हाल ही में मध्य प्रदेश बोर्ड ने वर्ष 2021-22 के लिए छात्रों के त्रैमासिक परीक्षा के लिए निर्देश जारी किये है . बोर्ड के अनुसार सभी बच्चों के त्रैमासिक एग्जाम 24 सितम्बर से शुरू होंगे जिसमे एक प्रश्न पत्र होगा और उसके सभी प्रश्नों का हल करना अनिवार्य होगा . सभी विद्यार्थियों को कक्षा 9 से 12 तक सभी विद्यार्थियों को अपनी कक्षा से सम्बंधित पाठ्यक्रम ( syllabus ) का पता होना बेहद ज्यादा जरूरी है .
नीचे विषयवार सभी महत्वपूर्ण प्रश्नों को आपको दिया गया है . आप इन प्रश्नों को तैयार करके जरूर जाना क्योंकि यह प्रश्न बेहद महत्वपूर्ण है जिसके साथ आप अपने त्रैमासिक एग्जाम को और भी अच्छी तरह से एटेम्पट कर पाओगे .
त्रैमासिक परीक्षा महत्वपूर्ण प्रश्न Chemistry Most important question solution
प्रश्न 1. क्रिस्टलीय व अक्रिस्टलीय ठोस में एक प्रमुख अन्तर लिखिए।
उत्तर- अक्रिस्टलीय ठोस में अवयवी कण निश्चित क्रम में व्यवस्थित नहीं होते हैं, जबकि क्रिस्टलीय ठोस में अवयवी कण निश्चित क्रम में व्यवस्थित होते हैं।
प्रश्न 2. शॉट्की त्रुटि से पदार्थ के घनत्व पर क्या प्रभाव पड़ता है ?
उत्तर- शॉट्की त्रुटि से पदार्थ के घनत्व में कमी होती है।
प्रश्न 3. सामान्य लवण कभी-कभी पीला क्यों दिखाई देता है ?
उत्तर- सोडियम क्लोराइड का पीला रंग इसके ऋणायनी स्थल (F-केन्द्र) पर अयुग्मित इलेक्ट्रॉनों के कारण होता है। ये इलेक्ट्रॉन उत्तेजित होने के लिये दृश्य प्रकाश से ऊर्जा का अवशोषण करते हैं जिससे क्रिस्टल पीला दिखाई देता है।
प्रश्न 4. गर्म करने पर Zno पिला क्यों हो जाता है?
उत्तर- ZnO गरम किये जाने पर O, को खो देता है। ZnO क्रिस्टल के अन्तराकाशी खाली स्थानों में Zn^2+ प्रवेश कर लेते हैं। विद्युत उदासीनता बनाये रखने के लिये साथ के निकटवर्ती अन्तराकाशी स्थानों में इलेक्ट्रॉन प्रवेश कर जाते हैं। इन अन्तराकाशी इलेक्ट्रॉनों के कारण ZnO गरम अवस्था में पीला होता है।
ZnO ―――> Zn^2+ 1/2 O2 + 2e-
प्रश्न 5. अन्तरकण बल के आधार पर क्रिस्टलीय ठोसों के वर्गीकरण की रूपरेखा दीजिए।
उत्तर- अन्तरकण बल के आधार पर क्रिस्टलीय ठोस निम्नलिखित चार प्रकार के होते हैं-
(1) आयनिक क्रिस्टल- इनकी संरचनात्मक इकाई आयन होती है, जो क्रिस्टल में परस्पर कूलॉम्ब आकर्षण बल के द्वारा बँधे रहते हैं; उदाहरणार्थ- NaCl, CSCl, ZnCl, आदि।
(2) सहसंयोजी क्रिस्टल- इनकी संरचनात्मक इकाई परमाणु होती है; जैसे-डायमण्ड, ग्रेफाइट, सिलिकन, जर्मेनियम आदि।
(3) आण्विक क्रिस्टल- इनकी संरचनात्मक इकाई अणु होते हैं, जो परस्पर दुर्बल वाण्डर वाल्स बलों के द्वारा जुड़े रहते हैं। ये दो प्रकार के होते हैं :
(a) ध्रुवीय आण्विक क्रिस्टल– ठोस SO2, ठोस NH3.
(b) अध्रुवीय आण्विक क्रिस्टल- आयोडीन।
(4) धात्विक क्रिस्टल- संरचनात्मक इकाइयाँ धात्विक आयन होते हैं, जो विस्थानीकृत इलेक्ट्रॉनों के समुद्र में परिक्षिप्त रहते हैं; जैसे-Cu, Ni आदि।
प्रश्न 6. धात्विक क्रिस्टल तथा आदि कस्टल में अंतर लिखिए।
उत्तर-
1.अवयवी कणों के मध्य धात्विक बन्ध पाया जाता है।जबकि आण्विक कृष्टलों के अवयवी कणों के मध्य वोण्डर वॉल्स बन्ध पाया जाता है।
2. इनमें धात्विक चमक पायी जाती है। जबकि आण्विक कृष्टल में चमक नहीं होती है।
3. इनके गलनांक, क्वथनांक उच्च होते हैं। जबकि आण्विक कृष्टल के गलनांक व क्वथनांक निम्न होता है।
प्रश्न 7. जालक बिन्दु से आप क्या समझते हो ?
उत्तर- क्रिस्टल जालक में विद्यमान किसी अवयवी कण (परमाणु, अणु, आयन) विशेष की स्थिति दर्शान वाला बिन्दु लैटिस बिन्दु कहलाता है। दिकस्थान में लैटिस बिन्दुओं की व्यवस्था क्रिस्टलीय ठोस की ज्यामिति (आकृति) के लिये उत्तरदायी होती है।
प्रश्न 8. निम्नलिखित व्यवस्थाओं के अन्तर्गत प्रति सेल परमाणुओं की संख्या ज्ञात कीजिए :
(a) सरल घनीय क्रिस्टल,
(b) काय केन्द्रित घनीय क्रिस्टल
(c) फलक केन्द्रित घनीय क्रिस्टल।
उत्तर– इकाई कोशिका में विद्यमान कणों का परिकलन :
(a) सरल घनीय क्रिस्टल (sc)- घनीय क्रिस्टल की त्रिविमीय संरचना में प्रत्येक कोने के बिन्दु पर आठ इकाई कोशिकाएँ स्पर्श करती हैं। एक सरल घनीय कोशिका में 8 कण होते हैं और प्रत्येक का योगदान 1/8 होता है, इसलिए घनीय क्रिस्टल की इकाई कोशिका में कुल कणों की संख्या 8x 1/8 = 1 होती है।
(b) काय केन्द्रित घनीय क्रिस्टल (bcc) – इस व्यवस्था में आठ कोने वाले कण का प्रति सेल योगदान 1/8 होता है। इसके अतिरिक्त इस प्रकार की कोशिका में एक कण कोशिका के मध्य में होता है जिसका किसी अन्य कोशिका के साथ साझा नहीं होता है। अत: bcc क्रिस्टल की इकाई कोशिका में उपस्थित कुल कणों की संख्या = 1/8 x8+1= 2 होती है।
(c) फलक केन्द्रित घनीय क्रिस्टल (fcc)- इसमें 8 कण आठ कोनों पर और छः कण छ: फलकों के केन्द्रों पर विद्यमान होते हैं। कोने वाला कण आठ कोशिकाओं और फलक केन्द्रित कण दो इकाई कोशिकाओं के फलकों के सम्पर्क में रहता है। अत: कोने वाले कण का प्रति सेल योगदान 1/8 तथा फलक वाले कण का योगदान 1/2 होता है। अत: fcc क्रिस्टल की इकाई कोशिका में कुल कणों की संख्या = 1/8 × 8+6× 1/2 = 4 होती है।
प्रश्न 9. रिक्तियों से क्या समझते हो?
