जीव जगत का वर्गीकरण – Biological Classification Class – 11th Biology Chapter 2

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प्रिय विद्यार्थियों कक्षा 11  के जीव विज्ञान के महत्त्वपूर्ण नोट्स के साथ आपको NCERT बुक के महत्त्वपूर्ण प्रश्नों के हल को आपके लिए यहाँ पर आपको उपलब्ध कराया गया है . यह सभी विद्यार्थियों के लिए महत्त्वपूर्ण है जो की विद्यार्थियों के बोर्ड एग्जाम में बहुत हेल्प करेगा .

BIOLOGY : CLASS 11 TH जीव जगत का वर्गीकरण 

Board ( बोर्ड )UP Board; MP Board; Rajasthan Board; Bihar Board; UK Board
Textbook ( किताब )NCERT Book
Class ( कक्षा )Class 11th
Subject ( विषय )Biology ( जीवविज्ञान )
Chapter ( अध्याय )Chapter 2 
Chapter Name ( अध्याय का नाम )Biological Classification जीव जगत का वर्गीकरण 
Category ( श्रेणी )Advance Education Point

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अभ्यास के अंतर्गत दिए गये प्रश्नोत्तर –

प्रश्न 1: वर्गीकरण की पद्धतियों में समय के साथ आए परिवर्तन की व्याख्या कीजिए .

उत्तर :

वर्गीकरण पद्धति ( classification system ) जीवों को उनके लक्षणों की समानता और असमानता के आधार पर समूह तथा उपसमूहों में व्यवस्थित करने की प्रक्रिया है . प्रारंभिक पद्धतियां कृत्रिम थी . उसके पश्चात् प्राकृतिक तथा जातिवृत्तीय वर्गीकरण पद्धतियों का विकास हुआ .

  1. कृत्रिम वर्गीकरण पद्धति ( Artificial classification System ) – इस प्रकार के वर्गीकरण में वर्धि लक्षणों ( Vegetative Characters ) या पुमंग ( androecium ) के आधार पर पुष्पी पौधों का वर्गीकरण किया गया है . कैरोलस लिनियस ने पुमंग के आधार पर वर्गीकरण प्रस्तुत किया था . परन्तु , कृत्रिम लक्षणों के आधार पर किये गये वर्गीकरण में जिन पौधों के सामान लक्षण थे उन्हें अलग अलग तथा जिनके लक्षण असमान थे उन्हें एक ही समूह में रखा गया था . यह वर्गीकरण की दृष्टि से सही नही था . ये वर्गीकरण आजकल प्रयोग नही होते है .
  2. प्राकृतिक वर्गीकरण पद्धति ( Natural Classification System ) – प्राकृतिक वर्गीकरण पध्दति में पौधों के सम्पूर्ण प्राकृतिक लक्षणों को ध्यान में रखकर उनका वर्गीकरण किया जाता है . पौधों की समानता निश्चित करने के लिए उनके सभी लक्षणों – विशेषतया पुष्प के लक्षणों का अध्ययन किया जाता है . इसके अतिरिक्त पौधों की आंतरिक संरचना , जैसे शारीरिकी , भ्रोंणिक एवं फाइटोकेमिस्ट्री आदि को भी वर्गीकरण करने मने सहायक मन जाता है . आवर्तबिजियों का प्राकृतिक लक्षणों पर आधारित वर्गीकरण करने में सहायक माना जाता है . आवृतबिजियों का प्राकृतिक लक्षणों पर आधारित वर्गीकरण जोर्ज बेन्थैम ( George Bentham ) तथा जोसफ डाल्टन हुकर द्वारा सम्मिलित रूप में प्रस्तुत किया गया जिसे उन्होंने जेनेरा प्लेंतेरम ( Genera Plantarum ) नामक पुस्तक में प्रकाशित किया . यह वर्गीकरण प्रायोगीक कार्यों के लिए अत्यंत सुगम तथा प्रचलित वर्गीकरण है.
  3. जातिवृत्तिय वर्गीकरण पद्धति ( Phylogenetic Classification System )- इस प्रकार के वर्गीकरण में पौधों को उनके विकास और आनुवंशिक लक्षणों को ध्यान में रखकर वर्गीकृत किया गया है. विभिन्न कुलों एवं वर्गों को इस प्रकार व्यवस्थित किया गया है जिससे उनके वंशानुक्रम का ज्ञान हो . इस प्रकार के वर्गीकरण में यह माना जाता है की एक प्रकार के टैक्सा का विकास एक ही पूर्वजों ( ancestors ) से हुआ है . वर्तमान में हम अन्य स्त्रोतों से प्राप्त सुचना को वर्गीकरण की समस्याओं को सुलझाने में प्रयुक्त करते है . जैसे कंप्यूटर द्वारा अंक और कोड का प्रयोग , क्रोमोसोम का आधार , रासायनिक अवयवों का भी उपयोग पादप वर्गीकरण के लिए किया गया है .

