Class 12th Biology : जीवों में जनन | UP Board Solutions for Class 12th Biology Chapter 1 Reproduction in Organisms – जीवों में जनन

प्रिय विद्यार्थियों कक्षा 12 के जीव विज्ञान के महत्त्वपूर्ण नोट्स के साथ आपको NCERT बुक के महत्त्वपूर्ण प्रश्नों के हल को आपके लिए यहाँ पर आपको उपलब्ध कराया गया है . यह सभी विद्यार्थियों के लिए महत्त्वपूर्ण है जो की विद्यार्थियों के बोर्ड एग्जाम में बहुत हेल्प करेगा .

BIOLOGY : CLASS 12TH जीवों में जनन

Board ( बोर्ड ) UP Board; MP Board; Rajasthan Board; Bihar Board; UK Board
Textbook ( किताब ) NCERT Book
Class ( कक्षा ) Class 12th
Subject ( विषय ) Biology ( जीवविज्ञान )
Chapter ( अध्याय ) Chapter 1
Chapter Name ( अध्याय का नाम ) Reproduction in Organisms ( जीवों में जनन )
Category ( श्रेणी ) Advance Education Point

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IMPORTANT  परिभाषाएं 

  • जीव के जन्म से उसकी प्राकृतिक मृत्यु तक का काल उस जीव की जीवन – अवधि कहलाती है . जीवन अवधि एक दिन से लेकर कुछ हजार वर्ष तक हो सकती है . प्रत्येक जीव की मृत्यु निश्चित होती है .
  • एक कोशिकीय जीवों को छोड़कर कोई भी जीव अमर नही है . एक कोशिकीय जीव कोशा  विभाजन के फलस्वरूप संतति कोशिका में बंट जाता है अत : इसकी प्राकृतिक मृत्यु नही होती .
  • प्रजनन द्वारा जीवधारी अपने समान संतति को जन्म देता है . इससे जीव प्रजाति पीढ़ी दर पीढ़ी सृष्टि में भी रहती है . संतति में वृधि होती है , उसमे परिपक्वता आती है और फिर यह जनन द्वारा नई संतति को जैम देती है . इस प्रकार जन्म , वृद्धि और मृत्यु का चक्र चलता रहता है .
  • जीवों में जनन दो प्रकार से होता है – 1. अलैंगिक ( ASEXUAL )    2. लैंगिक ( SEXUAL ) जनन .
  • अलैंगिक ( ASEXUAL ) जनन  में एकल जीव संतति उत्पन्न करने की क्षमता रखता है . संतति एक दुसरे के समरूप और अपने जनक से आनुवंशिक रूप से समान अर्थान्त क्लोन होती है .
  • अलैंगिक जनन सामान्यतया सरल संरचना वाले जीवों में पाया जाता है जैसे प्रॉटिस्टा एवं मोनेरा संघ के सदस्यों में . अमीबा तथा पैरामिशियम में द्विखंडन द्वारा , यीस्ट तथा हाइड्रा में कलिका द्वारा , मलेरिया परजीवी में बहुखंडन द्वारा , शैवालों  में चल बीजाणु द्वारा , फंजाई में बीजाणु या कोनिडीया ( CONIDIA ) द्वारा अलैंगिक जनन होता है .
  • पादपों में कायिक प्रवर्धन ( VEGETATIVE PROPAGATION ) कायिक प्रवर्ध ( PROPAGULES ) द्वारा होता है . इसमें पादप का काई भाग पौधे से पृथक होकर नया पादप बनाता है जैसे आलू में कांड द्वारा; अदरक, हल्दी में प्रकांड द्वारा; प्याज, लहसुन , लिली में शल्ककंद द्वारा; केवड़ा, अगैव में बुलबिल द्वारा ; ब्रयोफिल्ल्म में पर्ण कलिकाओं द्वारा; डूब घास में उप्रिभुस्तरी द्वारा ; जलकुम्भी में भुस्तारिका द्वारा ; पोदीना में अंत: भूस्तारी  द्वारा द्वारा कायिक जनन होता है .
  • लैंगिक जनन ( SEXUAL ) में विपरित लिंग वाले नर और मादा जीवों की आवशयकता होती है . इनमे क्रमश : नर तथा मादा युग्मक का निर्माण होता है . नर तथा मादा युग्मों संयुग्मन को निषेचन ( फर्टिलाइजेशन ) कहते है . इसके फलस्वरूप युग्म्नाज़ या युग्माणु ( ZYGOTE ) बनता है . युग्मनज से वृद्धि , विभाजन एवं विभेदन से नए जीव का विकास होता है . प्राणियों में सामान्यत : लैंगिक जनन पाया जाता है . उच्च श्रेणी के पोधों में अलैंगिक तथा लैंगिक दोनों प्रकार का जनन पाया जाता है .