उत्तर- क्रिस्टल के रचक घटकों (परमाणु, अणु, आयन) से बनी संरचना में विद्यमान रिक्त स्थान रिक्ति (void) कहलाता है। ये निविड संकुलित संरचनाओं में होती हैं और रिक्तियों मुख्यतया दो प्रकार की होती हैं-(1) समचतुष्फलकीय, एवं (2) अष्टफलकीय।
प्रश्न 10. शॉट्की दोष क्या है ? एक उदाहरण दीजिए।
उत्तर-शॉट्की दोष (Schottky defect) या जालक रिक्तियाँ-जब किसी आयनिक क्रिस्टल में से कुछ धनायन तथा उतने ही ऋणायन अपने सामान्य स्थान (सामान्य लैटिस बिन्दु) को छोड़कर क्रिस्टल में से बाहर हो जाते हैं और क्रिस्टल में रिक्तिकाएँ ( holes) बना लेते हैं, तब इसे शॉट्की दोष कहते हैं। इस प्रकार के दोष ऐसे आयनिक यौगिकों में पाये जाते हैं जिनमें धनायन व ऋणायन के आकार लगभग समान होते हैं और उनकी समन्वय संख्या उच्च होती है; उदाहरणार्थ-NaCI, CsCI, KCl, KBr आदि। इस त्रुटि के कारण क्रिस्टल के घनत्व में कमी होती है।
प्रश्न 11.फ्रेंकलिन दोष क्या है? एक उदाहरण दीजिए।
उत्तर- फ्रकेल दोष (Frenkel defects) अथवा जालक अन्तराकाशी त्रुटियाँ-इस प्रकार का दोष तब उतपन्न होता है जब कोई धनायन अपने नियत स्थान से हटकर अन्तराकाशी स्थान (Cinterstitial space) मैं जाकर फिट हो जाता है परिणाम स्वरूप उसकी नियत स्थान पर एक फूल बन जाता है यह दोस्त ऐसी यौगिकों के क्रिस्टलों में पाई जाते हैं जिनमें आयनों की कोआर्डिनेशन संख्या निम्न होती है तथा के डायन का कार एन आयन की तुलना में बहुत कम होता है जैसे ZnS,AgCl, AgBr, AgI आदि।
प्रश्न 12. शॉटकी और फ्रेंकल त्रुटियों में अंतर लिखिए
उत्तर – शॉटकी और फ्रेंकेल त्रुटियों में प्रमुख अन्नर
(1) शॉटकी त्रुटि के कारण पदार्थ का बनव कम हो जाता है, जबकि फ्रेकेल त्रुटि से पदार्थ के घनत्व पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है।
(2) शॉटकी त्रुटि ऐसे क्रिस्टलों में पायी जाती है जिनमें कैटायन और ऐनायन के आकार लगभग समान होते हैं, जबकि फ्रेंकल त्रुटि ऐसे पदार्थो के द्वारा प्रदर्शित होती है जिनमें केटायन का आकार ऐनायन की तुलना में बहुत छोटा होता है।
प्रश्न 13. अर्द्धचालक क्या होते हैं ? दो मुख्य अर्द्धचालकों का वर्णन कीजिए।
उत्तर- वे पदार्थ जिनकी चालकता धातुओं (चालक) और विद्युत्रोधियों (insulators) के मध्य होती है, अर्द्धचालक कहलाते हैं। अर्द्धचालक मुख्य रूप से दो प्रकार के होते हैं-n-प्रकार एवं p-प्रकार।
(1) इलेक्ट्रॉन धनी अशुद्धियाँ एवं n- प्रकार का अर्द्धचालक-Siऔर Ge चौदहवें समूह के सदस्य हैं और प्रत्येक में चार संयोजक इलेक्ट्रॉन होते हैं। इनके क्रिस्टलों में इनका प्रत्येक परमाणु अपने निकटतम परमाणुओं के साथ चार सहसंयोजक बन्ध बनाता है। जब पंद्रहवें समूह के तत्व; जैसे-P या As, जिनमें पाँच संयोजक इलेक्ट्रॉन होते हैं, को इसके साथ अपमिश्रित किया जाता है तब ये S1 अथवा Ge के कुछ जालक स्थलों में आ जाते हैं। पाँच में से चार इलेक्ट्रॉन Si परमाणुओं के साथ चार सहसंयोजक बन्ध बनाने में प्रयुक्त हो जाते हैं और पाँचवाँ अतिरिक्त इलेक्ट्रॉन विस्थापित हो जाता है। यह विस्थापित इलेक्ट्रॉन अपमिश्रित Si (अथवा Ge) की चालकता में वृद्धि कर देता है। यहाँ चालकता में वृद्धि इलेक्ट्रॉन के कारण होती है। अत: इलेक्ट्रॉन धनी अशुद्धि से Si (या Ge) को n- प्रकार का चालक कहा जाता है।
(2) इलेक्ट्रॉन न्यून अशुद्धियाँ एवं p- प्रकार का चालक- जब Si अथवा Ge को समूह 13 के तत्वों, जैसे-Ga (गैलियम) या In (इन्डियम),A| आदि जिनमें केवल तीन संयोजक इलेक्ट्रॉन होते हैं, के साथ अशुद्धि के रूप में अपमिश्रित किया जाता है तब इन तत्वों का परमाणु Si के जालक में Si परमाणु का स्थान ग्रहण कर लता है। ये परमाणु निकटवर्ती तीन Si परमाणुओं के साथ सहसंयोजी बन्ध बना लेते हैं। Si के साथ चार सहसंयोजी बन्ध बनाने के लिए एक इलेक्ट्रॉन की कमी रह जाती है। कमी वाले इस स्थान को इलेक्ट्रॉन रिक्ति या इलेक्ट्रॉन छिद्र (electron hole) कहते हैं। चूंकि क्रिस्टल में सभी परमाणुओं की प्रवृत्ति चार सहसंयोजक बन्ध बनाने की होती है इसलिए अशुद्धि के परमाणु के द्वारा भी एक इलेक्ट्रॉन ग्रहण करने का प्रयास होता है। तापीय गति (Thermal motion) या विद्युत् क्षेत्र के प्रभाव में यह इलेक्ट्रॉन अशुद्धि वाले परमाणु के पास Si परमाणु से आता है। जहाँ से यह इलेक्ट्रॉन आता है वहाँ एक नया छिद्र उत्पन्न हो जाता है। तापीय प्रभाव या विद्युत् क्षेत्र प्रभाव में यह इलेक्ट्रॉन न्यून छिद्र या धन होल क्रिस्टल में इधर-उधर घूमता है और क्रिस्टल को चालकता प्रदान करता है। चूंकि यह चालकता धन होलों (positive holes) के चलायमान रहने के कारण होती है इसलिए ऐसे अर्द्धचालकों को p-प्रकार का अर्द्धचालक कहते हैं।
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प्रश्न 1. विलयन किसे कहते हैं ? कितने प्रकार के विलयन सम्भव हैं ?
उत्तर- दो या दो से अधिक शुद्ध अवयवों का समांगी मिश्रण विलयन कहलाता है। इस मिश्रण में सभी जगह इसका संघटन व गुण एक समान होते हैं। मिश्रण में जो घटक अधिक मात्रा में होता है उसे विलायक व विलयन में विलायक के अतिरिक्त उपस्थित एक या अधिक अवयव विलेय कहलाते हैं। विलायक विलयन कीभौतिक दशा निर्धारित करता है। अतः विलयन मुख्यतः ठोस, द्रव व गैस तीन प्रकार के होते हैं।
प्रश्न 2. एक ऐसे ठोस विलयन का उदाहरण दीजिए जिसमें विलेय कोई गैस हो।
उत्तर- हाइड्रोजन का पैलेडियम में विलयन।
प्रश्न 3. मोल प्रभाज (या मोल अंश) किसे कहते हैं ?
उत्तर- अणु भिन्नांक या मोल प्रभाज (Mole fraction)-किसी विलयन में उपस्थित किसी अवयव (विलेय या विलायक) के मोलों (ग्राम अणुओं) की संख्या और विलयन में उपस्थित सम्पूर्ण मोलों (ग्राम-अणुओं) की संख्या के अनुपात को मोल प्रभाज कहते हैं।
विलेय का मोल प्रभाज = n1/ n1+n2
विलायक का मोल प्रभाज = n2 / n1+n2
जहाँ n1 व n2 क्रमशः विलेय एवं विलायक के मोल हैं।
प्रश्न 4. अणुसंख्य गुण क्या होते हैं ?
उत्तर- वे गुण, जो विलेय की प्रकृति पर निर्भर न करके इनके कणों की संख्या पर निर्भर करते हैं अणुसंख्य गुण कहलाते हैं; जैसे- परासरण दाब, वाष्पदाब का आपेक्षिक अवनमन, क्वथनांक में उन्नयन, हिमांक में अवनमन आदि।
प्रश्न 5. 24.0.1 M ग्लूकोस व 0-1 M सोडियम क्लोराइड विलयन में से किसका परासरण दाब अधिक होगा और क्यों?