प्रश्न 02 : निम्नलिखित के बारे में आर्थिक दृष्टि से दो महत्वपूर्ण उपयोगों को लिखिए –

(a) परपोषी बैक्टीरिया

(b) आद्य बैक्टीरिया

उत्तर :

(a) परपोषी बैक्टीरिया ( Heterotrophic Bacteria ) :
परपोषी बैक्टीरिया का उपयोग दूध से दही बनाने, प्रतिजीवी ( antibiotic ) उत्पादन में तथा लेग्युमीनेसी कुल के पौधों की जड़ों में नाइट्रोजन स्थिरीकरण ( nitrogen fixation ) में किया जाता है।

 

(b) आद्य बैक्टीरिया (Archaebacteria) :
आद्य बैक्टीरिया का उपयोग गोबर गैस ( biogas ) निर्माण तथा खानों (mines) में किया जाता है।

प्रश्न 3. डाइएटम की कोशिका भित्ति के क्या लक्षण हैं?
उत्तर :
डाइएटम की कोशिका भित्ति में सिलिका (silica) पाई जाती है। कोशिका भित्ति दो भागों में विभाजित होती है। ऊपर की एपिथीका ( epitheca ) तथा नीचे की हाइपोथीका ( hypotheca )। दोनों साबुनदानी की तरह लगे होते हैं। डाइएटम की कोशिका भित्तियाँ  एकत्र होकर डाइएटोमेसियस अर्थ ( diatomaceous earth ) बनाती हैं।

प्रश्न 4. शैवाल पुष्पन (algal bloom) तथा ‘लाल तरंगें (red tides) क्या दर्शाती हैं?
उत्तर :
शैवालों की प्रदूषित जल में अत्यधिक वृद्धि शैवाल पुष्पन (algal bloom) कहलाती है। यह मुख्य रूप से नीली-हरी शैवाल द्वारा होती है। डायनोफ्लैजीलेट्स जैसे गोनेयूलैक्स के तीव्र गुणन से समुद्र के जल का लाल होना लाल तरंगें (red tide) कहलाता है।

प्रश्न 5. वाइरस से वाइरॉयड कैसे भिन्न होते हैं?
उत्तर :
वाइरस तथा वाइरॉयड में निम्नलिखित अन्तर पाए जाते हैं

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प्रश्न 6. प्रोटोजोआ के चार प्रमुख समूहों का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
उत्तर :

प्रोटोजोआ जन्तु

ये जगत प्रोटिस्टा ( protista ) के अन्तर्गत आने वाले यूकैरियोटिक, सूक्ष्मदर्शीय, परपोषी सरलतम जन्तु हैं। ये एककोशिकीय होते हैं। कोशिका में समस्त जैविक क्रियाएँ सम्पन्न होती हैं। ये परपोषी होते हैं। कुछ प्रोटोजोआ परजीवी होते हैं। इन्हें चार प्रमुख समूहों में बाँटा जाता है