UP Board Solutions for Class 12th Biology Chapter 1 Reproduction in Organisms | जीवों में जनन

अभ्यास के अंतर्गत पूछे गये प्रश्न :

प्रश्न 1: जीवों के लिए जनन क्यों आवश्यक/अनिवार्य  है ?

उत्तर :

कोई भी जीव अमर ( immortal ) नही होता , उसकी एक निश्चित जीवन अवधि होती है . जीव मरते है लेकिन प्रजाति की निरंतरता बनी रहती है . प्रजनन प्रजाति की निरंतरता सुनिश्चित करता है . यह मृत्यु के रूप में हुई जीव हानि को गौण ( secondary ) बना देता है .

      दुसरे, प्रजनन से उत्पन्न हुई विभिन्नताए जीव को बदले पर्यावरण में सफल जीवन यापन हेतु सक्षम बनाने के अवसर देती है अर्थात ये जीवों के विकास में सहायक है .

प्रश्न 2: जनन की अच्छी विधि कौन सी है और क्यों ?

उत्तर :

जीवों में सामान्यतया जनन दो प्रकार से होता है –

  1. अलैंगिक जनन (  asexual reproduction )
  2. लैंगिक जनन ( sexual reproduction)

     जीवों में जनन के लिए लैंगिक जनन विधि को अच्छा माना जाता है , इस विधि में विपरीत लिंग ( sex ) वाले दो जनक ( parents ) भाग लेते है . इनमें नर और मादा युग्मकों का संयुग्मन ( fusion ) होता है . संयुग्मन के फलसवरूप बने युग्माणु या युग्मनज ( zygote ) से नए जीव का विकास होता है . युमक तथा युग्मनज निर्माण के समय गुणसूत्रों की जीन संरचना में भिन्नता आ जाने के कारन संतति पूर्ण रूप से अपने जनक के सामान नही होती है .

       संतति में उत्पन्न होने वाली विभिन्नताए ( वरिअतिओन्स ) जैव विकास का अधर होती है . ये भिन्नताए जीव को बदले पर्यावरण में भी सफल जीवन यापन के अवसर प्रदान करती है तथा संकर ओज प्रदान करती है .

प्रश्न 3: अलैंगिक जनन द्वारा उत्पन्न हुई संतति को क्लोन क्यों कहा गया है ?

उत्तर :

इस विधि में केवल समसूत्री विभाजन ( मिटोसिस ) शामिल होता है अत : इसके द्वारा उत्पन्न संतति एक दुसरे के समरूप एवं पूर्णरूप से अपने जनक के समान होती है . आकरिकीय ( morphological ) तथा आनुवंशिक ( जेनेटिकली ) रूप से समान जीवों को क्लोन कहते है . अत : अलैंगिक जनन द्वारा उत्पन्न संतति को क्लोन कहा जाता है.

प्रश्न 4 : लैंगिक जनन के परिणाम स्वरूप बनी संतति को जीवित रहने के अच्छे अवसर होते है , क्यों ? क्या यह कथन हर समय सही होता है ?

उत्तर :

लैंगिक जनन ( sexual reporduction ) में विपरीत लिंग वाले तथा भिन्न आनुवंशिक संगठन वाले जीवों की आवश्यकता होती है. लैंगिक जनन द्वारा उत्पन्न संतति अपने जनको के अथवा आपस में भी समरूप ( identical ) नही होती है , इनमें विभिन्नताए ( वेरिएशन्स ) पायी जाती है . यह विभिन्नता युग्मक निर्माण के समय होने वाले अर्द्ध सूत्री विभाजन में जीन विनिमय ( crossing over ) , गुणसूत्रों का पृथक्करण तथा युग्मकों के यादृच्छिक संलयन ( random fusion ) के कारण उत्त्पन्न होती है .

