखी उद्गार से निकले लावा द्वारा होता है।
  3. यह देश की भूमि के 18.5 प्रतिशत भाग में फैली हुई है। यह मुख्यतः महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, गुजरात, आन्ध्र प्रदेश और कर्नाटक में पायी जाती है।
  4. इसमें मैग्मा के अंश, लोहा व ऐलुमिनियम की प्रधानता पायी जाती है।

प्रश्न 4.

पृष्ठीय जल तथा भौम जल में अन्तर स्पष्ट कीजिए।

उत्तर:

पृष्ठीय जल तथा भौम जल में अन्तर

पृष्ठीय जल

  1. वर्षा का जल जो धरातल पर प्रवाहित रहता है या धरातल पर ठहरा रहता है पृष्ठीय जल कहलाता है।
  2. नदी, झील, तालाब का जल धरातलीय जल से आता है।
  3. पृष्ठीय जल आसानी से उपलब्ध हो जाता है।
  4. जहाँ पृष्ठीय जल-सम्पदा की मात्रा विपुल है उन क्षेत्रों में औद्योगिक विकास सम्भव है।

भौम जल

  1. वर्षा का जो जल पारगम्य चट्टानों में से भूमिगत हो जाता है, भौम जल कहलाता है।
  2. कुंआ, झरना आदि का जल भूमिगत जल से आता है।
  3. भौम जल, कुँआ अथवा ट्यूबवेल खोदकर निकाला जाता है।
  4. भौम जल का उपयोग कृषि, घरेलू कार्यों व उद्योगों में होता है। इससे ऊर्जा का निर्माण नहीं किया जाता।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.

भारत के रेखा मानचित्र में निम्न को दर्शाइए –

  1. काँप मिट्टी
  2. काली मिट्टी
  3. लाल मिट्टी
  4. लैटेराइट मिट्टी
  5. शुष्क व मरुस्थलीय मिट्टी
  6. वन व पर्वतीय मिट्टी
  7. दलदली मिट्टी
  8. लवणयुक्त मिट्टी।

उत्तर:

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