(क) अमीबीय प्रोटोजोआ ( Amoebic Protozoa ) :
ये स्वच्छ जलीय या समुद्री होते हैं। कुछ नम मृदा में भी पाए जाते हैं। समुद्री प्रकार के अमीबीय प्रोटोजोआ की सतह पर सिलिका का कवच होता है। ये कूटपाद ( pseudopodia ) की सहायता से प्रचलन तथा पोषण करते हैं। एण्टअमीबा जैसे कुछ अमीबीय प्रोटोजोआ  परजीवी होते हैं। मनुष्य में एण्टअमीबा हिस्टोलाइटिका के कारण अमीबीय पेचिश रोग होता है।

(ख) कशाभी प्रोटोजोआ ( Flagellate Protozoa ) :
इस समूह के सदस्य स्वतन्त्र अथवा परजीवी होते हैं। इनके शरीर पर रक्षात्मक आवरण पेलिकल होता है। प्रचलन तथा पोषण में कशाभ (flagella) सहायक होता है। ट्रिपैनोसोमा ( Trypanosoma ) परजीवी से निद्रा रोग, लीशमानिया से कालाअजार रोग होता है।

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(ग) पक्ष्माभी प्रोटोजोआ ( Ciliate Protozoa ) :
इस समूह के सदस्य जलीय होते हैं एवं इनमें अत्यधिक पक्ष्माभ पाए जाते हैं। शरीर दृढ़ पेलिकल से घिरा होता है। इनमें स्थायी कोशिकामुख ( cytostome ) व कोशिकागुद ( cytopyge ) पाई जाती हैं। पक्ष्माभों में लयबद्ध गति के कारण भोजन कोशिकामुख में पहुँचता है।

उदाहरण :

पैरामीशियम ( Paramecium )

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(घ) स्पोरोजोआ प्रोटोजोआ ( Sporozoans ) :
ये अन्त: परजीवी होते हैं। इनमें प्रचलनांग का अभाव होता है। कोशिका पर पेलिकल का आवरण होता है। इनके जीवन चक्र में संक्रमण करने योग्य बीजाणुओं का निर्माण होता है। मलेरिया परजीवी-प्लाज्मोडियम ( Plasmodium ) के कारण कुछ दशक पूर्व होने वाले मलेरिया रोग से मानव आबादी पर कुप्रभाव पड़ता था।

 

प्रश्न 7 पादप स्वपोषी हैं। क्या आप ऐसे कुछ पादपों को बता सकते हैं जो आंशिक रूप से परपोषित हैं
उत्तर :
कीटभक्षी पौधे ( insectivorous plants ) जैसे-यूट्रीकुलेरिया ( Utricularia ), ड्रोसेरा ( Drosera ),नेपेन्थीस ( Nepenthes ) आदि आंशिक परपोषी ( partially heterotrophic ) हैं। ये पौधे हरे तथा स्वपोषी हैं परन्तु नाइट्रोजन के लिए कीटों ( insects ) पर निर्भर रहते हैं।

 

प्रश्न 8. शैवालांश ( phycobiont ) तथा कवकांश ( mycobionts ) शब्दों से क्या पता लगता है?
उत्तर :
लाइकेन (lichen) में शैवाल व कवक सहजीवी रूप में रहते हैं। इसमें शैवाल वाले भाग को शैवालांश ( phycobiont ) तथा कवक वाले भाग को कवकांश ( mycobiont ) कहते हैं। शैवालांश भोजन निर्माण करता है जबकि कवकांश सुरक्षा एवं जनन में सहायता करता है।

प्रश्न 9. कवक (Fungi) जगत के वर्गों का तुलनात्मक विवरण निम्नलिखित बिन्दुओं के अन्तर्गत कीजिए
(a) पोषण की विधि
(b) जनन की विधि

 जीव जगत का वर्गीकरण

 

प्रश्न 10. यूग्लीनॉइड के विशिष्ट चारित्रिक लक्षण कौन-कौन से हैं?
उत्तर :
यूग्लीनॉइड के चारित्रिक लक्षण