उत्तर- सोडियम क्लोराइड आयनन पर दो कण, Na’ व CI देता है, इसलिए 0.1M सोडियम क्लोराइड में कणों की संख्या 0-1M ग्लूकोस (आयनन नहीं होता है) के विलयन में उपस्थित कणों की संख्या से अधिक होगी। फलस्वरूप इसका परासरण दाब अधिक होगा।
प्रश्न 6. निम्नलिखित को स्पष्ट कीजिए :
(I) प्रतिशतता, (ii) मोलरता, (iii) मोललता, (iv) नॉर्मलता, (v) मोल-अंश
उत्तर-. (i) प्रतिशतता (Percentage)- जब विलयन के 100 भागों में विलेय पदार्थ की मात्रा प्रदर्शित की जाती है, तो इस सान्द्रता को प्रतिशतता कहते हैं। यह दो प्रकार की होती है-द्रव्यमानानुसार व आयतनानुसार।
द्रव्यमान प्रतिशतता = विलेय का द्रव्यमान / विलयन का द्रव्यमान×100
विलेय का प्रतिशत आयतन = विलय का आयतन / विलयन का पूर्ण आयतन × 100
(ii) मोलरता (Molarity)- विलयन के एक लीटर में उपस्थित विलेय के मोलों या ग्राम अणुओं की संख्या को मोलरता (M) कहते हैं।
मोलरता, M= विलेय के मोलों की संख्या/ विलयन का लीटर में आयतन
= विलेय का द्रव्यमान/ विलेय का अणु भार × विलयन का लीटर में आयतन
(iv) मोललता (Molality)- 1000 ग्राम विलायक में उपस्थित विलेय के ग्राम अणुओं की संख्या को मोललता (m) कहते हैं।
मोललता (m) = विलय की मोलो की संख्या/ विलायक का किलोग्राम में द्रव्यमान
मोललता(m) = विलेय के ग्राम अणुओं की संख्या/ विलायक का ग्राम में द्रव्यमान × 1000
(vi) नॉर्मलता (Normality, N)- किसी विलयन के एक लीटर में घुले हुए विलेय के ग्राम तुल्यांकी भारों की संख्या को विलयन की नॉर्मलता कहते हैं।
नॉर्मलता = विलेय का ग्राम प्रति लीटर सान्द्रण/ विलेय का ग्राम तुल्यांकी भार
(vi) मोल-अंश (Mole fraction) – यह किसी विलयन में विद्यमान किसी एक घटक (विलेय याविलायक) एवं विलयन के कुल मोलों की संख्या (विलय तथा विलायक दोनों) का अनुपात है।
किसी एक घटक के मोलों की संख्या = घटक के मोलों की संख्या/सभी घटकों के मोलों की कुल संख्या
प्रश्न 7. हेनरी का नियम क्या है? गैसों की द्रवों में विलेयता को प्रभावित करने वाले कारकों का वर्णन करो।
अथवा
ताप बढ़ाने पर गैसों की द्रवों में विलेयता में, हमेशा कमी आने की प्रवृत्ति क्यों होती है ? (NCERT)
उत्तर- हेनरी का नियम- निश्चित ताप पर किसी गैस की द्रव में विलेयता, द्रव की सतह पर साम्यावस्था में; इस गैस द्वारा लगाये गये दाब के समानुपाती होती है।
अथवा
किसी गैस का वाष्प अवस्था में आंशिक दाब (PA), उस विलयन में गैस के मोल अंश के समानुपाती होता है।
PA = KHx
जहाँ KH = हेनरी स्थिरांक, x = विलयन में गैस का मोल-अंश।
विलेयता को प्रभावित करने वाले कारक-
(1) ताप का प्रभाव- गैसीय विलयनों का ताप बढ़ाने पर गैसों की द्रव में विलेयता कम हो जाती है। गैसों का द्रव में विलीनीकरण (dissolution) एक ऊष्माक्षेपी प्रक्रिया है।
गैस + द्रव = घुलती हुई गैस; ∆ = ऋणात्मक
जब ताप बढ़ाया जाता है तब अभिक्रिया का साम्य बाँये हाथ की ओर विस्थापित हो जाता है (Le-Chatelier’s principle) जिसके फलस्वरूप गैस की जल में विलेयता कम हो जाती है।
(ii) दाब का प्रभाव- दाब बढ़ाने पर गैसों की द्रवों में विलेयता बढ़ती है।
(iii) गैस तथा द्रव की प्रकृति- शीघ्र द्रवित होने वाली या विलायक के साथ क्रिया करने वाली गैसों; जैसे-HCI, COL, NH, आदि की विलेयता अधिक होती है।
प्रश्न 8. आदर्श विलयन तथा अनादर्श विलयन से आप क्या समझते हो ? उदाहरण देकर स्पष्ट कीजिए।
अथवा
आदर्श विलयन तथा अनादर्श विलयन में तीन अन्तर लिखिए।
उत्तर-. आदर्श विलयन-ऐसे विलयन जो सभी सान्द्रताओं पर राउल्ट के नियम का पूर्णत: पालन करते हैं, आदर्श विलयन कहलाते हैं। इन विलयनों के बनने पर एन्थैल्पी परिवर्तन तथा आयतन परिवर्तन शून्य होता है, अर्थात्
AH(mixing) = 0
AV (mixing) = 0
आदर्श विलयन में विलेय तथा विलायक दोनों की ध्रुवता, संरचना तथा अन्योन्य क्रियाएँ समान होती हैं।
उदाहरण-.
(i) बेन्जीन + टॉलुईन (ii) ब्रोमोएथेन + क्लोरोएथेन
अनादर्श विलयन-ऐसे विलयन जो सभी सान्द्रताओं पर राउल्ट के नियम का पालन नहीं करते हैं, अनादर्श विलयन कहलाते हैं। ऐसे विलयनों के बनने पर एन्थैल्पी परिवर्तन तथा आयतन परिवर्तन अवश्य होता है।
∆H (mixing) ≠ 0
∆V (mixing) ≠ 0
तथा
अनादर्श विलयन में विलेय तथा विलायक दोनों की ध्रुवता, संरचना तथा अन्योन्य क्रियाएँ भिन्न-भिन्न होती हैं।
उदाहरण-(i) एथेनॉल + ऐसीटोन (ii) फीनॉल + ऐनिलीन
प्रश्न 9. तनु विलयन का परासरण दाब का नियम क्या है ? इससे वाण्ट हॉफ समीकरण की व्युत्पत्ति कीजिए। सिद्ध करो कि परासरण दाब एक अणुसंख्य गुणधर्म है।
अथवा
परासरण दाब की परिभाषा लिखिए। परासरण दाब एक अणुसंख्य गुण है। स्पष्ट कीजिए।
उत्तर- परासरण-तनु विलयन में से विलायक के अणुओं का एक अर्द्धपारगम्य झिल्ली में से होकर सान्द्र विलयन की ओर गमन करना परासरण कहलाता है।
तनु विलयन के परासरण दाब के नियम के अनुसार, “तनु विलयन का परासरण दाब उस दाब के बराबर होता है, जो विलेय वाष्प अवस्था में डालेगा जबकि उसका आयतन व ताप विलयन के ताप व आयतन के समान है।” इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए वाण्ट हॉफ ने यह सुझाव दिया कि तनु विलयन का व्यवहार गैसों के समान होता है तथा गैसीय नियमों के समान उन्होंने परासरण दाब सम्बन्धी निम्नलिखित नियम प्रस्तुत किये
(1) बॉयल-वाण्ट हॉफ नियम- परासरण दाब विलयन की सान्द्रता के समानुपाती होता है।
Π ∝ C या Π ∝ n / V
या. ΠV = K (स्थिर ताप पर) ……..(i)
(2) चार्ल्स-वाण्ट हॉफ नियम- सान्द्रण स्थिर रहने पर विलयन का परासरण दाब उसके परमताप के समानुपाती होता है। अतः
Π ∝T
या Π/T = K या R (जबकि C या 1/V + स्थिर है) …(ii)
उपर्युक्त दोनों नियमों को मिलाने पर गैस समीकरण के समान समीकरण प्राप्त होती है, जिसे वाण्ट हॉफ समीकरण कहते हैं।
ΠV = nRT ………(iii)
या
Π= n/V RT = CRT ….(iv)
जबकि Π = विलयन का परासरण दाब
V= विलयन का लीटर में आयतन,
n = विलेय के मोलों की संख्या,
R = विलयन स्थिरांक (गैस स्थिरांक),
T = विलयन का ताप,
C = विलेय का मोल/लीटर सान्द्रण।
व्यंजक (iv) से प्रकट होता है कि विलयन का परासरण दाब विलेय की प्रकृति पर निर्भर न करके उसके मोलों की संख्या या मोलर सान्द्रण पर निर्भर करता है। अतः परासरण दाब एक अणुसंख्य गुणधर्म है।
प्रश्न 10.राउल्ट का नियम क्या है? अवाष्पशील विलेय युक्त विलयन के लिए राउल्ट के नियम का व्यंजक प्रतिपादित कीजिए ।
अथवा
सिद्ध करो कि किसी विलयन का आपेक्षिक वाष्पदाब अवनमन, विलयन में उपस्थित विलेय के मोल प्रभाज के बराबर होता है।
उत्तर- राउल्ट का नियम-इस नियम के अनुसार, किसी दिए हुए ताप पर किसी अवाप्याशील विलय युक्त विलयन का वाष्पदाब, विलायक के मोल अंश (प्रभाज) के समानुपाती होता है।