ये विभिन्नताए जीव को बदले पर्यावरण में सफल उत्तर जीवित की सम्भावनाये प्रदान करती है . लैंगिक जनन प्राय : अच्छे अवसर ही प्राप्त कराता है . हानिकारक लक्षण धीरे धीरे समष्टि से विलुप्त हो जाते है , लेकिन पर्यावरण की भी इसमें महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है . लक्षणों का चुना जाना ( अच्छा होना या न होना ) पर्यावरण पर भी निर्भर करता है . कुल मिलकर लैंगिक जनन के प्रिनाम्सव्रूप बनी संतति को जीवित रहने के अच्छे अवसर होते है .

 

प्रश्न 5 : अलैंगिक जनन द्वारा बनी संतति लैंगिक जनन द्वारा बनी संतति से किस प्रकार भिन्न है ?

उत्तर :

  1. अलैंगिक जनन द्वारा बनी सानती एक दुसरे के और अपने जनक के समरूप ( identical ) होती है . इसके विपरीत लैंगिक जनन द्वारा उत्पन्न संतति एक दुसरे  से और अपने जनको के समरूप नही होती है 
  2. अलैंगिक जनन द्वारा बनी संतति आकरिकीय तथा आनुवंशिक रूप से एक दुसरे के समरूप या क्लोन होती है . इसके विपरीत लैंगिक जनन द्वारा उत्पन्न संतति आकरिकीय तथा आनुवंशिक रूप से एक दुसरे के समरूप नही होती , इनमे विभिन्नताए पायी जाती है .

प्रश्न 6: अलैंगिक तथा लैंगिक जनन के मध्य विभेद स्थापित कीजिये . कायिक जनन को प्रारूपिक अलैंगिक जनन क्यों मन गया है ?

उत्तर :

अलैंगिक और लैंगिक जनन के मध्य विभेद –

 

 

कायिक जनन में पौधे का कोई कायिक भाग ( VEGETATIVE PART ) पौधे से पृथक होकर संतति पादप का निर्माण करता है . इन संरचनाओ को कायिक प्रवर्ध ( प्रोपेग्युल ) कहते है . इन संरचनाओ के निर्माण में दो जनक भाग नही लेते ; साथ ही कायिक जनन से बनी संतति आकारिकी व आनुवंशिक गुणों में अपने जनको के समान या क्लोन होती है तथा इसमें युमक निर्माण व् युग्मक संलयन नही होता है . अत : कायिक जनन अलैंगिक जनन ही माना जाता है .

 

प्रश्न 7: कायिक प्रवर्धन से क्या समझते है ? कोई दो उपयुक्त उदाहरण दीजिये .

उत्तर :

कायिक प्रवर्धन ( Vegetative Propegation ) : यह अलैंगिक जनन का एक प्रकार होता है , जिसमें संतति निर्माण पौधों के कायिक भागों या वर्धि भागो से होता है . अत : यह कायिक जनन कहलाता है . प्राकृतिक कायिक जनन ( प्रवर्धन ) पौधों की जड़ , स्तम्भ अथवा पत्तियों से हो सकता है . आलू के स्वस्थ कांड ( tuber ) में उपस्थित छोटे – छोटे गड्ढो में कलिकाए पाई जाती है . आलू को बोने पर अपस्थानिक कलिकाए विकसित होकर नए पौधे वनती है . अदरक का भूमिगत तना प्रकांड ( rhizome ) कहलाता है . प्रकांड की पर्व्संधियों पर स्थित अपस्थानिक कलिकाए विकसित होकर न्य पौधा बना देती है .

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प्रश्न 8 : व्याख्या कीजिय –

(क) किशोर चरण ,   ( ख) प्रजनक चरण ,   ( ग ) जीर्णता चरण अथवा जीर्णावस्था .

उत्तर:

( क ) किशोर चरण ( juvenile phase ) – सभी जीव धारी लैंगिक रूप से परिपक्व होने से पूर्व एक निश्चित वर्धि अवस्था से होकर गुजरते है , इसके पश्चात् ही वे लैंगिक जनन कर सकते है . इस अवस्था को प्राणियों में किशोर चरण या अवस्था तथा पौधों में कायिक अवस्था ( vegetative phase ) कहते है . इसकी अवधि विभिन्न जीकों में भिन्न भिन्न होती है .