  1. अधिकांश स्वच्छ, स्थिर जल ( stagnant fresh water ) में पाए जाते हैं।
  2. इनमें कोशिका भित्ति का अभाव होता है।
  3. कोशिका भित्ति के स्थान पर रक्षात्मक प्रोटीनयुक्त लचीला आवरण पेलिकल ( pellicle ) पाया जाता है।
  4.  इनमें 2 कशाभ ( flagella ) होते हैं, एक छोटा तथा दूसरा बड़ा कशाभ।
  5.  इनमें क्लोरोप्लास्ट पाया जाता है।
  6. सूर्य के प्रकाश की उपस्थिति में ये प्रकाश संश्लेषण क्रिया द्वारा भोजन निर्माण कर लेते हैं , और प्रकाश के अभाव में जन्तुओं की भॉति सूक्ष्मजीवों का भक्षण करते हैं अर्थात् परपोषी की तरह व्यवहार करते हैं।

 

उदाहरण :
युग्लीना ( Euglena )

प्रश्न 11. संरचना तथा आनुवंशिक पदार्थ की प्रकृति के सन्दर्भ में वाइरस का संक्षिप्त विवरण दीजिए। वाइरस से होने वाले चार रोगों के नाम भी लिखिए।
उत्तर :
वाइरस दो प्रकार के पदार्थों के बने होते हैं :
प्रोटीन (protein) और न्यूक्लिक एसिड ( nucleic acid )। प्रोटीन का खोल (shel), जो न्यूक्लिक एसिड के चारों ओर रहता है, उसे कैप्सिड (capsid) कहते हैं। प्रत्येक कैप्सिड छोटी-छोटी इकाइयों का बना होता है, जिन्हें कैप्सोमियर्स ( capsomeres ) कहा जाता है। ये कैप्सोमियर्स न्यूक्लिक एसिड कोर के चारों ओर एक जिओमेट्रिकल फैशन ( geometrical fashion ) में होते हैं। न्यूक्लिक एसिड या तो RNA या DNA के रूप में होता है। पौधों तथा कुछ जन्तुओं के वाइरस का न्यूक्लिक एसिड RNA ( ribonucleic acid ) होता है, जबकि अन्य जन्तु वाइरसों में यह DNA ( deoxyribonucleic acid ) के रूप में होता है। वाइरस का संक्रमण करने वाला भाग आनुवंशिक पदार्थ ( genetic material ) है। वाइरस आनुवंशिक पदार्थ निम्न प्रकार का हो सकता है

  1.  द्विरज्जुकीय DNA (double stranded DNA); जैसे – T,, T,, बैक्टीरियोफेज, हरपिस वाइरस, हिपेटाइटिस -B
  2. एक रज्जुकीय DNA (single stranded DNA) जैसे – कोलीफेज ф x 174
  3. द्विरज्जुकीय RNA (double stranded RNA) जैसे -रियोवाइरस, ट्यूमर वाइरस
  4. एक रज्जुकीय RNA (single stranded RNA) जैसे – TMV, खुरपका-मुँहपका वाइरस पोलियो वाइरस,  रिट्रोवाइरस। वाइरस से होने वाले रोग एड्स ( AIDS ), सार्स, (SARS), बर्ड फ्लू, डेंगू, पोटेटो मोजेक।

प्रश्न 12. अपनी कक्षा में इस शीर्षक “क्या वाइरस सजीव हैं अथवा निर्जीव’, पर चर्चा करें।
उत्तर :
वाइरस (Virus) :
इनकी खोज सर्वप्रथम इवानोवस्की ( Iwanovsky, 1892 ), ने की थी। ये प्रूफ फिल्टर से भी छन जाते हैं। एमडब्ल्यू० बीजेरिन्क ( M.W. Beijerinck, 1898 ) ने पाया कि संक्रमित (रोगग्रस्त) पौधे के रस को स्वस्थ पौधो की पत्तियों पर रगड़ने से स्वस्थ पौधे भी रोगग्रस्त हो जाते हैं। इसी आधार पर इन्हें तरल विष या संक्रामक जीवित तरल कहा गया। डब्ल्यू०एम० स्टैनले ( W.M. Stanley, 1935 ) ने वाइरस को क्रिस्टलीय अवस्था में अलग किया। डालिंगटन ( Darlington, 1944 ) ने खोज की कि वाइरस न्यूक्लियोप्रोटीन्स से बने होते हैं। वाइरस को सजीव तथा निर्जीव के मध्य की कड़ी ( connecting link ) मानते हैं।