यदि किसी विलयन में विलायक का वाष्पदाब, तथा इसका मोल अंश x1 हो तो राउल्ट के नियम से विलयन का वाष्पडाब,
ps ∞ x1
Ps = kx1 ………(1)
अथवा Ps = Pox1 [ चूँकि K= po]…( 2)
जहाँ, P0 = शुद्ध विलायक का वाष्पदाब जो एक स्थिरांक होता है।
अतः विलयन का वाष्पदाब (ps) = शुद्ध विलायक का वापदाब (P0) × विलयन में विलायक का मोल अंश (x1)
राउल्ट नियम का गणितीय स्वरूप
माना किसी विलायक में विलेय को घोलने पर उसके वाष्पदाब में ∆p की कमी आती है। अत:
. ∆p = Po – Ps
व्यंजक (2) से p का मान रखने पर,
∆p =P0 – P0x1 = P0(1-X1) ……… (3)
यदि विलेय का मोल अंश x0 हो, तो
X0 + x1 =1 ……. (4)
x0 = 1 – x1 ……. (5)
समीकरण (5) से (1 -X) का मान रखने पर,
∆p = P0x0
अथवा
∆p / p0 = x0 अथवा P0 – Ps/ p0 = x0 …(6)
समीकरण (6) में बायें हाथ वाले व्यंजक P0 – Ps /p0 को वाष्पदाब का आपेक्षिक अवनमन कहते हैं। इस आधार पर राउल्ट के नियम को निम्न प्रकार भी परिभाषित कर सकते हैं :
किसी विलयन का आपेक्षिक वाष्पदाब अवनमन, उस विलयन में उपस्थित विलेय के मोल अंश के बराबर होता है।
यदि किसी विलयन में विलेय के n1 मोल तथा विलायक के n2 मोल हों , तो विलेय का मोल प्रभाज,
X0 = n1 / n1+n2
X0 का मान समीकरण (6) में रखने पर,
P0 –Ps / P0 = n1 / n1 + n2 ……(7)
यदि विलयन तनु है तब n1 + n2 = n2 इस दशा में समीकरण (7) निम्नलिखित रूप में हो जाता है।
Po-Ps/Po = n1/n2 ……….(8)
समीकरण (7) व (8) भी राउल्ट नियम के गणितीय व्यंजक या गणितीय स्वरूप हैं।
प्रश्न 11. वाण्ट-हॉफ गुणांक (फैक्टर) से आप क्या समझते हो ? इसके अनुप्रयोग लिखो।
उत्तर- वाण्ट-हॉफ गुणांक- कुछ पदार्थ, जैसे विद्युत्-अपघट्य, ऐसे होते हैं जो जल में घुलकर (NaCl ⇌ Na + CI) वियोजित हो जाते हैं, जिससे विलयन में पदार्थ के कणों की संख्या अपेक्षा से अधिक हो जाती है। इसके विपरीत कुछ पदार्थ ऐसे होते हैं जो विलयन में संगुणित हो जाते हैं। ऐसे पदार्थों के विलयन में विलेय के कणों की संख्या अपेक्षा से कम हो जाती है। इन दोनों प्रकार के पदार्थों के विलयनों में पदार्थ के कणों की संख्या में सामान्य दशा की तुलना में परिवर्तन हो जाने से इन विलयनों के लिए वाष्प दाब में आपेक्षिक अवनमन, परासरण दाब, क्वथनांक में उन्नयन तथा हिमांक में अवनमन जैसे अणुसंख्यक गुणों के असामान्य प्रायोगिक मान प्राप्त होते हैं। फलस्वरूप इस प्रकार के पदार्थों के लिए इन विधियों द्वारा ज्ञात किये अणुभार भी असामान्य होते हैं। इन असामान्य स्थितियों को स्पष्ट करने के लिए वाण्ट-हॉफ ने एक गुणांक ” प्रस्तावित किया, जिसे वाण्ट-हॉफ गुणांक कहते हैं। इसे निम्नलिखित प्रकार परिभाषित कर सकते हैं:
i = अणुसंख्यक गुणधर्म का प्रेक्षित मान / अणुसंख्यक गुणधर्म का सैद्धान्तिक मान (सूत्र से गणना किया हुआ)
अर्थात्
i = वियोजन या संगुणन के पश्चात् कणों की संख्या / कणों की सामान्य संख्या
सामान्य रूप में,
प्रेक्षित अणुसंख्यक गुणधर्म मान = i × परिकलित अणुसंख्यक गुणधर्म मान
इस आधार पर,
∆Tb = iKbm
∏= iCRT
इन सम्बन्धों की सहायता से विद्युत्-अपघट्य के वियोजन की मात्रा ज्ञात की जा सकती है और यदि वियोजन की मात्रा ज्ञात हो, तो विलेय के अणुसंख्यक गुणधर्म के प्रायोगिक मान की गणना की जा सकती है।
प्रश्न 1. CO का उपयोग करते हुए अपचयन द्वारा जिंक ऑक्साइड से जिंक का निष्कर्षण नहीं किया जा सकता है?
उत्तर- अपचयन क्रिया में उचित अपचायक का चयन ऊष्मागतिक कारक पर निर्भर करता है। की किसी ऑक्साइड की अपचायक के साथ क्रिया होने पर AG” (गिब्ज ऊर्जा) का मान ऋणात्मक होगा तभी अभिक्रिया सम्पन्न होगी अन्यथा नहीं।
∆G = ∆H-T∆S
ZnO+CO ⟶ Zn + CO2, ∆G°= +ve
ZnO + C ⟶ Zn + CO, ∆G°= -ve
ZnO और CO के मध्य अभिक्रिया के लिये AG” का धनात्मक है इसलिये यह अभिक्रिया सम्पन्न नहीं होती है।
प्रश्न 2. ऐलुमिनियम के निष्कर्षण में निक्षालन का क्या महत्व है ?
उत्तर- इस विधि के द्वारा बॉक्साइट अयस्क में उपस्थित SiO, Fe,OJ, TiO, आदि की अशुद्धियाँ अनेक रासायनिक क्रियाओं द्वारा अवक्षेप के रूप में या विलेय रूप में पृथक् हो जाती है तथा शुद्ध ऑक्साइड रासायनिक क्रिया द्वारा घोलकर पृथक् कर लिया जाता है।
प्रश्न 3. झाग प्लवन प्रक्रम में अवनमक (depressants) की क्या भूमिका होती है ?
उत्तर- अवनमक का उपयोग करके दो सल्फाइड अयस्कों को पृथक् करना सम्भव होता है। उदाहरणार्थ सोडियम साइनाइड को एक अयस्क में से ZnS तथा PbS पृथक् करने के लिये एक अवनमक के रूप में उपयोग किया जाता है। यह चयनित (selectively) रूप से Zns को फेन में आने से रोकता है किन्तु PbS को फेन में आने देता है।
प्रश्न 4. तापानुशीतन तथा ‘इस्पात पर पानी चढ़ाना’ से आप क्या समझते हो ?
उत्तर- तापानुशीतन या ऐनीलन (Annealing), कठोर बनाना (Hardening) और पानी चढ़ाना (Tempering)-जब इस्पात को लाल तप्त करके पानी अथवा तेल डालकर एकदम ठण्डा किया जाता है तब वह काँच जैसा कटोर और भंगुर (brittle) हो जाता है। इस इस्पात को कठोर इस्पात (Hardened steel) ,अथवा जल तृप्त इस्पात (Quenched steel) कहते हैं। इस क्रिया को कठोरीकरण कहते हैं। कटोर को रक्त तप्त करके धीरे-धीरे ठण्डा करने पर वह नरम हो जाता है। इस क्रिया को तापानुशीतन या ऐनीलन (Annealing) कहते हैं। जब कठोर इस्पात को भिन्न-भिन्न तापों पर विविध समय के लिए गरम करते हैं तो इसकी भंगुरता कुछ-कुछ दूर हो जाती है और वह नरम और लचकदार हो जाती है। इस क्रिया को पानी चढ़ाना (Tempering) कहते हैं।
प्रश्न 5. ऐलुमिनियम के प्रमुख अयस्क कौन-कौनसे हैं ? बॉक्साइट अयस्क से शुद्ध ऐलुमिनियम धातु प्राप्त करने की विधि का वर्णन कीजिए।
अथवा
ऐलुमिना से ऐलुमिनियम प्राप्त करने की वैद्युत अपघटन विधि का वर्णन कीजिए। इसमें क्रायोलाइट मिलाने का क्या कारण है?
प्रश्न 6. मैट क्या है ? इससे फफोलेदार कॉपर प्राप्त करने की बैसमर विधि का वर्णन कीजिए तथा आवश्यक समीकरण दीजिए।
प्रश्न 7 . लोहे के किसी अयस्क से ढलवा लोहा किस प्रकार प्राप्त किया जाता है ?
अथवा
ढलवां लोहे के निष्कर्षण में प्रयुक्त वात्या भट्टी का नामांकित रेखाचित्र बनाइए। ताप के आधार tपर भट्टी को कितने क्षेत्रों में बाँटा जा सकता है। प्रत्येक क्षेत्र में होने वाली क्रियाओं के समीकरण दीजिए।
अथवा
आयरन के मुख्य अयस्कों के नाम व सूत्र लिखिए। आयरन ऑक्साइड से आयरन प्राप्त करने की विधि का वर्णन कीजिए।
प्रश्न 1. H,0 की अपेक्षा H,S एक प्रबल उपचायक है। क्यों ? कोई तीन मुख्य कारण दीजिए।
उत्तर- H2S जल की अपेक्षा कम स्थायी है, H2S शीघ्र अपघटित होकर हाइड्रोजन देती है तथा सल्फर ऑक्सीजन की अपेक्षा कम विद्युत्-ऋणात्मक है।
प्रश्न 2. समूह 17 के सदस्यों के नाम लिखिए। इन्हें हैलोजेन क्यों कहते हैं ?