( ख ) प्रजनक चरण ( reproductive phase ) – किशोरावस्था अथवा कायिक प्रावस्था के समाप्त होने पर प्रजनक चरण अथवा जनन प्रावस्था प्रारंभ होती है . पौधों में इस अवस्था में पुष्पं ( फ्लोवेरिंग ) प्रारंभ हो जाता है . मनुष्य में योवानारम्भ ( puberty ) से इसका प्रारंभ होने लगता है जिसमें अनेक शारीरिक एवं आकरिकीय परिवर्तन आ जाते है . इस चरण में जीव , संतति उत्पन्न करने योग्य हो जाता है . यह अवस्था विभिन्न जीवों में अलग अलग होती है अर्थात किशोर चरण व जीर्णावस्था के वीच की अवस्था ही प्रजनन अवस्था होती है . स्तानियों में मद्चक्र या रितुचक्र के प्रारम्भ से मेनोपोज तक प्रजनक चरण कहलाता है .

( ग ) जीर्णता चरण या जीर्णावस्था ( सेनेस्सेंट phase ) – यह जीवन चक्र की अंतिम अवस्था अथवा तीसरी अवस्था होती है प्रजनन आयु की समाप्ति को जीर्णता चरण या जीर्णावस्था की प्रारम्भिक अवस्था माना जा सकता है . इस चरण में प्रजननं क्षमता के साथ साथ उपापचय क्रियाये मंद होने लगती है , उतकों का क्षय होने लगता है . शरीर के अंग धीरे कार्य करना बंद कर देते है और अंतत : जीव की मृत्यु हो जाती है . इसे वृद्धावस्था भी कहते है .

 

प्रश्न 9: अपनी जटिलता के बावजूद बड़े जीवों ने लैंगिक प्रजनन को अपनाया है , क्यों ?

उत्तर :

लैंगिक जनन ( Sexual Reproduction ) – अलैंगिक जनन की तुलना में जटिल , विस्तृत और धीमी प्रक्रिया होती है . यह अधिक उर्जा व् संशाधनो की भी मांग करता है लेकिन फिर भी जटिल पादपों व् जंतुओं ने इसी को अपनाया है . संतति परस्पर तथा अपने जनकों के समरूप ( identical ) नही होती , इनमें विभिन्नताए ( वेरिएशन्स ) पाई जाती है . विभिन्नताओं के कारण जीवधारी स्वयं  को अपने वातावरण से अनुकूलित किय रहते है . विभिन्नताओं के कारन जीवों की जीवन शक्ति की वृद्धि होती है . विभिन्नताओं के कारन ही जैव विकास होता है . लैंगिक जनन जीवधारियों को प्रतिकूल परिस्थितियों में जीवित रहने में सहायक होता है . यही कारन है बड़े जीवधारियों ने शारीरिक जटिलता के साथ साथ लैंगिक जनन को अपनाया है .

 

प्रश्न 10: व्याख्या करके बताये की अर्धसूत्री विभाजन तथा युग्माकजनन सदैव अंतर सम्बंधित ( अंतर्बद्ध ) होते है .

उत्तर :

लैंगिक जनन करने वाले जीवधारियों में प्रजनन के समय अर्द्ध सूत्री विभाजन तथा युग्मक जनन ( gametogenesis ) प्रक्रियाये होती है . सामान्यतया लैंगिक जनन करने वाले जीव द्विगुणित ( diploid ) होते है . इनमें युग्मक निर्माण अर्द्ध सूत्री विभाजन द्वारा होता है . युग्मकों में गुणसूत्रों की संख्या आधी रह जाती है , अर्थात युग्मक अगुणित ( haploid ) होते है . अत: युग्मक जनन तथा अर्द्ध सूत्री विभाजन क्रियाये अंतर सम्बंधित ( अंतर्बद्ध ) होती है . निषेचन के फलस्वरूप नर तथा मादा अगुणित युग्मक संयुग्मन द्वारा द्विगुणित युग्मनज ( diploid zygote ) बनता है . द्विगुणित युग्माणु से भुर्निय पारिवर्धन द्वारा नये जीव का विकास होता है . अर्धसूत्री विभाजन , किसी प्रजाति में गुणसूत्र संख्या लैंगिक जनन के दौरान स्थिर बनाये रखने में मदद करता है . अगुणित जीवों में युग्मक निर्माण सूत्री विभाजन द्वारा तथा जैगोतिक अर्द्ध् सूत्री विभाजन होता है . 

 

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