वाइरस के सजीव लक्षण

  1. वाइरस प्रोटीन तथा न्यूक्लिक अम्ल ( DNA या RNA ) से बने होते हैं।
  2. जीवित कोशिका के सम्पर्क में आने पर ये सक्रिय हो जाते हैं। वाइरस का न्यूक्लिक अम्ल पोषक कोशिका में पहुँचकर कोशिका की उपापचयी क्रियाओं पर नियन्त्रण स्थापित करके स्वद्विगुणन करने लगता है और अपने लिए आवश्यक प्रोटीन का संश्लेषण भी कर लेता है। इसके  फलस्वरूप विषाणु की संख्या की वृद्धि अर्थात् जनन होता है।
  3.  वाइरस में प्रवर्धन केवल जीवित कोशिकाओं में ही होता है।
  4.  इनमें उत्परिवर्तन ( mutation ) के कारण आनुवंशिक विभिन्नताएँ उत्पन्न होती हैं।
  5. वाइरस ताप, रासायनिक पदार्थ, विकिरण तथा अन्य उद्दीपनों के प्रति अनुक्रिया दर्शाते हैं।

वाइरस के निर्जीव लक्षण

  1. इनमें एन्जाइम्स के अभाव में कोई उपापचयी क्रिया स्वतन्त्र रूप से नहीं होती।
  2. वाइरस केवल जीवित कोशिकाओं में पहुँचकर ही सक्रिय होते हैं। जीवित कोशिका के बाहर ये निर्जीव रहते हैं।
  3. वाइरस में कोशा अंगक तथा दोनों प्रकार के न्यूक्लिक अम्ल ( DNA और RNA ) नहीं पाए जाते।
  4. वाइरस को रवों ( crystals ) के रूप में निर्जीवों की भाँति सुरक्षित रखा जा सकता है। रवे ( crystal ) की अवस्था में भी इनकी संक्रमण शक्ति कम नहीं होती।

 

परीक्षोपयोगी प्रश्नोत्तर

बहुविकल्पीय प्रश्न

प्रश्न 1. द्विनाम पद्धति को किसने प्रतिपादित किया था?
(क) जॉन रे
(ख) मंडल
(ग) लीनियस
(घ) बेन्थम तथा हुकर
उत्तर :
(ग) लीनियस

प्रश्न 2. मोनेरा जगत का सदस्य है
(क) बैक्टीरिया
(ख) अमीबा
(ग) हाइड्रा
(घ) केंचुआ
उत्तर :
(क) बैक्टीरिया

प्रश्न 3. जीवाणुओं में नहीं होता है
(क) कोशिका भित्ति
(ख) राइबोसोम
(ग) माइटोकॉण्ड्रिया
(घ) जीवद्रव्य
उत्तर :
(ग) माइटोकॉण्ड्रिया

 

प्रश्न 4. दलहनी पौधों की जड़ों की ग्रन्थियों में पाए जाने वाले जीवाणु का नाम लिखिए जो नाइट्रोजन स्थिरीकरण में भाग लेता है
(क) क्लॉस्ट्रिडियम
(ख) ऐजोटोबैक्टर
(ग) राइजोबियम लेग्युमिनोसेरम
(घ) क्लोरोबियम
उत्तर :
(ग) राइजोबियम लेग्युमिनोसेरम

प्रश्न 5. प्रोटिस्टा जगत के प्राणी होते हैं
(क) पूर्वकेन्द्रकीय एककोशीय
(ख) सुकेन्द्रकीय बहुकोशीय
(ग) पूर्वकेन्द्रकीय बहुकोशीय
(घ) सुकेन्द्रकीय एककोशीय
उत्तर :
(घ) सुकेन्द्रकीय एककोशीय