उत्तर- समूह 17 में पाँच तत्व-फ्लुओरीन (F), क्लोरीन (Cl), ब्रोमीन (Br), आयोडीन (I) और ऐस्टाटीन (At) हैं। इन्हें हैलोजेन कहते हैं। हैलोजेन शब्द की उत्पत्ति ग्रीक शब्द से हुई है, जिसका अर्थ समुद्री लवण बनाने वाला होता है। समूह 17 के प्रथम चार सदस्य समुद्री लवण में मिलते हैं। इसलिए इन्हें हैलोजेन कहा जाता है।
प्रश्न 3. नाइट्रोजन के मुख्य उपयोग दीजिए।
उत्तर- (1) अमोनिया तथा नाइट्रोजन युक्त अन्य औद्योगिक रसायनों (जैसे-कैल्सियम सायनामाइड) के निर्माण में।
(2) रासायनिक अभिक्रियाओं के लिये अक्रिय वातावरण उपलब्ध कराने में।
(3) द्रव नाइट्रोजन का उपयोग जैविक पदार्थों एवं खाद्य सामग्री के लिये प्रशीतक के रूप में एवं क्रायोसर्जरी में होता है।
प्रश्न 4. क्लोरीन की इलेक्ट्रॉन बन्धुता (electron affinity) अधिक होते हुए भी फ्लुओरीन प्रबलतम ऑक्सीकारक है, क्यों?
उत्तर- क्लोरीन की बन्ध वियोजन ऊर्जा क्लोरीन से कम है जो उसकी इलेक्ट्रॉन बन्धुता की कमी को कर देती है।
प्रश्न 5. फॉस्फोरस के समान नाइट्रोजन पेण्टाहैलाइड क्यों नहीं बनाता है ?
अथवा
सामान्यत: नाइट्रोजन +5 ऑक्सीकरण अवस्था प्रदर्शित नहीं करता है, क्यों?
उत्तर- नाइट्रोजन पेण्टाहैलाइड नहीं बनाता है-नाइट्रोजन का इलेक्ट्रॉनिक विन्यास निम्नलिखित होता है-
1S2 2S2 2px1,’ 2py1, 2pz1.
बाह्य कोश (कोश संख्या 2) में कोई रिक्त -ऑर्बिटल नहीं होता है, इसलिए नाइट्रोजन अपने अष्टक का प्रसार नहीं कर सकता है, अर्थात् बाह्य कोश में 8 से अधिक इलेक्ट्रॉन नहीं हो सकते हैं। अत: नाइट्रोजन अधिक से अधिक चार बन्ध बना सकता है, पाँच बन्ध नहीं बना सकता है। फलस्वरूप नाइट्रोजन + 5 ऑक्सीकरण अवस्था प्रदर्शित नहीं करता है। इसके विपरीत फॉस्फोरस के बाह्य कोश में रिक्त d-ऑर्बिटल होता है, इसलिए यह अपने अष्टक का प्रसार कर सकता है और पेण्टाहैलाइड (PX5) बना सकता है।
प्रश्न 6. ऑक्सीजन के असामान्य व्यवहार का कारण स्पष्ट कीजिए।
उत्तर- ऑक्सीजन छोटे आकार एवं उच्च विद्युत् ऋणात्मकता के कारण असामान्य व्यवहार दर्शाता है।
इसके अतिरिक्त इसमें 4-कक्षकों की अनुपस्थिति के कारण इसकी सहसंयोजकता 4 तक सीमित रहती है और
व्यवहार में 2 से अधिक दुर्लभ है। समूह के अन्य तत्वों में संयोजकता कोश का विस्तार हो सकता है और
सहसंयोजकता 4 से अधिक होती है।
प्रश्न 7. कारण बताइए- अमोनिया लुईस क्षारक की तरह व्यवहार क्यों करती है ?
उत्तर- अमोनिया लुईस क्षारक है-अमोनिया (NH,) अणु के नाइट्रोजन परमाणु पर एक एकाकी इलेक्ट्रॉन युग्म होता है जिसे वह किसी अन्य परमाणु या अणु को दे सकता है, इसलिए यह लुईस क्षारक की भाँति व्यवहार प्रदर्शित करता है।
प्रश्न 8. ऑक्सीजन गैस है, जबकि सल्फर ठोस। समझाइए।
उत्तर- ऑक्सीजन का अणुभार (O, = 32) निम्न होता है। इस अणु का द्विध्रुव आघूर्ण शून्य होता है। O2 अणुओं के मध्य परस्पर आकर्षण बल नगण्य होता है। इसलिये सामान्य अवस्था में O2 गैस अवस्था में पायी जाती है। जबकि सल्फर के एक अणु S8 में 8 परमाणु होते हैं। इसका अणुभार (256) उच्च होता है। अष्ट परमाणु अणु S8 की संरचना सिकुड़ी हुई रिंगनुमा होती है, इसलिए सामान्य ताप पर यह ठोस होता है।
प्रश्न 9. व्यापारिक स्तर पर ओजोन बनाने की विधि का सचित्र वर्णन करो।
अथवा
ओजोन निर्माण की सीमेन्स ओजोनाइजर विधि को समझाइए तथा नामांकित चित्र दीजिए।
उत्तर- व्यापारिक मात्रा में ओजोन सीमेन के ओजोनाइजर द्वारा प्राप्त की जाती है। यह लोहे का एक बॉक्स होता है। इसमें ओजोनीकृत वायु काँच के बड़े-बड़े बेलन (cylinder) दो-दो के युग्म (pair) में लगे होते हैं। प्रत्येक सिलिण्डर में ऐलुमिनियम की एक छड़ लटकी रहती है जिसका एक सिरा काँच की कुचालक प्लेट पर रखा रहता है। ऐलुमिनियम की छड़ों को 8,000 से 10,000 बोल्ट के विभव पर रखा जाता है। उपकरण में अत्यधिक ऊष्मा उत्पन्न होती है, इसलिए बॉक्स के बीच वाले भाग में ठण्डा पानी प्रवाहित किया जाता है। ऐलुमिनियम छड़ और सिलिण्डर के बीच में शुष्क वायु प्रवाहित करते हैं। वायु ऊपर आते-जाते ओजोनयुक्त हो जाती है। जब वायु के स्थान पर 0, प्रयुक्त करते हैं, तब 20% ओजोन प्राप्त होती है।
प्रश्न 10. फ्लुओरीन की अन्य हैलोजनों से भिन्नता के कोई तीन कारण दीजिए।
अथवा
फ्लुओरीन अन्य हैलोजेनों से किस प्रकार भिन्न है ? चार बिन्दु दीजिए।
अथवा
दो उदाहरणों द्वारा फ्लुओरीन के असामान्य व्यवहार को दर्शाइए।
उत्तर- फ्लुओरीन की अद्वितीय स्थिति-फ्लुओरीन अपने अत्यधिक छोटे आकार, उच्चतम ऋणविद्युत्ता अष्टक के फैलने की अक्षमता के कारण समूह के अन्य सदस्यों से काफी भिन्नता दर्शाता है। फ्लुओरीन के असंगत गुणों का वर्णन निम्नलिखित है-
(1) ऑक्सीकरण अवस्था- ‘d ऑर्बिटल के अभाव में फ्लुओरीन केवल – 1 ऑक्सीकरण अवस्था प्रदर्शित करता है, जबकि हैलोजेन परिवार के अन्य सदस्य अनेक ऑक्सीकरण अवस्थाएँ भी प्रदर्शित करते हैं।
(2) बन्ध विघटन ऊर्जा- फ्लुओरीन के अणु में F-F बन्ध ऊर्जा 159 kJ mol-1 है जो बहुत कम है, इसी के कारण फ्लुओरीन अतिक्रियाशील है।
(3) फ्लुओरीन, जल से अभिक्रिया करके HF बनाती है और हाइपोफ्लोरस अम्ल (HOF) नहीं बनाता है, जबकि क्लोरीन और ब्रोमीन जल से अभिक्रिया करके HCIO और HBrO बनाते हैं।
(4) फ्लुओरीन का केवल एक ऑक्सी अम्ल (HOF) ज्ञात है, लेकिन अन्य हैलोजेन अनेक ऑक्सी अम्ल बनाते हैं।
(5) जालक ऊर्जा- चूँकि फ्लुओराइड आयन अपेक्षाकृत छोटा होता है, इसलिए क्रिस्टलीय फ्लुओराइड्स को जालक ऊर्जाएँ अधिक होती हैं।
(6) फ्लुओराइडों का आयनिक स्वभाव- फ्लुओरीन आयनिक फ्लुओराइड बनाता है; जैसे-AIF3, SaF, आदि। इसके संगत क्लोराइड सहसंयोजी होते हैं।
(7) फ्लुओरीन से संयोग करते समय अन्य तत्वों में अपनी उच्च ऑक्सीकरण अवस्था के प्रदर्शन की प्रवृत्ति मिलती है, जैसे-IFI
(8) फ्लुओरीन की ऋणविद्युत्ता सभी तत्वों से उच्च है तथा इलेक्ट्रॉन बन्धुता में इसका स्थान द्वितीय है।
प्रश्न 11. आदर्श गैसें क्या हैं? आदर्श गैसों के समूह को शून्य समूह क्यों कहा जाता है?
उत्तर- He, Ne, Ar, Kraxe गैसों के समूह को आदर्श गैसें कहते हैं, क्योंकि ये सभी ताप वादा पर गैस रसायनिक समीकरण का पालन करती हैं इन गैसों के समूह को शून्य समूह कहते हैं क्योंकि यह रासायनिक रूप से अक्रिय शील होते हैं तथा इनकी संयोजकता शून्य होती है इन्हें उत्कृष्ट गैस से भी कहते हैं क्योंकि ये रासायनिक रूप से अक्रियाशील होती है और बहुत कम यौगिक बनाती है।
प्रश्न 12. निम्नलिखित का कारण स्पष्ट कीजिए
(1) जल का क्वथनांक H2S के क्वथनांक से अधिक है
अथवा
H2O द्रव है जबकि H2S गैस है ?
(2) NH3 का क्वथनांक फास्फीन से अधिक होता है।
(3) नाइट्रोजन की अधिकतम संयोजकता चार होती है जबकि फास्फोरस की पांच होती है
(4) ऑक्सीजन + 4 प्लस +6 ऑक्सीकरण अवस्थाएं प्रकट नहीं करती है
प्रश्न 13. जीनॉन उत्कृष्ट गैस है फिर भी योगिक बनाती है क्यों ?इसके दो यौगिकों के संरचना सूत्र दर्शाइए।
प्रश्न 14. अमोनिया निर्माण की हेबर विधि का वर्णन निम्न बिंदु के आधार पर कीजिए। 1. चित्र 2.विधि का वर्णन 3.समीकरण
प्रश्न 15. डीकन विधि द्वारा क्लोरीन का निर्माण किस प्रकार किया जाता है?
प्रश्न 1. संक्रमण तत्व क्या होते हैं?
उत्तर- वे तत्व जिनके परमाणु या साधारण आयनों में अपूर्ण d- उपकोश होते हैं, संक्रमण तत्व कहलाते हैं। ये 4-ब्लॉक के तत्व होते हैं व 5- एवं p-ब्लॉक के तत्वों के मध्य सेतु का कार्य करते हैं।
प्रश्न 2. Cu+ में d उपकक्ष पूर्ण होने के बाद भी इसके यौगिक अस्थायी क्यों होते हैं ?
उत्तर- Cu+ का नाभिकीय आवेश d उपकक्ष के 10 इलेक्ट्रॉनों को पकड़ने की क्षमता नहीं रखता है।
प्रश्न 3. निर्जलकॉपर सल्फेट में जल मिलाने पर यह नीले रंग का हो जाता है, क्यों?
उत्तर- जल अणु Cu2+के साथ संकुल आयन बनाते हैं जिनमें इलेक्ट्रॉन संक्रमण उन दृश्य क्षेत्र की द्वारा होता है।
प्रश्न 4. लैन्थेनाइड किसे कहते हैं ? इनके दो उपयोग लिखिए।
उत्तर- लैन्थेनम तत्व से गुणों में समानता रखने वाले लैन्थेनम (57) के बाद आने वाले 14 आन्तरिक संक्रमण तत्वों की श्रेणी को लैन्थेनॉयड कहते हैं। इनमें 4/-ऑर्बिटलों में इलेक्ट्रॉन भरे जाते हैं।
उपयोग–
(i) इनकी मिश्र धातुओं का उपयोग बन्दूक की गोलियों और सेलों के निर्माण में होता है।
(ii) 3% मिशधातु (लैन्थेनाइड धातु 95% + आयरन 5% + S, C, Ca, A1 आदि सूक्ष्म मात्रा) + Mg उपयोग जैट इंजन के पार्ट्स के बनाने में।
(iii) इनके ऑक्साइडों का उपयोग काँच पर पॉलिश करने तथा धूप के चश्मे को रंगीन बनाने में होता है।
प्रश्न 5. ऐक्टिनाइड किसे कहते हैं ?
उत्तर- ऐक्टीनियम तत्व से गुणों में समानता रखने वाले, ऐक्टीनियम (89) के बाद आने वाले 14 आन्तरिक संक्रमण तत्वों की श्रेणी को ऐक्टिनाइड कहते हैं। इनमें 5f-ऑर्बिटलों में इलेक्ट्रॉन भरे जाते हैं।
प्रश्न 6. क्यूप्रस और क्यूप्रिक में कौन अनुचुम्बकीय है और क्यों?
उत्तर- क्यूप्रिक आयन में अयुग्मित इलेक्ट्रॉन होते हैं, इसलिये ये अनुचुम्बकीय होते हैं।
प्रश्न 7. Cu’रंगहीन है परन्तु Cu2+ रंगीन होता है, समझाइए।
उत्तर- Cu+ का (n -1)d उपकोश पूर्ण(d10) भरा होता है, इस कारण इसम d-d संक्रमण नहीं होता। और वह सफेद (रंगहीन) रहता है, जबकि Cu2+ में आयुग्मित 3d इलेक्ट्रॉन होने के कारण एवं d-d संक्रमण सम्भव होने के कारण वह रंगीन होता है।
प्रश्न 8. संक्रमण तत्वों की छः विशेषताएँ लिखिए।
अथवा
संक्रमण तत्वों के चार अभिलाक्षणिक गुण लिखिए।
उत्तर– संक्रमण तत्व निम्नलिखित विशिष्ट गुण प्रदर्शित करते हैं:
(1) सभी संक्रमण तत्व धात्विक प्रकृति के होते हैं तथा मजबूत व कठोर होते हैं।
(2) इनके गलनांक व क्वथनांक उच्च होते हैं।
8) ये ऊष्मा और विद्युत् के सुचालक होते हैं।
ये परिवर्ती ऑक्सीकरण अवस्थाएँ प्रदर्शित करते हैं।
(5) ये रंगीन आयन बनाते हैं, एवं प्राय: अनुचुम्बकीय (paramagnetic) होते हैं।
(6) ये उपसहसंयोजी संकुल बनाते हैं।
(7) ये परस्पर तथा अन्य धातुओं के साथ मिश्र धातु (alloy) बनाते हैं।
प्रश्न 9. संक्रमण धातु परिवर्तनशील संयोजकता दर्शाती हैं, क्यों?
अथवा
संक्रमण धातुएँ परिवर्तनीय ऑक्सीकरण अवस्थाएँ दर्शाती हैं, क्यों?
उत्तर- संक्रमण तत्वों मेंns और (n-1) आबिटलों की ऊर्जा में अन्तर बहुत कम होता है इसलिये इनमें इलेक्ट्रॉनों के अतिरिक्त (n-1) ऑर्बिटल के इलेक्ट्रॉन भी रासायनिक बन्च के बनाने में भाग ले सकते है। इसलिए ये तत्व परिवर्ती संयोजकता या परिवर्तनीय ऑक्सीकरण अवस्थायें प्रदर्शित करते हैं। जैसे-दोकालीन संयोजकताएँ दर्शाती है।
प्रश्न 10. लेन्थेनाइड संकुचन से आप क्या समझते हो? इसके क्या परिणाम होते हैं?
अथवा
सैन्थेनाइड संकुचन का क्या कारण है ?
उत्तर– लैन्थेनाइड संकुचन-सामान्यत: – (n-1)d इलेक्ट्रॉन, परिधि के इलेक्ट्रॉनों को नाभिकीय आकर्षण परिरक्षित करते हैं (screening effect) जिससे परमाणु क्रमांक में वृद्धि के साथ-साथ परमाणु त्रिज्या में कमी होती है, किन्तु लैन्थेनाइडों में परमाणु क्रमांक में वृद्धि के साथ परमाणु त्रिज्याएँ तथा आयनिक त्रिज्या नियमित रूप से घटती हैं, इसे लैन्थेनाइड संकुचन कहते हैं। इसका कारण यह है कि लैन्थेनाइडों में समानुक्रमांक में वृद्धि (नाभिक में प्रोटॉन वृद्धि) के साथ अतिरिक्त इलेक्ट्रॉन 4f-ऑर्बिटल से प्रवेश करते हैं। 4f-ऑर्बिटल की आकृति ऐसी होती है कि इसका नाभिक और बाह्य कोश के इलेक्ट्रॉनों के बीच परिरक्षण प्रभाव (Screening effect) न्यूनतम होता है। अत: जैसे-जैसे परमाणु संख्या में वृद्धि होती है नाभिकीय आकर्षण तो बढ़ता किन्तु उसे सन्तुलित करने वाला परिक्षण प्रभाव उतना नहीं बढ़ता है जिसके कारण लैन्थेनाइडों के परमाण्वीय आकर में एक क्रमिक कमी आती जाती है। इसे लैन्थेनाइड संकुचन (Lanthanide contraction) कहते हैं।
उदाहरणार्थ, परमाण्वीय त्रिज्या 1.67 A° (La) से 1.557 A°(Lu) तक तथा आयनिक त्रिज्या 1.06 A° (La3+) से 0.848 A° (Lu3+) तक क्रमशः घटती है।
प्रश्न 11. प्रथम संक्रमण श्रेणी के तत्वों में निम्नलिखित गुणों के परिवर्तन (variation) की विवेचना कीजिए:
(1) परमाण्वीय त्रिज्या,
(3) धात्विक लक्षण,
(2) आयनन ऊर्जा,
(4) ऑक्सीकरण अवस्थाएँ।
अथवा
संक्रमण तत्व विविध ऑक्सीकरण अवस्था क्यों दर्शाते हैं ?