प्रश्न 6. प्रोटोजोआ के उस वर्ग का क्या नाम है जिसमें अमीबा आता है?
(क) मैस्टिगोफोरा
(ख) ओपेलाइनेटा
(ग) राइजोपोडा
(घ) सीलिएटा
उत्तर :
(ग) राइजोपोडा

प्रश्न 7. निम्नलिखित में से कौन खाद्य कवक है?
(क) म्यूकर
(ख) मॉर्केला
(ग) पक्सिनिया
(घ) अस्टिलेगो
उत्तर :
(ख) मॉर्केला

प्रश्न 8. गेहूँ के कीट रोग का कारक जीव है
(क) पक्सीनिया
(ख) आल्टरनेरिया
(ग) म्यूकर
(घ) अस्टिलैगो
उत्तर :
(क) पक्सीनिया

 

प्रश्न 9. मानव में कवकों द्वारा उत्पन्नं एक सामान्य व्याधि है
(क) कॉलेरा
(ख) टायफॉइड
(ग) टिटेनस
(घ) रिंगवर्म
उत्तर :
(घ) रिंगवर्म

प्रश्न 10. पेनिसिलिन प्राप्त होता है
(क) पेनिसिलियम नोटेटम से
(ख) पेनिसिलियम ट्रायसोजिनक से
(ग) इन दोनों से
(घ) इनमें से कोई नहीं
उत्तर :
(ग) इन दोनों से

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1. द्विपद नाम पद्धति क्या है? आधुनिक वर्गीकरण के जनक का नाम बताइए।
उत्तर :
नामकरण की वह पद्धति जिसमें नाम का प्रथम पद वंश ( genus ) तथा द्वितीय पद जाति ( species ) को निर्दिष्ट करता है, द्विपद नाम पद्धति कहलाती है। आधुनिक वर्गीकरण अर्थात् द्विपद नाम पद्धति के जनक का नाम कैरोलस लीनियस है।

प्रश्न 2. मोनेरा एवं प्रोटिस्टा का उदाहरण सहित एक प्रमुख लक्षण लिखिए।
उत्तर :
मोनेरा के जीवधारियों में केन्द्रक के स्थान पर कोशिका में केन्द्रकाभ पाया  जाता है, जिसे वलयाकार डी०एन०ए० कहते हैं।

उदाहरणार्थ :
जीवाणु, सायनोबैक्टीरिया, आर्किबैक्टीरिया इत्यादि। प्रोटिस्टा के जीवधारियों में कोशिका का वास्तविक केन्द्रक पूर्ण विकसित होता है। उदाहरणार्थअमीबा, पैरामीशियम, यूग्लीना इत्यादि।

 

प्रश्न 3. जगत प्रोटिस्टा के दो लक्षण तथा दो उदाहरण लिखिए।
उत्तर :

लक्षण :

  1. इसके अन्तर्गत सभी एककोशिकीय यूकैरियोटिक जीव आते हैं तथा
  2. ये प्रायः जलीय जीव होते हैं

उदाहरण :

  1. अमीबा
  2. पैरामीशियम

प्रश्न 4. कण्डुआ (smut) रोग उत्पन्न करने वाले एक फफूद (कवक) का नाम लिखिए।
उत्तर :
अस्टिलैगो ( Ustilago ) नामक परजीवी कवक की अनेक जातियाँ विभिन्न अनाजों के पौधों पर कण्डुआ ( smut ) रोग उत्पन्न करती हैं;जैसे-अस्टिलैगो न्यूडा ( Ustilogo nuda ) गेहूं में श्लथ कण्ड ( loose smut ) उत्पन्न करता है।

प्रश्न 5. उस कवक का नाम लिखिए जिससे पेनिसिलिन प्राप्त होती है।
उत्तर :
पेनिसिलिन ( penicillin ) पेनिसिलियम ( Penicillium ) की जातियों; जैसे- पे० नोटेटम ( P. notatum ), पे० क्राइसोजीनम,  (P. chrysogenum ) आदि से प्राप्त होती है।