उत्तर– प्रथम संक्रमण श्रेणी Sc (21) से प्रारम्भ होकर Zn (30) पर समाप्त होती है।
(1) परमाण्विक त्रिज्या- संक्रमण तत्वों की परमाण्वीय त्रिज्याएँ s- तथा p- समुदय केे तत्वों केे मध्य होती है। किसी संक्रमण श्रेणी में बायें से दायें चलने से परमाणु क्रमांक में वृद्धि पर परमाण्वीय त्रिज्या घटती है। प्रारम्भ में यह कमी शीघ्रता से होती है और फिर बहुत धीरे-धीरे ।
तत्व परमाण्विक
Sc Ti V Cr Mn Fe Co Ni Cu Zn
त्रिज्या (pm)
144 132 122 117 117 117 116 115 117 123
प्रारम्भ में नाभिकीय आवेश में वृद्धि के कारण परमाणु त्रिज्या घटती है, किन्तु बाद में बढ़े हुए नाभिक आवेश का प्रभाव उपान्तिम (penultimate) कोश के d-ऑर्बिटलों के इलेक्ट्रॉनों के बढ़े हुए आवरण प्रभाव (screening effect) द्वारा आंशिक रूप से निरस्त हो जाता है। इस कारण परमाण्विक त्रिज्या (atomic radii) लगभग स्थिर हो जाती है।
(2) आयनन ऊर्जा- संक्रमण तत्वों की प्रथम आयनन ऊर्जा -ब्लॉक के तत्वों की आयनन ऊर्जा का तुलना में उच्च, किन्तु p-ब्लॉक के तत्वों से कम होती है। किसी संक्रमण श्रेणी में बायें से दायें चलने आयनन ऊर्जा का मान धीरे-धीरे बढ़ता है। आयनन ऊर्जा में वृद्धि नाभिकीय आवेश में वृद्धि के कारण होती। किन्तु यह वृद्धि धीरे-धीरे होती है, क्योंकि नाभिकीय आवेश में वृद्धि का प्रभाव परिरक्षण प्रभाव (screens effect) में वृद्धि के कारण आंशिक रूप से निरस्त हो जाता है।
(3) धात्विक लक्षण- संक्रमण तत्व धात्विक प्रकृति के होते हैं। ये कटोर, उच्च घनत्व वाले तथा ऊष्मा व विद्युत् के उच्च चालकता वाले होते हैं और इनमें विशिष्ट धात्विक चमक होती है। इनमें धात्विक लक्षण निम्न आयनन ऊर्जा और रिक्त d-ऑर्बिटलों के कारण होता है।
(4) ऑक्सीकरण अवस्थाएँ- संक्रमण धातुएँ परिवर्ती ऑक्सीकरण अवस्थाएँ अर्थात् कई ऑक्सीकरण अवस्थाएँ प्रदर्शित करती हैं। इसका कारण यह है कि इन धातुओं के -ऑर्बिटलों के इलेक्ट्रॉनों के अतिरित (n-1) d-ऑर्बिटलों के कुछ या सभी इलेक्ट्रॉन भी रासायनिक बन्ध बनाने में भाग ले सकते हैं, क्योंकि इससे ns और (n-1) d-इलेक्ट्रॉनों की ऊर्जाओं में बहुत कम अन्तर होता है। प्रथम श्रेणी (34) के संक्रमण तत्वों के द्वारा प्रदर्शित विभिन्न ऑक्सीकरण अवस्थाएँ अग्रांकित सारणी में दी गयी हैं :
प्रश्न 1. हैलोऐल्केन (ऐल्किल हैलाइड) और हैलोऐरीन क्या होते हैं ?
उत्तर- ऐल्केन और ऐरीन (ऐरोमैटिक हाइड्रोकार्बन) के हाइड्रोजन परमाणु का हैलोजेन परमाणु द्वारा प्रतिस्थापन करने पर बने यौगिक, क्रमश: हैलोऐल्केन और हैलोऐरीन कहलाते हैं। हैलोऐरीन में हैलोजेन परमाणु ऐरोमैटिक रिंग के किसी कार्बन परमाणु से सीधे (directly) जुड़ा रहता है। उदाहरण-
C5H5CI— हैलोऐल्केन, C6H5Cl –––– हैलोऐरीन
प्रश्न 2. हैलोफॉर्म अभिक्रिया क्या होती है ?
उत्तर- वे यौगिक, जिनमें CH,CO – भाग H या C से जुड़ा रहता है, क्षार की उपस्थिति में हैलोजेन से क्रिया करने पर हैलोफॉर्म; जैसे-क्लोरोफॉर्म, आयोडोफॉर्म आदि बनाते हैं। इसे हैलोफॉर्म अभिक्रिया कहते हैं।एथेनॉल, ऐसीटैल्डिहाइड, ऐसीटोन आदि ऐसे यौगिक हैं जो हैलोफॉर्म अभिक्रिया देते हैं।
R–CO–CH3 + 3X2 + 6NaOH ––––> CHX3 + RCOONa + 5 Nax
प्रश्न 3. कार्बिलऐमीन अभिक्रिया क्या है ?
उत्तर– जब क्लोरोफॉर्म को किसी प्राथमिक ऐमीन, जैसे-ऐनिलीन के साथ ऐल्कोहॉलीय KOH की उपस्थिति में गरम किया जाता है, तब आइसोसायनाइड (कार्बिलऐमीन) बनता है, जिसमें अरुचिकर गन्ध होती है। इसे कार्बिलऐमीन अभिक्रिया कहते हैं। इस अभिक्रिया की सहायता से क्लोरोफॉर्म या प्राथमिक ऐमीन का परीक्षण करते हैं।
CHCl3+ 3KOH + C6H5NH2–-–––>C6H5N = C + 3KCl + 3H2O
प्रश्न 4. गाटरमैन अभिक्रिया क्या है ? समीकरण सहित समझाइए।
उत्तर- जब बेंजीन डाइऐजोनियम क्लोराइड को कॉपर चूर्ण के साथ गरम करते हैं, तब क्लोरोबेंजीन बनता है। इसे गाटरमैन अभिक्रिया कहते हैं।
C6H5N2Cl + Cu ――> C6H5Cl +N2
क्लोरोबेंजीन
प्रश्न 5. हैलोऐरीन में C–X आबन्ध की प्रकृति को स्पष्ट कीजिए।
प्रश्न 6. क्लोरोबेंजीन में क्लोरीन के दैशिक प्रभाव को स्पष्ट कीजिए।
प्रश्न 7. विलोपन अभिकिया किसे कहते हैं ? इससे सम्बन्धित सेटजेफ नियम का उल्लेख कीजिए।
प्रश्न 8. क्या होता है जब (केवल समीकरण लिखिए)-
(i) ऐसीटोन को आयोडीन के क्षारीय विलयन के साथ गर्म किया जाता है।
(ii) क्लोरोबेंजीन को क्लोरल के साथ सान्द्र H,SO, की उपस्थिति में गर्म किया जाता है।
(iii) क्लोरोबेंजीन ईथर की उपस्थिति में सोडियम के साथ गर्म किया जाता है।
(iv) एथिल ब्रोमाइड को ऐल्कोहॉलीय KOH के साथ गर्म किया जाता है।
प्रश्न 9. ऐल्किल हैलाइड में नाभिकस्नेही प्रतिस्थापन अभिक्रिया कैसे होती है ? इसकी क्रियाविधि दीजिए
अथवा
तृतीयक ब्यूटिल ब्रोमाइड के जल-अपघटन की SI क्रियाविधि समझाइए।
अथवा
मेथिल क्लोराइड के जल-अपघटन की क्रियाविधि समझाइए।
प्रश्न 10. प्रयोगशाला में शुद्ध क्लोरोफॉर्म बनाने की विधि का वर्णन नामांकित चित्र सहित दीजिए। इसके प्रमुख भौतिक एवं रासायनिक गुण तथा उपयोग दीजिए।
अथवा
प्रयोगशाला में क्लोरोफॉर्म बनाने का वर्णन अग्र बिन्दुओं के आधार पर कीजिए –
प्रश्न 11. निम्नलिखित में से किन्हीं दो अभिक्रियाओं को समझाइए-
(i) वुर्टज अभिक्रिया, (ii) सैण्डमेयर अभिक्रिया, (iii) वुर्टज-फिटिग अभिक्रिया, (iv) आयोडोफॉर्म अभिक्रिया, (v) फ्रीडेल-क्राफ्ट अभिक्रिया, (vi) फ्रन्कलैण्ड अभिक्रिया।
NOte ―प्रश्न 5 से 11 तक की सभी प्रश्नों का उत्तर आपके लिए PDF में उपलब्ध है PDF में आप इसका सलूशन देख सकते हैं
प्रश्न 1. दो सल्फा औषधियों के नाम लिखिए।
उत्तर- सल्फा औषधियों के नाम-(i) सल्फा डाइजीन, (ii) सल्फा गुआनिडीन।
प्रश्न 2. दो दर्द निवारक या पीड़ाहारी औषधियों के नाम लिखिए।
उत्तर- दर्द निवारक औषधि-(i) मॉर्फीन, (ii) आइब्यूप्रोफेन।
प्रश्न 3. दो ऐसे-ऐमीनो अम्लों के नाम लिखिए जो ऐसा डाइपेप्टाइड बनाते हैं जो गन्ने की शक्कर से भी 100 गुना मीठा है ?
उत्तर-ऐस्पार्टिक अम्ल एवं फेनिल ऐलानीन। (इनसे बने डाइपेप्टाइड का मेथिल एस्टर ऐस्पार्टेम एक कृत्रिम मधुरक है।)
प्रश्न 4. खाद्य परिरक्षक क्या होते हैं ? इनके दो उदाहरण व सूत्र दीजिए।
अथवा
खाद्य परिरक्षक पर टिप्पणी लिखिए।
उत्तर- खाद्य पदार्थों को सड़ने से बचाने वाले पदार्थों को खाद्य परिरक्षक कहते हैं। ये पदार्थ खाद्य पदार्थों को सूक्ष्मजीवों की वृद्धि के कारण होने वाली खराबी से बचाते हैं। खाने का नमक, चीनी, वनस्पति तेल, पोटैशियम मेटाबाइसल्फाइट तथा सोडियम बेन्जोएट सामान्य रूप से प्रयोग में लाये जाने वाले परिरक्षक हैं। सबसे अधिक सामान्य रूप से प्रयुक्त होने वाला परिरक्षक सोडियम बेन्जोएट है। यह शरीर में उपापचयित (metabolise) हो जाता है और हिप्पयूरिक अम्ल के रूप में मूत्र के द्वारा उत्सर्जित होता है। सार्बिक अम्ल तथा प्रोपेनोइक अम्ल के लवण भी परिरक्षक के रूप में प्रयुक्त होते है
C6H5COONa K2S2O5
सोडियम बेंजोएट पोटैशियम मेटाबाइसल्फाइट
प्रश्न 5. पूतिरोधी (antiseptic) और रोगाणुनाशी (disinfectant) में क्या अन्तर है ?
उत्तर- पूतिरोधी वे रासायनिक पदार्थ हैं जो हानिकारक सूक्ष्मजीवियों की वृद्धि एवं गुणन रोक देते हैं अथवा उन्हें नष्ट कर देते हैं। ये जीवित कोशिका को कोई नुकसान नहीं पहुँचाते हैं; जैसे-डेटॉल, सेवलॉन, ऐक्रिफ्लेविन, बोरिक अम्ल आदि। रोगाणुनाशी वे रासायनिक पदार्थ हैं जो सूक्ष्मजीवियों या बैक्टीरिया को नष्ट कर देते हैं या उनकी वृद्धि रोक देते हैं। किन्तु ये जीवित ऊतकों को नुकसान पहुंचाते हैं, इसलिये इनका उपयोग त्वचा पर नहीं किया जाता है। जैसे-फीनोल, क्रेसॉल, क्लोरीन, SO, आदि। कुछ रासायनिक पदार्थ पूतिरोधी और रोगाणुनाशी दोनों का समान रूप से कार्य करते हैं। फीनोल का 0.2% विलयन पूतिरोधी और 1% विलयन रोगाणुनाशक है।
प्रश्न 6. दर्दनाशी (पीड़ाहारी) क्या होते हैं ? उदाहरण दीजिए।
उत्तर-पीड़ाहारी (Analgesic)-वे रासायनिक पदार्थ जो शरीर की पीड़ा कम करते हैं या पीड़ा दूर करते हैं, पीड़ाहारी कहलाते हैं। जैसे-मॉर्फीन, कोडीन, हेरायन आदि कुछ नार्कोटिक समूह के पीड़ाहारी हैं तथा ऐस्प्रिन और ऐनालजिन अनार्कोटिक वर्ग (non-narcotic) के पीड़ाहारी हैं। ये ज्वर भी कम करते हैं।
प्रश्न 7. प्रशान्तक क्या होते हैं ? दो उदाहरण दीजिए।
अथवा
शामक औषधि क्या होती है ? दो उदाहरण दीजिए।
उत्तर- प्रशान्तक-यह रासायनिक यौगिकों का वह वर्ग है जो केन्द्रीय स्नायु तन्त्र (CNS) को प्रभावित करता है तथा व्यग्रता और तनाव को नियन्त्रित करता है। ये दो प्रकार के होते हैं-
(a) शामक (Sedative)- ये ऐसे रोगियों को दिये जाते हैं जो हिंसात्मक प्रवृत्ति वाले होते हैं। ये औषधियाँ निराशा (depression) और अतितनाव (hypertension) की स्थिति में दी जाती हैं। ये निद्रा भी उत्पन्न करती हैं। उदाहरण-डाइजिपाम (Calmpose), आबमेठ (Equanil) और सेकोनाल (Seconal) प्रशान्तक के रूप में प्रयुक्त होते हैं।
(b) प्रतिनिराशक (Antidepressants)- ये औषधियाँ अतिनिराशा व आत्म-विश्वासहीनता की स्थिति में दी जाती हैं। इनके लेने से मनुष्य अपने को सामान्य महसूस करने लगता है और उसकी दक्षता (efficiency) बढ़ जाती है। कोकेन, टोफ्रेनिल (Tofranil), वाइटेलिन आदि कुछ सामान्य प्रतिनिराशक हैं।
प्रश्न 8. कृत्रिम मधुरक (Artificial sweetners) क्या होते हैं ? इनके उदाहरण दीजिए।
अथवा
दो कृत्रिम मधुरकों के नाम लिखिए।
उत्तर- सुक्रोस (चीनी) सर्वाधिक प्रयोग में लाये जाने वाले मधुरक हैं किन्तु इसके प्रयोग से ग्रहण की जाने वाली कैलोरी के मान में वृद्धि हो जाती है जो प्रायः हानिकारक होती है। प्राकृतिक मधुरक के स्थान पर कृत्रिम मधुरक प्रयोग में लाये जाते हैं जिनका कैलोरी मान बहुत ही कम होता है। कुछ कृत्रिम मधुरक-ऐस्पार्टेम, सैकेरीन, सुक्रालोस, ऐलिटेम आदि हैं।
ऐस्पार्टम- सबसे अधिक सफल और व्यापक रूप से उपयोग में आने वाला कृत्रिम मधुरक है जो सुक्रोस की तुलना में 100 गुना मीठा होता है। इसका उपयोग केवल ठंडे खाद्य पदार्थों तक सीमित है क्योंकि खाना पकाने के ताप पर यह अस्थायी होता है।
ऐलिटेम- सबसे प्रबल मधुरक है जो सुक्रोस की तुलना में 2000 गुना मीठा होता है। यह ऐस्पार्टेम से अधिक स्थायी होता है किन्तु इसका प्रयोग करते समय मिठास नियन्त्रित करना कठिन होता है।
सुक्रालोस- सुक्रोस का ट्राइक्लोरो व्युत्पन्न है। यह शर्करा जैसा होता है। यह खाना पकाने के तापमान पर भी स्थायी होता है। यह सुक्रोस की तुलना में 600 गुना मीठा होता है।
प्रश्न 9. साबुन कठोर जल में कार्य क्यों नहीं करते?
उत्तर- साबुन वसा अम्लों के सोडियम व पोटैशियम लवण होते हैं। कठोर जल में कैल्सियम तथा मैग्नीशियम के आयन होते हैं। ये आयन, सोडियम तथा पोटैशियम साबुन को कठोर जल में घोलने पर क्रमश: अघुलनशील कैल्सियम और मैग्नीशियम साबुन में परिवर्तित कर देते हैं।
2C17H35 COONa + CaCl → 2NaCl + (C17H35COO)2Ca
ये अघुलनशील साबुन मलफेन (scum) की तरह पानी से अलग हो जाते हैं और शोधन कार्य के लिए बेकार होते हैं। यह अवक्षेप (अघुलनशील) कपड़ों के रेशों पर चिपचिपे पदार्थ की तरह चिपक जाता है, जो कि कपड़ों की धुलाई में रुकावट डालता है।
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