प्रश्न 6. उस कवक का वानस्पतिक नाम लिखिए जिसमें आभासीय कवकजाल पाया जाता है।
उत्तर :
बेटेकोस्पर्मम  ( Batruchospermum )

 

प्रश्न 7. बेकरी उद्योग में जिस कवक का प्रयोग किया जाता है उसका वानस्पतिक नाम लिखिए।
उत्तर :

यीस्ट :
कैरोमाइसीज सेरेविसी ( Saccharomyces cerevisiae )

प्रश्न 8. पेनिसिलिन की खोज करने वाले वैज्ञानिक का नाम लिखिए।
उत्तर :
पेनिसिलिन एन्टीबायोटिक की खोज एलेक्जेन्डर फ्लेमिंग ( Alexander Fleming ) ने 1928 में की थी

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1. जन्तु जगत तथा पादप जगत के प्रमुख लक्षण बताइए। या जन्तुओं को परिभाषित करने वाले किन्हीं चार लक्षणों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर :

जन्तु जगत के मुख्य लक्षण

  1. कोशिका भित्ति ( cell wall ) तथा केन्द्रीय रिक्तिका ( central vacuole ) का अभाव।
  2. जन्तु समभोजी पोषण ( holozoic nutrition )।
  3. उत्सर्जी अंग, संवेदी अंग तथा तंत्रिका तंत्र की उपस्थिति।
  4. प्रकाश संश्लेषण व पर्णहरिम का अभाव।
  5.  तारककाय ( centrosome ) तथा लाइसोसोम की उपस्थिति।

पादप जगत के मुख्य लक्षण

  1. कोशिका भित्ति ( cell wall ) की उपस्थिति।
  2. कोशिका में केन्द्रीय रिक्तिका ( central vacuole ) की उपस्थिति।
  3. कोशिका में अकार्बनिक लवणों  ( inorganic salts ) की उपस्थिति।
  4. उत्सर्जी अंग ( excretory organs ), संवेदी अंग  ( sense organs ) तथा तंत्रिका तंत्र ( nervousystem ) की अनुपस्थिति।
  5. प्रकाश संश्लेषण ( photosynthesis ) द्वारा भोजन निर्माण की क्षमता तथा पर्णहरिम | ( chlorophyll ) की उपस्थिति।

 

प्रश्न 2. पाँच जगत वर्गीकरण की विशेषता बताइए। या जीवन के पाँच जगत का नाम एवं इस वर्गीकरण का आधार लिखिए।
उत्तर :

  1. जगत–मोनेरा
  2. जगत–प्रोटिस्टा
  3.  जगत-कवक
  4.  जगत-पादप
  5.  जगत-जन्तु

पाँच जगत वर्गीकरण की विशेषताएँ निम्नवत् हैं

  1.  इस वर्गीकरण में प्रोकैरियोट को पृथक् कर मोनेरा जगत बनाया गया। प्रोकैरियोट संरचना, कायिकी तथा प्रजनन आदि में यूकैरियोट से भिन्न होते हैं।
  2. एककोशिक यूकैरियोट को बहुकोशिक यूकैरियोट से पृथक् कर प्रोटिस्टा जगत में स्थान दिया गया।
  3. कवक को पादपों से अलग करके एक कवक जगत बनाया गया।  ये विषमपोषी होते हैं तथा भोजन अवशोषण से ग्रहण करते हैं।
  4. प्रकाश संश्लेषी बहुकोशिक जीवों (पौधों) को अप्रकाश संश्लेषी, बहुकोशिक जीवों (जन्तु) से पृथक् कर दिया गया।
  5. जैव संगठन की जटिलता, पोषण विधियों तथा जीवन शैली के आधार पर बनाया गया यह वर्गीकरण विकास के क्रम को प्रभावशाली रूप से प्रस्तुत करता है।

 

 

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